-वीर विनोद छाबड़ा
टीम इंडिया की ज़िंबाबवे
पर जीत पर क्रिकेट प्रेमी बहुत प्रसन्न हैं। लेकिन मुझे इतना अच्छा नहीं लगा।
रिकार्ड्स में रूचि
रखने वालों के लिए यह ज़रूर अच्छा मैच था। आज भी विपक्ष को टीम इंडिया ने आल आउट किया।
विश्वकप में छटी लगातार जीत मिली।
लेकिन स्पिनर्स ने
चिंता बढ़ा दी वरना ज़िंबाबवे जैसी टीम २८७ नहीं बना पाती।
सोचिये भला जब ९२ पर
४ बल्लेबाज़ गिर चुके थे तो दिल की धड़कनें तेज हो ही जायेंगी। शीर्ष बल्लेबाज़ों की मेहरबानी
से वो होने जा थी जिसका डर इस टूर्नामेंट के शुरू होने पर था कि टीम इंडिया हारेगी
तो किसी छोटी-मोटी टीम से ही। अभी १९५ की दरकार अभी बाकी थी। इसे पार पाना आसान नहीं
था। यहां प्रशंसा करनी होगी सुरेश रैना और महेंद्र धोनी की। उनकी जांबाजी की बदौलत
६ विकेट से बेड़ा पार हो गया। अगर कैच न टपके होते तो आज ऑकलैंड में टीम इंडिया के ड्रेसिंग
रूम में मातम होता। कोई बात नहीं यह खेल का हिस्सा है। लेकिन ऐसे कैच आगे नहीं टपकेंगे।
ऐसी कोई गारंटी नहीं है।
वेस्ट इंडीज से भी
टीम इंडिया गिरते-पड़ते धोनी के कंधो पर सवार हो कर नदी पार कर पाई थी। छोटी टीमों के
विरुद्ध ऐसा प्रदर्शन टीम इंडिया की फितरत
है।
अब क्वार्टर-फाइनल
में बांग्लादेश से मुकाबला है। ठीक है बांग्लादेश छोटी टीम है। लेकिन क्वार्टर फाइनल
में पहुंचने वाली टीम को कमजोर नहीं कहा जा सकता। कई उलट-फेर किये हैं इस छोटी टीम
ने। क्रिकेट के पितामाह इंग्लैंड को हराया ही नहीं, उठा कर टूर्नामेंट
से ही बाहर फ़ेंक दिया। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितने जोश से भरी होगी यह टीम और
पूरी ताक़त से भिड़ेगी, अपने से आकार और संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में कहीं
बड़ी टीम इंडिया से।
टीम इंडिया को हराने
पर जो ख़ुशी पाकिस्तान को होती है वही बांग्लादेश को हासिल होती है। यह बात धोनी अच्छी
तरह जानते हैं कि यह मैच पिछले मुक़ाबलों से ज्यादा बड़ा मैच है। विपक्षी कमजोर नहीं
है।
लेकिन आम भारतीय बड़ा
खुश है कि क्वार्टर-फाइनल में राशोगुल्ला मिलने जा रहा है। जिस तरह से वेस्ट इंडीज
और ज़िंबाबवे के विरुद्ध शीर्ष बल्लेबाज़ी गड़बड़ाई है, उसे अगर दोहराया गया
तो ज़रूरी नहीं कि हर बार सुरेश रैना और महेंद्र सिंह धोनी संकट मोचक बन कर संभाल लें।
गलती की कोई भी गुंजाईश अब नहीं है।
बाबाजी का ठुल्लू भी
नसीब में हो सकता है।
No comments:
Post a Comment