-वीर विनोद छाबड़ा
हमारे शहर में एक चलता-फिरता बाज़ार है। बहुत ही पुराना।
कभी यह इसे हाट कहलाता था। मंगल को आलमबाग में तो बुध को महानगर गोलमार्किट से बादशाहनगर
तक। गुरुवार को नजीराबाद में। यहां सुई से लेकर सोफ़ा सेट तक मिल जाएगा। एक से बढ़ एक
धांसू और क्वालिटी प्रोडक्ट। हर ब्रांडेड आइटम का डुप्लीकेट। ओरिजिनल से भी मजबूत।
बेहद सस्ते मद्दे दामों पर। रईस लोग भी अच्छी संख्या में आते हैं। सबसे ज्यादा तादाद
अल्प आय और निम्न-मध्य वर्गीय समाज की होती है। महिलाएं तो हर वर्ग और धर्म की मिलेंगी।
हमारी मेमसाब भी कभी कभी बुध बाज़ार का चक्कर लगा लेती
है। एक बार वो बड़े प्यार से जर्सी खरीद लायी।
यों हमारी गिनती उन सब्र वालों में होती है जो कुछ कच्चा पक्का मिल जाए खा लेते हैं
और सस्ता मद्दा पहन भी लेते हैं। लेकिन वो जर्सी वाकई बहुत अच्छी थी।
यों हम इस धारणा के हैं कि घर में सुख- शांति रखनी है
तो मेमसाब के बनाये भोजन की भूरि भूरि प्रशंसा करो और बाजार से उनके द्वारा और उनकी
पसंद का लाया वस्त्र ही हमेशा धारण करो। यह हमारी खानदानी परंपरा रही है।
एक दिन हमारा स्कूटर दूसरे स्कूटर से भिड़ गया। हम बाल-बाल
बचे। मगर वो जर्सी फट गयी। बड़ा दुःख हुआ।
मेमसाब से कहा कि इसकी मरम्मत कर दो। कई बार कहा। परंतु
उन्हें टाइम नहीं मिला। यों स्त्रियां घर में इतना व्यस्त रहती हैं कि कुछ न कुछ ज़रूरी
काम भूल जाती हैं।
कई दिन गुज़र गए। कहते-कहते मुंह थक गया। जर्सी नहीं मरम्मत
हो पायी।
एक दिन हमने मेमसाब से कहा - वो… जो मेरे साथ दफ़्तर में काम करती है न। उसे तो तुम जानती ही हो। उसे वो जर्सी बहुत
अच्छी लगती है। कह रही थी कि वो जर्सी उसे दे दूं। ऐसा पैबंद लगाएगी कि लोग समझेंगे
कि डिज़ाइन है। मैं सोचता हूं उसे दे ही दूं। दिन भर दफ्तर में निठल्ली इधर से उधर टूलती
रहती है। इसी बहाने कुछ काम ही कर लेगी।
मेमसाब ने हमें घूरा और बोली- ठीक है। कल दोपहर में तलाश
करूंगी। जाने कहां रखी है।
दूसरे दिन दफ़्तर से जब हम शाम घर पहुंचे तो देखा कि एक
नई जर्सी रखी थी। साथ में एक लांग कोट भी था। हमने उलट-पलट कर देखा। काफी महंगे थे। मेमसाब हमारे लिए खरीद कर लायी थी।
हमने कहा - बहुत खूब। अच्छा, वो पुरानी वाली जर्सी, जो फट गयी थी…
हमारा वाक्य पूरा होने से पहले ही मेमसाब बोली - वो मैंने
पुराने कपडे लेने वाले को दे दी। उसके बदले एक ग्लास और कटोरी ले ली है।
हमने उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
इसे कहते हैं आवश्यकता अविष्कार की जननी। मेमसाब से काम
कराने का नया तरीका पता चल गया। आप भी आजमाइए। वो नई आठ-दस पहनी और लांग अभी गुजरी
सर्दी तक तो पहना है। अगली सर्दी में बारहवां साल लगेगा।
नोट - यह हमारी एक पुरानी पोस्ट है, जिसे हमने कतर-ब्योंत कर दुरुस्त किया है।
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21-05-2015 mob 7505663626
D-2290, Indira Nagar, Lucknow-226016
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