-वीर विनोद छाबड़ा
हिंदी सिनेमा के जाने-माने
ए ग्रेड कॉमेडियन देवेन वर्मा का ०२ दिसंबर २०१४ को स्मृतिशेष हो गए । वो ७७ वर्ष के
थे।
वो कॉमेडी के सृजन
के लिए सिर्फ़ चुटीले संवादों का सहारा नहीं लेते थे। उनकी बॉडी लैंगुएज और चेहरे के
एक्सप्रेशन भी हास्य का बोध कराते थे। वो कॉमेडी के लिए अतिरिक्त परिश्रम नहीं करना
पड़ता । सब कुछ सहज और अपने आप ही होता जाता। कॉमेडी अंदर से स्वयं निकलती। लेखक के
लिखे संवाद धरे रह जाते। न संवादों में और न ही एक्शन में फूहड़पन दीखता था। सादगी और
शालीनता दिखती होती।
याद आता है यश चोपड़ा
की कभी-कभी का वो दृश्य। देवेन वर्मा से ऋषिकपूर पूछते हैं - नहाने के लिए गरम पानी
कहां मिलेगा। देवेन वर्मा दूसरी ओर इशारा करते हुए बड़बड़ाते हैं - यहां अट्ठाईस साल
हो गए नहाय और इनको नहाने के लिए गरम पानी…
उनकी टाइमिंग गज़ब की
थी। इसका प्रमाण बेस्ट कॉमेडियन के लिए तीन-तीन फिल्मफेयर अवार्ड उनकी झोली में गिरना
है (चोरी मेरा काम, चोर के घर चोर और अंगूर)।
देवेन वर्मा की मांग
साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में सर्वाधिक थी।
शेक्सपीयर की कॉमेडी
ऑफ़ एरर्स पर आधारित गुलज़ार की 'अंगूर' में देवेन संजीव कुमार
के साथ डबल रोल में थे। लुक में वो किसी हीरो
से कम नहीं थे। कॉमेडी के अलावा देवेन ने मिलन, देवर और बहारें फिर भी आएंगी में गंभीर रोल भी किये।
सुप्रसिध्द अभिनेता
अशोक कुमार की पुत्री रूपा गांगुली से देवेन का विवाह हुआ था। लेकिन अशोक कुमार के
दामाद होने का उन्होंने कभी लाभ नहीं उठाया। अपनी प्रतिभा और अदायगी के बूते ही आगे
बढ़ते रहे। साली प्रीति गांगुली के साथ भी देवेन ने कई फ़िल्में की।
देवेन ने लगभग १४४
फिल्मों में अभिनय के साथ साथ दाना पानी,
चटपटी, बेशरम, नादान, यकीन और बड़ा कबूतर
भी निर्मित व निर्देशित की। परंतु उन्हें औसत सफलता ही मिल पायी। कमाई का एक बड़ा हिस्सा
व्यर्थ गया।
अपनी सहजता,
शालीनता और परफेक्ट टाइमिंग के कारण देवेन गुलज़ार, बासु चटर्जी,
ऋषिकेश मुख़र्जी, बीआर चोपड़ा, यश चोपड़ा आदि सभी नामी निर्देशकों की बरसों
तक खास पसंद रहे।
देवेन की दूसरी फिल्म
'कव्वाली की रात' थी जिसे प्यारेलाल संतोषी ने निर्देशित किया था। नब्बे के दशक
में उनके पुत्र राजकुमार संतोषी में उन्हें 'अंदाज़ अपना अपना'
में निर्देशित किया। आमिर खान के साथ ये कॉमेडी फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई।
वक़्त कभी एक सा नहीं
रहता। नए नए कलाकार आते हैं। दर्शकों की रूचि परिवर्तित होती है। नए और जवान चेहरे
देखना चाहते हैं। देवेन वर्मा का भी कैरियर
का ढलान शुरू हो गया। उन्होंने अभिनय के साथ-साथ अमजद खान के सेक्रेटरी की भी जॉब स्वीकार
कर ली। ससुर अशोक कुमार की सहायता का ऑफर वापस कर दिया।
देवेन की यादगार फ़िल्में
हैं - धर्मपुत्र, कव्वाली की रात, सुहागन, अनुपमा, बहारें फिर भी आएंगी,
संघर्ष, मोहब्बत ज़िंदगी है, ख़ामोशी, बुड्ढा मिल गया,
मेरे अपने, धुंध, ३६ घंटे, इम्तेहान, कभी कभी, ज़िंदगी, आदमी सड़क का,
खट्टा मीठा, सबसे बड़ा रुपैया, प्रियतमा, दिल्लगी, अमरदीप, गोलमाल, लोक परलोक,
प्रेम विवाह, बॉम्बे ४०५ मील, सौ दिन सास के,
थोड़ी सी बेवफाई, बेमिसाल, नास्तिक, रंगबिरंगी,
प्रोफेसर की पड़ोसन, अंदाज़ अपना अपना, दिल तो पागल है,
इश्क, क्या कहना और कलकत्ता मेल।
देवेन वर्मा का जन्म
२३ अक्टूबर १९३७ को पुणे में हुआ था। उनकी शिक्षा दीक्षा भी पुणे में हुई थी।
यादों में बसा ये अद्भुत
अभिनेता अब याद बन कर रह गया है।
-वीर विनोद छाबड़ा /७५०५६६३६२६/०३-१२-२०१४
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