Saturday, December 27, 2014

याद - रफ़ी का नौशाद को एक रुपया वापस करना!

-वीर विनोद छाबड़ा
बात उन दिनों की है जब फिल्म इंडस्ट्री में मोहम्मद रफ़ी एक स्ट्रगलर थे और नौशाद अली आला दर्जे की संगीतकार। 

रफ़ी के दिन मुफ़लिसी में कट रहे थे। रोज़ कमाओ और रोज़ रोटी खाओ। नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में रिकॉर्ड होने वाले एक कोरस में रफ़ी को भी गाने का मौका मिला।


उस दिन रफ़ी की जेब में सिर्फ़ एक रुपया था। रिकॉडिंग स्टूडियो दूर था और रफ़ी ये मौका छोड़ना नहीं चाहते थे। स्ट्रगल के दिनों में मौका चूकने का मतलब होता था सफलता की ओर जाने के बजाये दो कदम पीछे और रात को भूखा सोना। लिहाज़ा रफ़ी रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंचे। चूंकि नौशाद बड़े संगीतकार थे अतः  उम्मीद थी कि रिकॉर्डिंग से इतना मेहनताना मिलेगा कि दो दिन की रोटी का जुगाड़ हो जायेगा।

रफ़ी का एक रुपया स्टूडियो तक पहुँचने के किराये में ही खर्च हो गया। मगर किस्मत की मार। किन्हीं कारणों से रिकॉर्डिंग कैंसिल हो गयी। सब घरों को लौट गए। मगर रफ़ी बैठे रहे।

नौशाद साहब ने देखा कि एक बंदा स्टूडियो के बाहर सीढ़ियों पर उदास बैठा है। उसके चेहरे पर निराशा की गहरी लकीरें खिंची हैं। उन्होंने वज़ह पूछी।

रफ़ी ने थोड़ा झिझकते हुए बताया - मेरे पास सिर्फ एक रुपया था जो यहां आने में खर्च हो गया। सोचा था रिकॉर्डिंग के बाद पैसा मिल जायेगा। मगर रिकॉर्डिंग ही कैंसिल हो गयी। यही फ़िक्र है कि अब वापस कैसे जाऊं?

नौशाद साहब को तरस आ गया। उन्होंने जेब में हाथ डाला और एक रूपये का सिक्का निकाल कर रफ़ी की हथेली पर रख दिया।

कई साल गुज़र गए।

रफ़ी अब रफ़ी साहब हो चुके थे। बड़ा नाम था उनका। उन्हें बात करने तक की फुर्सत नहीं होती थी।

रफ़ी साहब एक दिन नौशाद साहब के घर पहुंचे। उनके हाथ में एक शीशे जड़ा एक फोटोफ्रेम था। और उस फ्रेम में एक रूपये का सिक्का चिपका हुआ था।

रफ़ी साहब ने नौशाद साहब को वो फ्रेम भेंट किया।


नौशाद साहब हैरान हुए - बरखुरदार इसमें क्या खास बात? और मुझे क्यों दे रहे हो?

रफ़ी साहब ने उन्हें बरसों पहले की वो रिकॉर्डिंग कैंसिल होने की बात दिलाते हुए बताया - उस दिन मेरे पास लौटने के लिए पैसे नहीं थे। आपने मुझे एक रूपये का सिक्का दिया था। मुझे आपकी वो इनायत बहुत अपील कर गयी। मैंने वो रुपया मैंने खर्च नहीं किया था। किसी तरह पैदल ही घर चला आया था। इस फ्रेम में वही रुपया है। आज आपको लौटने आया हूं।

निशब्द नौशाद साहब की आंखों से अविरल अश्रु धारा बह निकली। उन्होंने रफ़ी को सीने से लगा लिया। 
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-वीर विनोद छाबड़ा २८-१२-२०१४

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