Thursday, February 12, 2015

प्राण - किसी व्यक्ति नहीं एक लींजेंड का नाम!

प्राण - किसी व्यक्ति नहीं एक लींजेंड का नाम!
(12 फरवरी को उनके जन्म दिवस पर)
-वीर विनोद छाबड़ा

प्राण किसी व्यक्ति या एक्टर का नाम नहीं, बल्कि एक लीजेंड का नाम है। प्राण ने फिल्मों में जितने भी किरदार किए शायद ही किसी को अगली किसी फिल्म में दोहराया हो।

मैंने अपने पिता की उंगली पकड़ कर प्राण की जो पहली देखी थी वो थी-मनमोहन देसाई की छलिया। मुझे इस फिल्म की कहानी थोड़ी थोड़ी याद है। वो पाकिस्तान से आया खान था, अपनी हिंदू बहन की तलाश में। उसकी उसने कभी सूरत नहीं देखी थी। उसके पैरों की पाजेब से पहचानता था। यहां उसकी मुलाकात राजकपूर से हुई। उसके घर में उसने अपनी बहन को उसकी पाजेब से पहचाना। दोनों में जबरदस्त जंग हुई। मुझे बस एक ही फिक्र थी कोई मारा न जाए। ये जंग तब खत्म हुई जब प्राण को असलियत पता चली कि नूतन भी राजकपूर के घर बतौर अमानत है और उसके पति की तलाश कर रहा है।


उसके बाद बड़े होकर मैंने अनगिनित फिल्में नई देखीं प्राण की। दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद को छोड़ जब-जब हीरो प्राण के हाथों पिटा तो हम लोगों ने खूब ताली बजाई। पहली बार मैंने मधुमतीरी-रन पर देखी। दिलीप कुमार के लिये नहीं बल्कि विलेन प्राण को मुंह से सिगरेट के धूंयें के छल्ले निकालते हुए। बाद थोड़ा अरसा बाद जब सिगरेट पीनी शुरू की तो सबसे पहले प्राण की तरह छल्ले बनाना सीखा।

बहरहाल, धूंयें के छल्ले सबसे पहले प्राण साहेब ने बड़ी बहन (1949) के लिये बनाये थे। बरसों ये छल्ले उनका ट्रेड मार्क बने  रहे। हीरो के लिये प्राण साहब से मार खाना इज्जत की बात होती थी। यों तो प्राण साहब और उनकी फिल्मों के बारे में दुनिया जानती है। प्राण साहब की जिंदगी और उनकी फिल्मों के बारे में कुछ खास बातें जो मुझे याद हैं उन्हें बिंदूवार प्रस्तुत कर रहा हूं-
 
1- प्राण प्रोफेशनल फोटोग्राफ़र बनना चाहते थे। उन दिनों वो शिमला में थे। एक रामलीला चल रही थी। सीता का पार्ट उन्हें दे दिया गया। राम का पार्ट मदनपुरी कर रहे थे। बाद में दोनों ही विख्यात विलेन/चरित्र अभिनेता बने।

2-लाहोर में पहली फिल्म मिली-पंजाबी की यमला जट। नूरजहां ने इसमें चाइल्ड आर्टिस्ट थी।

3-बतौर हीरो पहली फिल्म थी-खानदान। हीरोइन थी नूरजहां। उस वक्त उसकी उम्र महज 15 साल थी। कद भी पूरा नहीं निकला था। उसके पैरों तले ईंटे रखी गयीं।

4-पहली फिल्म का मेहनताना प्राण को महज रुपये 50/-मिला। रु.200/-की फोटोग्राफी की नौकरी छोड़ दी।

