-वीर विनोद छाबड़ा
जॉर्ज वॉशिंगटन। १७८९ से १७९८ तक अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति रहे।
उनके बारे में एक किवदंती प्रचलित है।
एक दिन वो प्रजा का हाल जानने के लिए आम आदमी बन कर निकले। रास्ते में एक जगह भवन
निर्माण कार्य चल रहा था।
कौतूहलवश जॉर्ज एक किनारे खड़े होकर मज़दूरों को काम करता हुआ
देखने लगे। उस समय सारे मज़दूर एक बड़ा पत्थर उठा रहे थे। लेकिन बहुत ज़ोर देने के बावजूद
पत्थर नहीं उठ पा रहा था।
ठेकेदार मज़दूरों का हौसला बढ़ाने की बजाये उन्हें कस कर डांट रहा था।
जॉर्ज को लगा यदि एक और मज़दूर की ताक़त लगा दी जाए तो पत्थर उठ सकता है। उन्होंने
ठेकेदार से कहा - अगर आप स्वयं भी जुट जायें तो संभवता यह समस्या हल हो जाएगी।
ठेकदार राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन को तो पहचानता नहीं था। उसने इंकार कर दिया
- मेरा काम कम से कम मज़दूरों से ज्यादा से ज्यादा मज़दूरी कराना है न कि स्वयं मज़दूरी
करना।
तब जॉर्ज घोड़े से उतरे और उन मज़दूरों की मदद करने में लग गए। और सचमुच पत्थर उठ
गया।
जॉर्ज ने ठेकदार से कहा - अगर भविष्य में तुमको एक मज़दूर की कमी महसूस हो तो राष्ट्रपति
भवन आकर जॉर्ज बुश को याद कर लेना।
यह सुनते ही ठेकेदार के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। यह तो स्वयं राष्ट्रपति जार्ज
वाशिंगटन हैं। वो माफ़ी मांगने लगा।
जॉर्ज ने
कहा - मेहनत करने से आदमी छोटा नहीं होता। मज़दूरों की मदद करने से मज़दूरों का हौंसला
बढ़ता है और सम्मान भी हासिल होता है। व्यवहार में विनम्रता लाओ।-----
-वीर विनोद छाबड़ा
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