-वीर विनोद छाबड़ा
एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को छह विकेट से हरा दिया। और इसके साथ ही
वो वर्ल्ड कप से बाहर हो गया।
इस हार से पाकिस्तानियों से ज्यादा दुखी मुझे भारतीय दिख रहे हैं। उन्हें लग रहा
था कि इस लचर पाकिस्तानी टीम को टीम इंडिया कहीं भी हरा सकती है। अगर ऑस्ट्रेलिया को
पाकिस्तान हरा देती तो टीम इंडिया उसे हरा कर आसानी से फाइनल में पहुंच जाती। लेकिन
ऐसा होना नहीं बदा था। क्रिकेट किसी के सोचने की तरह नहीं चलता। उसकी अपनी चाल और नियति
है।
आज पाकिस्तान का दिन नहीं था। २१४ का लक्ष्य। बेहद मामूली था। पहले तो पाकिस्तानी
बल्लेबाज़ों ने हरा दिया। टॉस जीत कर खुद बल्लेबाज़ी की। उम्मीद के मुताबिक २६०-२७० तक
नहीं पहुंच पाये। ऑस्ट्रेलिया की गेंदबाज़ी में दम न होने की बावजूद ख़ुदक़शी करते दिखे।
लेकिन इसके बावज़ूद एक वक़्त ऐसा लगा कि पाकिस्तानी गेंदबाज़ टीम को वापस ले आएंगे।
ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों को वहाब रियाज़ की तूफानी गेंदबाज़ी और खतरनाक बम्परों ने खूब
परेशान किया। खासतौर पर शेन वाटसन की शक्ल देखने लायक थी। ऊपर से वहाब का साथदूसरे
गेंदबाजों नहीं दिया।
मगर यहां जीती बाज़ी फील्डरों ने पलट दी। वॉटसन का सिट्टर कैच राहत अली ने छोड़ा
और मैक्सवेल को सोहैल ने छोड़ा। दोनों बार वहाब की गेंद पर। इस मैच के वास्तविक टर्निंग
पॉइंट यही थे। कैच छोड़ो, मैच छोड़ो। अगर ये कैच न छूटे होते तो आजकी कहानी कुछ और ही होती।
खिलाडियों का व्यवहार भी ठीक नहीं था। पाकिस्तानी खिलाड़ी संभावित हार के कारण खिन्न
थे तो ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को उकसाते देखा गया। निश्चित ही यह जेंटलमैन क्रिकेट
नहीं है।
बहरहाल, एक दिनी तो यही है। कभी इधर, कभी उधर। जितने पास, उतने दूर।
अब तसल्ली के लिए कहा जा सकता है कि पाकिस्तान टीम ने सोचा यहां ऑस्ट्रेलिया से
हारना ठीक है। कई बहाने हैं। होम पिच पर होम क्राउड के सामने थे वो। हम क्या कर सकते
थे? अगर सेमी में इंडिया से हार कर घर पहुंचते तो बड़ी कुट (मार) पड़ती।
यह सब तो लुत्फ़ लेने वालों की बातें हैं।
चाहे भारत हो या पाकिस्तान। मनोवृति एक है। जीत गये तो बल्ले बल्ले। और हार गए
तो ज़बरदस्त मीन-मेख।
मैंने कई चैनल पर सुना। बताया जा रहा है कि कोई पीएम से लिखवा लेता है और कोई प्रेजिडेंट
से। सवाल यह है कि कल तक यह किसी को याद क्यों नहीं था?
आज विशेषज्ञों को इंफ्रास्ट्रक्चर भी याद आ रहा है। और मेरे ख्याल से ये पॉइंट
गलत भी नहीं है। पाकिस्तान ने पिछले कई साल से अपने ग्राउंड पर घरेलू प्रथम श्रेणी
क्रिकेट भी ज्यादा नहीं खेली है, अंतर्राष्ट्रीय तो बिलकुल ही नहीं। बोर्ड पर अज्ञानी प्रशानिक अधिकारियों का कब्ज़ा
है।
मौजूदा टीम में तीन खिलाड़ी तो बिलकुल ही नहीं होने चाहिए थे - उमर अकमल, आफरीदी और यूनिस खान।
मिस्बाह ने रन ज़रूर बनाये लेकिन ४० के आस-पास के होने के कारण उनको भी नहीं होना चाहिए
था। ऐसे हालत में भी अगर कोई टीम विश्वकप के क्वार्टर फाइनल में पहुंच गयी तो मेरे
ख्याल से बड़ी हैरानी की बात है।
इस हार से पाकिस्तान बोर्ड में निश्चित ही ज़बरदस्त सर-फ़ुटौवल की स्थिति बनने जा
रही है। कई खिलाड़ी भी नहीं बक्शे जायेंगे।
लेकिन मुझे ज़हीर अब्बास की बात अच्छी लगी। युवा खिलाडियों की टीम चुनो और अगले
विश्वकप की तैयारी आज से ही शुरू कर दो।
मुझे उम्मीद है कि टीम इंडिया ने अगर यह मैच ध्यान से देखा होगा तो उन्हें नसीहत
मिली होगी कि वहाब रियाज ने शेन वॉटसन को कैसे और कितना परेशान किया!
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-वीर विनोद छाबड़ा २०-०३-२०१५
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