5-पार्टीशन के बाद प्राण भारत आये तो लाहोर में 22 फिल्में कर चुके थे। लेकिन बंबई में ढाई-साल तक भटकते रहे। सआदत हसन मंटो और हीरो श्याम के कहने पर शाहिद लतीफ़ ने ज़िद्दीमें काम दिया। नायक देवानंद थे और नायिका कामिनी कौशल थी। कई बरस बाद मनोज कुमार अभिनित शहीदमें दोनों साथ दिखे। इसमें कामिनी शहीद भगत सिंह की मां थी और प्राण एक खूंखार डाकू, जो भगत सिंह के देश के प्रति जज्बे से प्रभावित होकर खुद फांसी पर चढ़ने को तैयार हो जाता है। इसी फिल्म में एक और विलेन प्रेम चोपड़ा भी इंकलाबी की भूमिका में थे।


6-बाद में प्राण ने मनोज कुमार के साथ उपकारमें मलंग चाचा का अच्छा किरदार किया। इसके बाद प्राण ने अपवाद छोड़ कर कभी विलेन की भूमिका नहीं की। मनोज के पूरब और पश्चिम, सावन की घटा, बेईमान आदि कई फिल्में कीं।

7-‘बेईमानफिल्म के लिये प्राण ने फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का एवार्ड लेने से मना कर दिया। उनका मानना था कि पाकीजाके लिए गुलाम मोहम्मद को सर्वश्रेष्ठ म्यूज़िक का पुरूस्कार मिलना चाहिए था।


8-प्राण की जोड़ी अशोक कुमार के साथ खूब जमी। साथ-साथ 27 फिल्में की, जिसमें 20 हिट थीं। उनकी दोस्ती का सफर बी0आर0 चोपड़ा की अफ़सानासे शुरू हुआ। कुछ अन्य हिट फिल्में हैं विक्टोरिया 203, चोरी मेरा काम, चोर के घर चोर, राजा और राना, दुनिया, पूरब और पश्चिम, नया जमाना, अधिकार, आंसू जो बन गये फूल, शंकर दादा, मेरे महबूब, मान गए उस्ताद आदि।

9-प्राण ने बी0आर0चोपड़ा के लिए दोबारा काम नहीं किया। लेकिन छोटे भाई यश चोपड़ा की जोशीलामें एक छोटी भूमिका की। इसके लिए उन्होंने कम मेहनताना कम लिया। इसलिये कि भूमिका छोटी थी।

10-प्राण और राजकपूर छलियासे पहले चोरी चोरीभी कर चुके थे। बाद में जिस देश में गंगा बहती हैऔर दिल ही तो हैमें जानदार विलेन की भूमिका की। मेरा नाम जोकरकी बाक्स आफिस पर नाकामी ने राजकपूर का बाजा बजा दिया। बाबीके लिये राजकपूर को पुराने दोस्त प्राण की याद आयी। उस ज़माने में प्राण का मेहनताना सबसे ज्यादा पाने वाले राजेश खन्ना से कुछ ही कम था। लेकिन राजकपूर की आर्थिक हालात के मद्देनज़र प्राण ने सिर्फ एक रुपये पर फिल्म साईन कर दी।

11-प्रकाश मेहरा के पास एक जबरदस्त स्क्रिप्ट थी- जंजीर। देवानंद और राजकुमार मना कर चुके थे। धर्मेद्र के पास फुरसत नहीं थी। प्राण ने अमिताभ का नाम सुझाया। एक इतिहास ही बन गया। दोनों का साथ 13 फिल्मों का रहा। हिट हुई-मजबूर, कसौटी, कालिया, अमर अकबर एंथोनी, नसीब, गंगा की सौगंध, नास्तिक, अंधा कानून, शराबी, नास्तिक, शहंशाह, तूफान आदि हिट फिल्मों का लंबा सिलसिला है। प्राण की बायोग्राफी एंड प्राणके फोरवर्ड अमिताभ ने ही लिखे हैं।

12-प्राण कई महीने अपने पिता से यह सच छुपाते रहे कि वो फिल्में काम कर रहे हैं। उन्हें डर था कि पिता को बुरा लगेगा।

