-वीर विनोद छाबड़ा
दिलीप कुमार इश्क के मामले में हमेशा बदक़िस्मत रहे हैं। कामिनी कौशल से उनका लंबा
इश्क़ चला। लेकिन कामिनी शादी शुदा थी। उसका पति बीएस सूद बंदूक लेकर सेट के आस पास
घूमता रहता। फिर दिलीप किसी शादी-शुदा का घर तोड़ने की तोहमत अपने ऊपर लेना नही चाहते
थे।
दिलीप के दिल को अगला पड़ाव मधुबाला की दहलीज़ पर मिला। दोनों साथ-साथ तराना, संगदिल और अमर कर चुके
थे। ‘नया दौर’(१९५७) फ्लोर पर थी। मधु भी जल्दी ही दिलीप के दिल के दरवाजे़
पर दस्तक देने लगी। दोनों बेसाख्ता मोहब्बत में डूब गये। परंतु मधु के निठल्ले पिता
अताउल्लाह खान इस रिश्ते के सख़्त खि़लाफ़ थे। उन्हें डर था कि अगर कमाऊ चिड़िया हाथ से
उड़ गयी तो दर्जन भर लोगों का परिवार कौन चलायेगा? इसी मुद्दे पर मधु
इमोशनल हो जाती और दिलीप कुमार से दूर जाने की कोशिश करती। लेकिन बेमुरुव्वत मोहब्बत
दूर होने न देती। मधु की हालत न जीने की थी और न मरने की। ऐसा ही कुछ दिलीप के साथ
भी था। मगर मधु के पिता फूटी आंख नहीं सुहाते
थे।
बी.आर.चोपड़ा से ‘नया दौर’ की शूटिंग के अनुबंध को लेकर अताउल्लाह खान का झगड़ा हुआ। मामला
अदालत तक जा पहंचा। दिलीप ने बी.आर.चोपड़ा के पक्ष में गवाही दी। बताते हैं कि भरी अदालत
ने दिलीप ने ऐलान किया कि वो मधुबाला से बेसाख़्ता मोहब्बत करते हैं। असर यह हुआ कि
मधुबाला ‘नया दौर’ से बाहर हो गयी और साथ ही दिलीप की ज़िंदगी से भी। बाद में केस
भी चोपड़ा के पक्ष में गया। लेकिन दिलीप के कहने पर बी.आर.चोपड़ा ने मधु को जिल्लत से
बचाने के लिए केस वापस ले लिया।
मधु ने किसी से कहा -आपकी चाहत यहां थी। मोहब्बत यहां थी। फिर आपने ऐसा क्यों किया? चोपड़ा साहब का साथ
दे दिया।
मगर दिलीप और मधु एक दूसरे के दिल से नहीं गये। निजी जिंदगी का असर प्रोफेशनल रिश्तों
पर नहीं आये। इसके बहाने दोनों ‘मुगल-ए-आज़म’ करते रहे। मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये...इस गाने में मधुबाला ने मानों दिल का
हाल कह डाला। एक और सीन था जिसमें दिलीप कुमार एक पंख मधुबाला के चेहरे से छुआ कर मोहब्बत
का इज़हार करते हैं। यह तस्वीर विश्व प्रसिद्ध लव सीन में शुमार की गयी।
मधु के दिल में एक उम्मीद की किरण हमेशा रही। मधु ने दिलीप कुमार को पैगाम भिजवाया
- साहेब मैं आपसे शादी करना चाहती हूं। बस एक बार आप अब्बू को सॉरी कह दें। अब्बू आपको
गले लगा लेगें। सारे गिले-शिकवे जाते रहेंगे। घर के गोशे-गोशे में शहनाई गूंज उठेगी।
आप सेहरा बांध कर आयेंगे। मैं तो कबसे 'कबूल' कहने को बेताब हूं।
मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सख्त नफरत के चलते दिलीप को अताउल्लाह खान से सॉरी कहना
गवारा न था। और मधु बाप को नहीं छोड़ सकती थी।
ये नामुराद दिल होता ही ऐसा है। बात-बात पर टूटता है और सख़्त इतना कि पत्थर पिघल
जाये मगर दिल नहीं।
दिलीप ने जब १९६६ में सायरा बानो से शादी की तो मधुबाला ने कहा- साहब मेरे हिस्से
में थे ही नहीं। जिसका था वो ले गयी।
२३ फरवरी, १९६९ को मधु तमाम दुख-दर्द और हसरतें लिये इस दुनिया से रुखसत हो गई। उनकी ख्वाईश
थी कि उनके जनाज़े में साहेब शामिल न हों। इत्तिफ़ाक़ से उस दिन दिलीप शूटिंग के सिलसिले
में बंबई में नहीं थे। जब लौटे तो सीधे मधुबाला की कब्र पर गये और...।
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-वीर विनोद छाबड़ा
25-05-2015 Mob 7505663626
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