Thursday, May 28, 2015

लोटनराम बनाम किसनबाबू!

-वीर विनोद छाबड़ा
मुद्दत बाद आज रामलोटन से मुलाक़ात हुई। गुज़रे कल का साथी। ऑफिस में मेरा सहयोगी।
बेहतरीन टाइपिस्ट है। किस्मत की मार कि अनुचर भर्ती हुआ।
मुझे याद आया कि कुछ सिफ़ारिशी महिलायें बरसों से काम कर रहे थे। बिना टाइप टेस्ट पास किये उनका इन्क्रीमेंट नहीं लगा था। प्रशासन पर 'ऊपर' से दबाव आया। ऐसे में प्रशासन की सहमति से रामलोटन ने महिलाओं के स्थान टाइप टेस्ट दिया। इस कारण से रामलोटन महिलाओं का दुलारा रहा।
रामलोटन को भी परमानंद की अनुभूति होती। वहीं दूसरी ओर उसके अधिकारी किसनबाबू अपने खड़ूस स्वभाव के कारण महिलाओं की पहली नापंसद रहे। इस कारण से उनमें और रामलोटन में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा।
किसनबाबू को रामलोटन का सलीके से रहना, बढ़िया वेशभूषा, स्टाइलिश हेयर-कट, बार-बार ज़ुल्फ़ों को संवारना और हर घंटे चेहरे पर फेसक्रीम चुपड़ना भी कभी रास नहीं आया।
किसनबाबू के सिर पर बीच का इलाका बिलकुल खाली था, जिसे ढकने के लिए वो दायें-बाएं से बालों को किसी तरह खींच कर लाते और फिक्सो से चिपका देते। 
रामलोटन के जेब में पर्स और उस पर्स में एक लड़की की तस्वीर। बकौल रामलोटन उसकी पत्नी की थी। अक्सर वो इस तस्वीर को एक महिला विशेष को दिखाया करता। वो मुस्कुरा दिया करती। रामलोटन उससे अपनी फीलिंग भी शेयर किया करता। यह देख किसनबाबू आगबबूला हो उठते। सीनियर लोग बताते कि उनका उस महिला पर एकतरफा अधिकार है। उसके दर्शन से उनके दिल को ठंडक पहुंचती और जीवन धन्य हो जाता।
हालांकि रामलोटन और उस महिला के मध्य ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं था। मकसद था किसनबाबू को चिढ़ाना। किसनबाबू को भनभनाते देख उन्हें मज़ा आता।
सुंदर-सुंदर महिलायें देखने की गरज़ से किसनबाबू ऑफिस के बाद नित्य हज़रतगंज की कम से कम दो बार शंटिंग ज़रूर करते थे। मगर कोढ़ में खाज। वहां भी रामलोटन किसनबाबू को टहलता मिल जाता। ऐसे में रामलोटन उनको सलाम करना कभी नहीं भूला। किसनबाबू बिलबिला कर रह जाते। उनके ख्याल से हज़रतगंज में टहलने का हक़ सिर्फ़ अंग्रेज़ी बोलने वाले अमीरों और अफसरों को है। वो उस अंग्रेज़ी ज़माने को याद करते जब हज़रतगंज में भारतीयों का प्रवेश निषेध था।
जल्द ही किसनबाबू को सबक सिखाने का मौका मिला। लोटनराम को एडवर्स एंट्री दे दी। नियमानुसार लोटनराम का जवाब-तलब हुआ।
प्रशासन किसनबाबू के पीछे और कर्मचारी यूनियन लोटनराम के पीछे।
एक ही तरीका था। कांटे से कांटा निकालना।
लोटनराम ने स्पष्टीकरण में लिखा - किसनबाबू ने अश्लील साहित्य और कैसेट लाने को कहा था। 
लोटनराम के इस स्पष्टीकरण पर हड़कंप मच गया। किसनबाबू का साथ दे रहे तमाम साथी अफसर भी किनारा कर गए। दरअसल, वो इन मामलों के लिए ख़ासे बदनाम भी थे। सभी का ख्याल था कि लोटनराम सही है। बद अच्छा बदनाम बुरा।

किसनबाबू से जवाब देते नहीं बन पड़ा। थक-हार कर वो यूनियन की शरण में आये-अरे भई, मैं कब लोटनराम का बुरा चाहता हूँ। मेरा इरादा तो उसे एडवाइस करना था। अब गलती से एडवर्स वाले बिंदु पर टिक लग गया। आखिर मैं भी इंसान हूं। हो गयी गलती। और फिर गलती तो सुधारी भी जा सकती है। लोटनराम तो मेरे भाई जैसा है.
ये कहते हुए किसनबाबू की आंखों में आंसू आ गए। उनका प्रमोशन ड्यू था क्लास-टू से क्लास-वन में और लोटनराम का भी, क्लास-फोर से क्लास-थ्री में। हम सब के दिल भी पसीज गए। लीपा-पोती करके मामला ख़त्म कराया गया। लोटनराम और किसनबाबू का भरत-मिलाप हुआ।
मैंने और लोटनराम ने चाय की चुस्कियों के बीच इस याद को ताज़ा किया। मरहूम किसनबाबू की आत्मा की शांति के लिए परमात्मा से दुआ की।

और रामलोटन से जल्दी ही फिर मिलने का वादा करके मैं घर लौट आया।
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28-05-2015 mob 7505663626
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