13-पार्टीशन के वक्त वो लाहोर में थे। उनकी पत्नी पर लाहोर का इतना जबरदस्त प्रभाव था कि वो उन्हें अपनी बहन के पास इंदौर में कुछ दिनों के लिए छोडना पड़ा।

14-प्राण के प्यारे कुत्तों का नाम था- व्हीस्की, सोडा और बुलेट। पार्टीशन के वक्त वो सरहद पार ही छूट गये। प्राण को इसका बहुत अफसोर रहा।

15-फिर वही दिल लाया हूं की शूटिंग देखने जमा भीड़ लगभग हिंसक हो गयी। तब विलेन प्राण ने अपने तेवर दिखाये। भीड़ शांत हो गयी। उनकी बुरे आदमी की इमेज के दबदबे का कमाल था यह।

16-उनकी बुरे आदमी की ज़बरदस्त इमेज के कारण ही उन दिनों बच्चे का नाम लोग प्राण नहीं रखते थे।

17-सीएनएन ने 25 इंटरनेशनल कलाकारों की सूची जारी की तो उसमें अमिताभ, मीना कुमारी और नरगिस के साथ प्राण को नाम भी था।

18-प्राण के अनुसार उनकी श्रेष्ठ फिल्में-बड़ी बहन, बहार, अलिफ़लैला, जश्न, आज़ाद, जिस देश में गंगा बहती है, हाफ टिकट, उपकार, पूरब और पश्चिम, औरत, आंसू जो बन गये फूल, कब क्यूं और कहां, जानी मेरा नाम, विक्टोरिया नंबर 203, जंजीर, मजबूर, चोरी मेरा काम, हत्यारा, चोर के घर चोर, डान, मान गये उस्ताद, लेडीज़ टेलर, दुनिया।


19-दिलीप कुमार के साथ प्राण की पहली फिल्म आज़ादथी। इस फिल्म से दिलीप एक लंबे डिप्रेशन के दौर से निकले थे। दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी। उसके बाद मधुमती, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम आदि अनेक फिल्मों में दिलीप कुमार ने प्राण के हाथों पिटना पसंद किया। नब्बे के दशक में प्राण साहब को एक बहुत एवार्ड मिला। तब वो अस्वस्थ थे। ठीक से बोल भी नहीं पा रहे थे। दिलीप कुमार ने चुटकी ली। इस शख्स के हाथों बहुत पिटा हूं। आज फिर तमन्ना है कि इस प्यारे दोस्त से पिटूं। कुछ तो बोल।

20-प्राण फिल्मों के बाहर क्रिकेट ही नहीं अन्य खेलों के भी दिवाने थे। क्रिकेट लीजेंड फ्रेंक वारेल के वो गहरे दोस्त थे। उन्होंने गरीब और बीमार कलाकारों की आर्थिक मदद के लिए होपनामक संस्था भी बना रखी थी।

21-फिल्म की नामावली के अंत में लिखा होता था - एंड प्राण। उनकी बायोग्राफी का नाम भी यही रखा गया...एंड प्राण।

22-1998 में प्राण को दिल का दौरा पड़ा। फिल्में करने तो वो बंद कर ही चुके थे। बाकी सोशल कामों से भी दूर हो गए।

23-उपकार, आंसू जो बन गये फूल और बेईमान के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता और लाईफटाइम अचीवमेंट का फिल्मफेयर एवार्ड मिला। भारत सरकार ने पद्म विभूषण और दादा साहब फालके पुरूस्कार दिया।

24-दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार उनके घर पर दिया गया। उस वक्त वो सख्त बीमार थे। कुछ ही दिनों बाद 12 जुलाई 2013 को उनका देहांत हो गया। उनका जन्म 12 फरवरी 1920 को हुआ था।

-----वीर विनोद छाबड़ा 12 फरवरी 2015

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