Friday, October 24, 2014

मन्ना डे - तू प्यार का सागर है!

- वीर विनोद छाबड़ा  
प्रबोध चंद्र डे उर्फ मन्ना डे को गुज़रे आज पूरा एक साल हो गया है। उनका निधन परिवार की एक पीढ़ी का अस्त ही नहीं अपितु हिंदी फ़िल्म जगत के पुरुष गायन क्षेत्र की एक पीढ़ी, एक युग की समाप्ति का ऐलान था। हेमंत कुमार, मोहम्मद रफी, मुकेश, महेंद्र कपूर, किशोर कुमार और अंत में मन्ना डे....। बिछुड़े सभी बारी बारी। सिर्फ दिल से ही नहीं आत्मा भी मन्ना के गले से स्वर बन कर वातावरण में विचरती थी।


ऐ मेरे प्यारे वतन,...(काबुलीवाला), ये कहानी है दिये और तूफ़ान की...(तूफ़ान और दिया), ये रात भीगी-भीगी, ये रात चांद प्यारा प्यारा...(चोरी चोरी), प्यार हुआ इकरार हुआ...(आवारा), रमैया वता वैया....(श्री 420), मुस्कुरा लाड़ले मुस्कुरा, कोई भी फूल नहीं है तुझसा खूबसूरत...(एक फूल दो माली), याला-याला दिल ले गयी...(उजाला), ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं तुझे मालुम नहीं...(वक़्त), कौन आया मेरे दिल के द्वारे.... (देख कबीरा रोया), पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई... (मेरी सूरत तेरी आंखें), लागा चुनरी में दाग़ छिपाऊं कैसे...(दिल ही तो है), झनक झनक मोरी बाजे पायलिया...(मेरे हुजूर), किसी चिलमन से मारा(बात एक रात की), ऐ भाई ज़रा देख के चलो...(मेरा नाम जोकर), चलम मुसाफिर ले लियो पिंजरे वाली मुनिया...(तीसरी कसम), मस्ती भरा ये समां है...(परवरिश),कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं....(उपकार), ना मांगू सोना-चांदी ना मांगू हीरा-मोती....(बाबी), प्यार की आग में तन-बदन जल गया...(ज़िद््दी), हंसने की चाह न मुझे....(आशीर्वाद), तुझे सूरज कहूं या चंदा...(आराधना), फुल गेंदवा ना मारो लगत करेजवा में तीर...(दूज का चांद), तू प्यार का सागर है....(सीमा) आदि बेशुमार अमर नग़मों के गायक प्रबोध चंद्र डे अपने घरेलू नाम ’मन्ना’ डे के नाम से विख्यात हुए।

मन्ना सोलो में ही अपितु युगल गानों के भी उस्ताद थे। लता जी के साथ सौ से अधिक युगल गाये। यंू तो सभी हिट थे। इनमें कुछ यादगार हैं- मस्ती भरा ये समां है...(परवरिश), नैन मिले चैन कहां...(बसंत बहार), तुम गगन के चंद्रमा हा,े मैं धरा की धूल हूं...(सती सावित्री), दिल की गिरह खोल दो...(रात और दिन), चुनरी संभाल गोरी...(बहारों के सपने) आदि।

आशा के साथ भी मन्ना की जोड़ी खूब जमी। जिनमें- ये हवा ये नदी का किनारा...(घर संसार), तू छुपी है कहां मैं तड़पता यहां....(नवरंग), जोड़ी हमारी जमेगा कैसे जानी...(औलाद), न तो कारवां की तलाश है....(बरसात की रात), जिंदगी है खेल कोई पास कोई फेल...(सीता और गीता) आज भी जु़बान पर हैं।

मोहम्मद रफी के साथ मन्ना ने अनगिनित बार गाया। बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनो...(शागिर्द), दो दीवाने दिल के...(जौहर महमूद इन गोवा) के दीवाने आज भी हैं। किशोर कुमार के साथ मन्ना के गाये गाने- बाबू समझो इशारे, हारन पुकारे....(चलती का नाम गाड़ी) और एक चुतर नार करके श्रंगार...(पड़ोसन) ने तहलका मचाया था। पड़ोसन के ‘एक चतुर नार...’ की रिकार्डिंग के बाद मन्ना की अनबन हो गयी थी। दरअसल किशोर क्लासिकल गाने के माहिर नहीं थे। मन्ना ने ही उनको खूब रियाज कराया। लेकिन जब अंततः रिकार्ड सामने आया तो मन्ना डे को किशोर से हारा हुआ प्रोजेक्ट किया हुआ था। बाद में मन्ना की गलतफहमी दूर हुई और उन्होंने किशोर के साथ कई गाने गाये। इसमें यह गाना तो बेहद पापुलर हुआ था- ये दोस्ती हम नहीं छोडेंगे....(शोले-1975)।


