Saturday, January 31, 2015

काजू वाली बरफ़ी!

काजू वाली बरफ़ी!
-वीर विनोद छाबड़ा
बचपन से सुनता आ रहा हूं ये शब्द - काजू।

लोग कहते थे काजू खाने वाले का दिमाग तेज होता है। पड़ोस में रहने वाले टिल्लू को उसकी मां रोज़ सुबह शाम दस-दस काजू खाने को देती थी। मगर वो फिर भी निठल्ला का निठल्ला ही रहा। चलिए ये वहम तो दूर हो गया कि काजू खाने से कोई फर्स्ट नहीं आता। लेकिन महंगा होने के कारण काजू स्टेटस सिंबल बना रहा। हम मूंगफली को गरीबों का काजू समझ दिल को समझाते रहे कि इसमें काजू से ज्यादा ताकत है। मैं ऐसी एक फैमिली को जानता हूं जिन्होंने काजू स्टेटस सिंबल होने के कारण बेटे का नाम काजू रखा।

बचपन में कभी-कभी मैंने भी काजू देखा और एक-आध दाना चुगा भी। दूसरा उठाने लगा तो पिता जी ने आंखें तरेर दीं। तमीज़ के दायरे में रहो। वहीं छोड़ दिया। काजू वीआईपी आइटम है। अगर आव-भगत में आइटम में काजू है तो समझ लीजिये आप वीआईपी हैं। सुना है मंत्री और बड़े कॉरपोरेट लेवल पर काजू ज़रूर परोसा जाता है। महफ़िलों में भी इसकी धूम है।

हमारे जीजा जी जब भी आते तो उनके समक्ष काजू परोसा जाता था। उनके जाते ही मां काजू छुपा देती। गाजर के हलवे में डालने के लिए। उस वक़्त दिल में ख्याल आता था कि कभी हम भी दामाद बनेंगे। हमारा भी स्वागत काजू से होगा। और वो दिन भी आया। हम शादी के बाद पहली बार ससुराल गए। व्रजपात हुआ। दालमोठ और किसी लोकल ब्रांड बिस्कुट से हमारा स्वागत हुआ। मैं समझ गया ये तो हमसे भी गए बीते हैं।

एक दिन शाम थका-हारा दफ्तर से लौटा। पत्नी और बच्चों को बहुत खुश देखा। पत्नी ने बताया - ये कोई गिफ्ट दे गया है। बता रहा था, मिठाई है। साहब ने भिजवाई है। वो बाहर गए हैं। फ़ोन पर बात कर लेंगे।

मैंने देखा एक बड़ा से पैकेट है। लेकिन कौन था वो? देखने में कैसा? क्या रंगरूप था? पत्नी कुछ नहीं बता पायी। कहने लगी - अँधेरा सा था और स्कूटर पर था। ज़बरदस्ती टिका कर चला गया।

बड़ा गुस्सा आया। मेरा व्रत टूट गया। न जाने कितनों के काम किये। लेकिन उस एवज़ में चाय की प्याली भी नहीं पी। किसी को घर का पता भी नहीं दिया। विगत महीने भर में जितनों के भी काम किये सबको छान मारा। लेकिन कोई हां बोलने वाला नहीं मिला। दो दिन तक परेशान रहा। क्या करूं इस मिठाई का? फ़ेंक दूं या दान कर दूं। अचानक पत्नी ने एक सुझाव दिया - क्यों न मेहमानों को खिला दी जाए?

मन ही मन पत्नी को धन्यवाद दिया। पहली बार समझदारी की बात की। लेकिन दो दिन गुज़र गए। कोई आया ही नहीं। पत्नी बोली - मैंने आजू-बाजू सबको बोला तो था। बेला की मम्मी, पिंकी और टिंकू की मां। और वो जोशियाइन को भी। मगर किसी के मेहमान आये हैं और किसी को बच्चों को स्कूल लेने जाना।

मैंने कहा - ऐसा करो गाय को खिला दो। दर्जनों इधर उधर घूमती-फिरती हैं। पुण्य का काम हो जाएगा।


लेकिन पत्नी के दिमाग में कुछ और चल रहा था। बोली - हां वो तो ठीक है। खिला दूंगी। ऐसा करते हैं कि अड़ोस-पड़ोस में पांच-पांच पीस प्लेट में रख कर बांट दें। बताएंगे कि इंक्रीमेंट लगा है। ये तो सच है पिछले हफ्ते ही तो लगा है। सबके मुंह भी बंद हो जाएंगे। हम कंजूस नहीं हैं।
मैंने कहा - व्हाट एन आईडिया सर जी। मन ही मन पहली बार अपनी पीठ थपथपाई। कोई गलती नहीं की इससे शादी करके। मैं तो खामख्वाह ही सोचता रहा कि.

बांटने से पहले मैंने भी उस मिठाई के दर्शन किये। बर्फी थी। पतले-पतले पीस। मटमैला रंग। मिठाई की दुकानो पर लोगों को खूब खरीदते देखा है। सस्ती-मद्दी मिठाइयां खूब बिकती हैं। बहरहाल, मैंने उसका स्वाद चखा। अच्छा नहीं लगा। पता नहीं लोग क्यों खरीदते हैं? अच्छा है दे दो। जिसको नहीं अच्छी लगेगी फ़ेंक देगा।

दूसरे दिन मेरे दोस्त आये विजय भटनागर। पत्नी ने फौरन उनके सामने वही मिठाई रख दी। वो बोले - "भाई मैं तो मिठाई का शौक़ीन हूं। जितनी रखोगे छोडूंगा नहीं।" ये कहते हुए भाई पांचों पीस चट कर गया और पूछा - "राम आसरे से लाये क्या? काजू की मिठाई उससे बढ़िया तो कोई बनाता नहीं। मेरे जीजाजी दिल्ली से जब भी आते हैं। दस किलो कम से कम नहीं ले जाते हैं। अपने दोस्तों में बांटते हैं।

ये सुनते ही मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई। पत्नी का मुंह अवाक् से खुला रह गया। यार काजू का स्वाद तो भली भांति मालूम था, काजू की मिठाई का नहीं। बड़ी शर्म भी आई। पत्नी ने तो उलहाना भी दे दी - कभी खिलाई तो है नहीं। मैं क्या जानूं और बच्चे क्या जानें काजू वाली बर्फी का स्वाद।

तभी फ़ोन की घंटी बजती है। मैंने फ़ोन उठाया - हेलो।

उधर से आवाज़ आई - मैं रवी प्रकाश। थोड़ा लेट हो गया। हैप्पी बर्थडे। यार एक ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ गया। मिठाई भिजवाई थी, अपने एक असिस्टेंट के हाथ। । देखा इस बार मैं भूला नहीं।

मैंने उसे थैंक्यू कहने से पहले हज़ार हज़ार चुनींदा गालियां दी - अमां क्या सस्पेंस क्रिएट किया ? अबे डिब्बे पर अपना नाम तो लिखवा दिया होता। अब तेरी मिठाई तभी खाऊंगा जब तक तू खुद आएगा बधाई देने।

पत्नी ने पूछा - कौन था?

मैंने कहा - वही कटहल वाले मिश्राजी। मूर्खताएं करने के लिए प्रसिद्ध।
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-वीर विनोद छाबड़ा ०१-०२-२०१५ mob 7505663626
D – 2290, Indira Nagar,
Lucknow – 226016 (India)

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