-वीर विनोद छाबड़ा
बचपन में जब हम लोग कैंची से खामख्वाह कागज़ या कोई अन्य चीज़ काटते थे तो मां डांटती
थी।
पड़ोसन को कैंची की ज़रुरत होती थी तो उसके हाथ में नहीं रखी जाती थी। बच्चे के हाथ
भिज़वा दी जाती।
अक्सर दुकानों पर लिखा होता था - उधार प्रेम की कैंची है। कुछ दुकानदार तो आज भी
इस पर यकीन करते हैं। अपने गल्ले पर ऐसी तख्ती टांग कर रखते हैं।
मां जब कपडा काटने के लिए कैंची का इस्तेमाल करती थी तो सामने से हम लोगों को हटा
देती।
फिल्मों में भी अक्सर सास अपनी बहू जली-कटी सुना रही होती थी - कैंची की तरह ज़बान
चलाती है। काट कर फ़ेंक दूंगी।
मां जब कभी अपनी सलवार कमीज या मेरा पायजामा सिलती थी तो दूसरे दिन पड़ोसन आकर पूछती थी - बिल्लू की मां क्या सिलने जा रही हो? कल रात बड़ी देर तक कैंची चलने की आवाज़ आ रही थी।
मां जब कभी अपनी सलवार कमीज या मेरा पायजामा सिलती थी तो दूसरे दिन पड़ोसन आकर पूछती थी - बिल्लू की मां क्या सिलने जा रही हो? कल रात बड़ी देर तक कैंची चलने की आवाज़ आ रही थी।
मुझे बचपन का वो दिन (मई १९६१) याद है जब किसी ने चारपाई पर सुई रख कर छोड़ दी और
वो सुई मेरे पांव में घुस गयी। निकालते हुए टूट गई। एक्सरे करके इसकी लोकेशन पता चलाई
गई। फिर फौरन ऑपरेशन करके निकाला गया। आज भी पैर पर इसका निशां है।
तब तक इतना समझ तो आया गया था कि कैंची का चलना कोई अच्छी बात नहीं होती है। एक
दिन मां से पूछा था तो मां ने एक कहानी सुनाई थी।
जब कभी कोई पुराना दोस्त मिलता है तो बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं। इसी बहाने यादों पर पड़ी धूल की मोटी-मोटी परतें झाड़ने-पोंछने का मौका भी मिल जाता है।
युगों पुरानी बात है। एक शहर में नामी दरजी था। वो अच्छे कपडे ही नहीं सुनता था, बेहतरीन उपदेशक भी
था।
लोग अपने बच्चों को अक्सर उसके पास भेजते थे - जाकर कुछ शिक्षाप्रद बातें सीख आ।
घरेलू समस्याओं का निदान करने में भी निपुण था। कुछ लोगों को उसमें पहुंचे हुए
देवदूत के भी दर्शन होते थे।
एक अनाथ बालक अक्सर सुबह-सुबह उसके पास आकर बैठ जाता था। उस ज़माने में सिलाई मशीन
नहीं होती थी। हाथ से कपडे सिले जाते थे। वो अनाथ बालक बड़े ध्यान से उसे कपडे सिलते
देखता था।
दरजी ने तरस खाकर उसे अपना बेटा बना अपने पास रख लिया।
एक दिन उस बालक ने पूछा - अब्बू आप कैंची को हमेशा गद्दी के नीचे ज़मीन पर रखते
हो और सुई को सर पर रखी टोपी में खोंस लेते हो। ऐसा भला क्यों?
दरजी हंस दिया- इसका कारण यह है कि कैंची कपड़े को काटती है और सुई उस कटे हुए को
सिलती है। दोनों की भूमिका अलग अलग होती है। इसलिए काटने वाले को ज़मीन पर और जोड़ने
वाले को सर आंखों पर। इसीलिए कैंची ज़मीन पर और सूई टोपी में।
उस बालक ने उस दिन से बुरे को पैर के नीचे रखा और अच्छे को सर आंखों पर।
-वीर विनोद छाबड़ा २५-०३-२०१५
दोनों की भूमिका अलग अलग होती है। इसलिए काटने वाले को ज़मीन पर और जोड़ने वाले को सर आंखों पर। इसीलिए कैंची ज़मीन पर और सूई टोपी में। सही बात ! ज्ञानवर्धक कहानी !
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