-वीर विनोद छाबड़ा
आइये आपको अकबर-बीरबल का एक किस्सा सुनाऊं। मौज़ू भी है। सुबह-सुबह
ताज़ा दिमाग है। पढ़ कर प्रसन्न होंगे। सारा दिन तर रहेंगे।
बादशाह अकबर का दरबार लगा है। नौ रत्नों सहित तमाम दरबारी हाज़िर
है। हंसी-ठिठोली का माहौल है। बादशाह अकबर ने आदतन एक ऐसी बात कर दी कि माहौल में चिंता
व्याप्त हो गई।
उन्होंने फरमाइश की - बीरबल चार ऐसे बेवकूफ मेरे सामने पेश करो
जो अपनी मूर्ख हरकतों की वज़ह से मशहूर हों।
बीरबल ने कभी न तो की नहीं। इस बार भी उनके माथे पर कोई फ़िक्र
और परेशानी की कोई सलवट नहीं आई।
बोले - जो हुक्म बादशाह सलामत। मगर एक दिन का वक़्त चाहिये।
बादशाह अकबर तैयार हो गए - मंज़ूर है।
बीरबल भेष बदल निकल पड़े शहर की गलियों की ख़ाक छानने। यों तो
एक नहीं सैकड़ों दिखे। लेकिन वो चाहते थे कोई विचित्र किस्म का बेवकूफ़, नालायक और गधा, जिसे देख बादशाह अकबर
वाह-वाह कर उठें।
तभी बीरबल को एक आदमी दिखा जो एक रेहड़ी पर मिठाई के डिब्बे, गहने और कई जोड़े नए-नए
कपड़े लाद कर ले जा रहा है।
बीरबल ने पूछा - किसकी शादी में जा रहे भाई?
वो आदमी बोला - मेरी बीवी ने दूसरी शादी की है। उसको बधाई और
उपहार स्वरूप यह सामान देने जा रहा हूं। चाहो तो तुम भी चलो।
बीरबल ने कहा - ज़रूर। लेकिन इसके बाद तुम्हें मेरे साथ बादशाह
के सामने पेश होना होगा। वो तुम्हें ईनाम-इकराम देंगे।
वो आदमी तैयार हो गया।
थोड़ी देर बाद बीरबल को एक और अजीब नज़ारा दिखा।
एक आदमी घोड़े पर सवार है और अपने सर पर घास-फूस का ढेर भी रखे
है।
बीरबल ने पूछा - ओ भले आदमी, यह क्या है? तुम घोड़े पर सवार और
तुम्हारे सर पर घास-फूस का बोझ।
उस आदमी ने कहा - मेरा घोडा बीमार है। उसे सुबह से बुखार है।
इसलिए मैंने घासफूस का गट्ठर अपने सर पर लाद रखा है ताकि उसे ज्यादा बोझ न उठाना पड़े।
इस तरह बीरबल को अपना मनपसंद दूसरा बेवकूफ़ मिल गया। उन्होंने
उसे ईनाम-इकराम का लालच देकर साथ ले लिया।
अगले दिन बीरबल ने बादशाह के दरबार में उन दोनों बेवकूफ़ों को
हाज़िर करते हुए उनकी मूर्खताओं का ब्यौरा पेश किया।
बादशाह खुश हुए। लेकिन सिर्फ दो ही बेवकूफ़ देख कर चिंतित होते
हुए सवाल किया - बीरबल यह तो दो हैं। बाकी
दो कहां?
बीरबल ने जवाब दिया - बादशाह सलामत, वो दोनों भी यहीं हाज़िर
हैं।
बादशाह अकबर हैरान हुए - कहां हैं वो दो? मुझे तो नहीं दिख रहे।
हाज़िर जवाब बीरबल ने कहा - गुस्ताख़ी माफ़ बादशाह सलामत। तीसरे
आप हैं, जिन्होंने ऐसी फरमाइश की और चौथा यह ख़ाकसार यानी मैं, जिसने ऐसी फरमाइश पूरी
की।
दरबार बड़ी देर तक एक के बाद एक जोरदार ठहाकों से गूंजता रहा।
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24.05.2015 mob 7505663626
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