-वीर विनोद छाबड़ा
हम भारतीय हैं। हर जान की कीमत जानते हैं। खून-पसीने की कमाई है। लड़ कर लेंगे पाई-पाई।
जब तक पाई-पाई नहीं वसूल लेते, ओ मुसाफ़िर जायेगा कहां?
टूथपेस्ट की ज़िंदगानी को ही लो। जोर जबर कर पूरी की पूरी निचोड़ते हैं। अब और ताकत
नहीं। फिर हथोड़ी से कूचते हैं। प्लास से गला दबाते हैं। निकल साली जाएगी कहां? और फिर कैंची से काट
उसका पोस्टमार्टम करते हैं। पेट से लेकर गला तक फाड़ डालते हैं। वहशी की तरह चाट मारते
हैं। जब तक खाली सतह न दिखे।
पड़ोसी के पास फ़ुरसत नहीं है। हमेशा ताक में रहते हैं। उसने फेंकी नहीं कि हम उठा
लाये। चार-पांच दिन निकल जाते हैं।
ऐसा ही हश्र टूथ ब्रश का है। बेचारा रिटायर होने के बाद भी चाकरी करता है। जनता
जनार्दन की कोशिश रहती है कि खरीदना न पड़े। किसी स्कीम में मुफ़्त मिल जाए। कोलगेट की
डबल डेकर स्कीम में मुफ़्त मिलता ही है।
अब इसे कितना घिसना है यह मैन टू मैन डिपेंड करता है। तीन से चार महीना या साल
भर तक। चबाने वाले तो पंद्रह ही दिन में ऐसी-तैसी करते हैं।
सयाने लोग दन्त सेवा के बाद बाल काले करने के दस्ते में इस्तेमाल करते हैं। यहां काफ़ी वक़्त गुज़रता है।
बेचारा ब्रश खासी घिसाई के बाद चैन की सांस लेता है - चलो फ़ुरसत। अब दफ़न का वक़्त
हो चला।
अरे कहां चला साथिया? अभी तो तुझे मशीन साफ़ करने की सेवा करनी है।
कुछ महीने वक़्त गुजारने के बाद- बाबू जी अब चलूं।
अरे रुक न। जल्दी क्या है? आ तेरी मुंडी तोडूं।
हां, सिरमुंडे अब तू अच्छा लगता है। पंजाब में तेरा नाम 'नाला पावड़ी'। सलवार-पायजामे में
नाला डालने में मदद सिर्फ़ तू ही कर सकता है। और तब तक करेगा जब तक कि पड़ोसी की नज़र
नहीं पड़ेगी - मेरा वाला जाने कहां खो गया। ज़रा अपना वाला दीजिये। भरे हृदय से बिदाई।
मालूम है अब तू नहीं आएगा। पिछले साल भर में तुझसे पहले इसी तरह चार तो जा चुके हैं।
कई भाई दांत घिसने के बाद इसे सीधे मशीन में या सोफे के कोने या इसी तरह के अन्य
कोने साफ़ करने पर लग जाते हैं।
कुछ लोग पीठ खुजाने का लुत्फ़ भी उठाते हैं। ऐसे लोगों की जेब में और कार के ग्लोव
बॉक्स में भी तुझे शोभा बढ़ाते देखा है। न जाने कब कम्बख़्त पीठ में खुजलाहट शुरू हो
जाए।
नन्हा पौधा नहीं खड़ा हो पा रहा होता है तो उसका सहारा भी तू बनता है।
मित्र की स्कूटर क्लिनिक में कार्बोरेटर साफ करने में तुझे यूज़ होते देखा है। जहां
तहां मत पूछो कहां कहां। हर जगह विराजमान है तू।
ख़ुशी होती है मैं तुझे कूड़ेदान में यदा-कदा ही पड़ा पाता हूं। अफ़सोस होता है उन
पर जिन्हें तेरी क़द्र नहीं मालूम।
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18-05-2015
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