-वीर विनोद छाबड़ा
उन दिनों मैं हाई स्कूल में था। एक दोस्त की मेहरबानी से अंग्रेज़ी स्कूल में एक
प्ले देखने को मिला- दि बिशप्स कैंडिलिस्टिक्स। विक्टर ह्यूगो की कहानी 'लेस मिसरेबल' पर आधारित नार्मन मकिन्नल
का नाट्य रूपांतरण। बेहद दिलचस्प यह नाटक आज भी याद है।
मोसिन्योर नाम के शहर के बिशप बहुत दयालु, नेक और शांतिप्रिय
इंसान हैं। उनको कोई भी बातों में उलझा कर या भावुक बना कर आसानी से ठग ले। मां की
तरह डांटने वाली छोटी बहन परसोम हमेशा खुन्नस खाती रहती कि दान-दक्षिणा के चक्कर में
घर का सारा सामान गायब हो रहा है। लेकिन मोसिन्योर हंस कर टाल देते।
एक दिन रात को उनके घर में एक चोर घुसा। हाथ में बड़ा सा छुरा। शक्ल सूरत से इतना
खूंखार कि देखते ही डर लगे।
लेकिन मोसिन्योर उसे देख कर डरे नहीं। बोले - बेटा तुम कौन हो? क्या चाहते हो?
चोर ने बताया - मैं चोर हूं। मैं तुम्हें लूटने आया हूं। फिलहाल मैं बहुत भूखा
हूं। रसोई किधर है?
मोसिन्योर चोर को रसोई में ले गए। चोर ने रसोई में रखा सारा भोजन मिनटों में चट
कर लिया।
इस बीच चोर ने बताया - मैं जन्म से चोर नहीं हूं। हालात ने चोर बनाया। उन दिनों
मेरी पत्नी बहुत भूखी और बीमार थी। उसकी विपदा मुझसे बर्दाश्त नही हुई। मैं उसके लिए
चोरी करने पर मजबूर हुआ। मगर मेरी बदकिस्मती रही कि पकड़ लिया गया। मुझे दस साल की जेल
हो गयी। इस बीच मेरी पत्नी का देहांत हो गया। जेल में मैंने बहुत कष्ट सहे हैं। बरदाश्त
से बाहर हो चुका है। आज मौका मिला तो जेल से भाग लिया। शायद पुलिस मुझे तलाश कर रही
है।
चोर ने जब भरपेट भोजन कर लिया तो मोसिन्योर ने उसके सोने के लिए बिस्तर का इंतज़ाम
कर दिया। लेकिन चोर का इरादा वहां एक पल भी रुकने का नहीं था। उसने छुरे की नोक पर कैंडल स्टैंड उठा
लिया। यह चांदी का था और मोसिन्योर की दिवंगत मां की आख़िरी निशानी थी। मोसिन्योर को
बहुत दुख हुआ।
छोटी बहन ने शोर मचाना चाहा लेकिन मोसिन्योर ने उसे चुप करा दिया और चोर को वहां
से सुरक्षित निकल जाने दिया।
थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई। मोसिन्योर ने दरवाजा खोला।
सामने एक सिपाही था। उसने उस चोर को गर्दन से पकड़ रखा था। सिपाही ने कहा - मैंने
आपके घर पास इसे संदिग्धावस्था में देखा। यह यूं ही टहलने का मक़सद नही बता सका। इसकी
तलाशी ली तो यह चांदी का कैंडल स्टैंड बरामद हुआ। मेरे ख्याल से यह आपका है और इसने
चोरी की है।
मोसिन्योर ने कहा - नहीं, नहीं। यह चोर नहीं है। यह तो मेरा मित्र है। और यह कैंडल स्टैंड मैंने इसे उपहार
में दिया है।
सिपाही को मोसिन्योर की बात पर यकीन हो गया। उसने चोर को छोड़ दिया।
चोर बिशप मोसिन्योर के क़दमों पर झुक गया। उसे अपने कृत्य पर बहुत ग्लानि हुई। वो
भल-भल कर रोने लगा। उसने वादा किया - मैं आइंदा चोरी नहीं करूंगा। एक भला आदमी बन कर
रहूंगा। मैं यहां से पेरिस जाना चाहता हूं। वहां मुझे पुलिस नहीं तलाश पाएगी।
मोसिन्योर ने चोर को गले लगा लिया। चांदी का वो कैंडल स्टिक उसके पास ही रहने दिया।
सुरक्षित पेरिस जाने का रास्ता बताया।
चोर ने मोसिन्योर को तहेदिल से धन्यवाद दिया।
चोर के जाते ही बिशप मोसिन्योर ने घुटनों के बल झुक कर ईश्वर को अश्रुपूर्ण शब्दों
में याद किया - ईश्वर मुझे माफ़ करना। लेकिन मुझे यकीन है कि आज मैंने एक इंसान को सुधार
दिया है।
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१५-०५-२०१५ mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar Lucknow-226016
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