मन्ना के प्रेरणा स्त्रोत उनके जन्मांध चाचा विख्यात संगीतज्ञ-गायक के.सी. डे थे। उनकी मदद के वास्ते ही मन्ना कलकत्ता से मुंबई आए थे। शास़्त्रीय संगीत में मन्ना की पकड़ इतनी अच्छी थी कि शास्त्रीय संगीत के महापंडित पंडित भीमसेन जोशी भी ’बसंत बहार’ से उनके गायन के पक्के मुरीद हो गए थे। मन्ना का एकल गाने का पहला ब्रेक 1943 में मिला था। ‘राम राज्य’ के लिये के.सी. डे ने अपनी आवाज़ किसी और के लिये उधार करने से मना कर दिया। तब वही एक कोने में बैठे मन्ना से डायरेक्टर विजय भट्ट और संगीत निर्देशक शंकर राव व्यास ने बात करके एकल गीत के लिये मना लिया। ये गीत था- गयी तू गयी सीता सती...। एकल गायन में उनकी विशिष्ट पहचान तो थी ही, जुगलबंदी में भी उनका जवाब नहीं था। लता व आशा के साथ सौ से ज्यादा और रफी व किशोर के साथ पचास से ज्यादा जुगलबंदियां कीं।


मन्ना डे ने अपने समय के लगभग सभी संगीतकारों के साथ काम किया है। नौशाद, गुलाम मोहम्मद, हुसनलाल भगतराम, शंकर जयकिशन, एन.दत्ता, एस.एन.त्रिपाठी, ओ0पी0 नैयर, रोशन, कल्याणजी आनंदजी, सपन जगमोहन, सचिन देव बर्मन, सलील चैधरी, राहुल देव बर्मन, मदन मोहन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, रवि, अनिल विस्वास, वसंत देसाई, सी रामचंद्र, शंकर राव व्यास आदि।

मन्ना डे के बारे में मशहूर हो गया था कि वो सिर्फ आगा, अनूप कुमार, महमूद आदि कामेडियन की आवाज़ हैं। लेकिन ऐसा कतई नहीं था। उनके एक से एक बढ़ कर मशहूर गाने राजकपूर, देवानंद, शम्मीकपूर, बलराज साहनी, राजकुमार, अशोक कुमार, प्राण सरीखे नामी अभिनेताओं पर फिल्माए गये है।

कहा जाता है कि अन्य गायकों की आवाज़ को कापी करना आसान है मगर मन्ना डे की आवाज़ कापी करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। कुछ कापी करते भी हैं तो उनकी आत्मा से निकली जैसी आवाज़ की कापी नहीं सके।

हर इंसान के कैरीयर का अंत होता है। चाहे वो छोटा हो या बड़ा। साठ के दशक का अंत आते आते मन्ना डे की डिमांड कम होने लगी। सत्तर के दशक में उन्होंने भले कम गाया हो, लेकिन बेहतरीन गाने गाये। अस्सी के दशक में उन्हें न के बराबर काम मिला। अंततः उन्होंने फिल्म इंडस्टी को अलविदा कह दी।
 
फुटबाल, क्रिकेट, कुश्ती व पतंगबाजी के शौकीन मन्ना ने संगीत से शास्त्रीयता व मिठास को गायब होते देख 2001 में मंबई को अलविदा कह कर छोटी बेटी सुमिता के घर बैंगलौर आ गए। उन्हों साठ से ज्यादा साल तक गायन को अपनी आत्मा दी थी।

बांग्ला में प्रकाशित ‘जीबोनेर जलसा घरे’ उनकी आत्मकथा है जो हिंदी में ‘यादें जी उठीं’ के नाम से आयी। पद्मश्री, पद्मविभूषण, दादा साहब फालके, फ़िल्मफे़यर लाईफ़टाईम आदि अनेक पुरुस्कार उन्हें मिले। मगर हर बार यही दिखा कि  इससे मन्ना नहीं अपितु पुरुस्कार पुरुस्कृत हुआ यानि सारे पुरुस्कार उनकी बहुआयामी प्रतिभा व व्यक्त्वि के समक्ष बौने थे। 

मन्ना डे का जन्म 01मई 1919 को कलकत्ता में हुआ था और निधन 24 अक्टूबर 1913 को बंगलूर में।

अमर आवाज़ों की दुनिया का ये जादूगर दुनिया के समक्ष ये पहेली छोड़ कर परमात्मा में विलीन हो चुका है- जिं़दगी कैसी है पहेली...।

शत-शत प्रणाम मन्नादा!

---वीर विनोद छाबड़ा मो.7505663626 दि.24.10.2014

2 comments:

  1. gop,mukari,pran,jeevan,ramkrishna,mahmood,aor na jane kitne log,aapke dwaraa milkar achchha laga,aapka prayaas prasanshiya hai,khaskar,ramlaalji ke bare me,shabd nahi mil rahe hai,...ati sundar....

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  2. gop,mukari,pran,jeevan,ramkrishna,mahmood,aor na jane kitne log,aapke dwaraa milkar achchha laga,aapka prayaas prasanshiya hai,khaskar,ramlaalji ke bare me,shabd nahi mil rahe hai,...ati sundar....

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