-वीर विनोद छाबड़ा
हम जब भी गुड़हल के
पेड़ को देखते हैं हम तीस साल पीछे डाउन मेमोरी लेन में चले जाते हैं।
हम शहर से बाहर एक
नए मकान में शिफ़्ट हुए हैं। पत्नी ने मायके से लाकर लॉन में एक गुड़हल का पौधा रोपती
है। पेड़-पत्ती के मामले में हम हमेशा पॉजिटिव रहे हैं।
कुछ महीनों बाद में
वो पौधा बड़े पेड़ में कन्वर्ट हो गया। सुर्ख लाल फूल निकले। सुबह-सुबह पूजा के लिए फूल
की डिमांड बहुत है। चूंकि पेड़ चारदीवारी के काफी अंदर है और फूल चाहत वालों में महिलाएं
ज्यादा है, और ताकि उन्हें कष्ट न हो, इसलिए हम सुबह गेट
जल्दी खोल देते हैं। हम भी सुबह वहां कुर्सी डाल बैठ जाते हैं और चाय की चुस्कियों
के साथ अख़बार पढ़ते हैं।
उस दिन सुबह सुबह के
वक़्त गेट पर आहट हुई। एक भद्र महिला खड़ी हैं। उसने विनम्र नमस्कार किया - दो-चार फूल
चाहिए।
हमने गेट खोल दिया।
शुक्रिया कहते हुए वो अंदर आ गयी। फूल तोड़ते-तोड़ते खुद ही बताने लगी - कुछ दिन पहले
पिछली गली में किराये पर घर लिया है। कुछ महीने बाद। अपना घर बनवा रहे हैं न सेक्टर
बारह में।
फूल थोड़ा ऊंचाई पर
थे। हमारा भी हाथ नहीं पहुंच पाया। हम अंदर से स्टूल उठा लाये और चढ़ गए। थोड़ा डर लगा।
गिर न जाऊं। जाने कैसे वो हमारे दिल के भाव की मैपिंग कर गई। उसने स्टूल कस कर पकड़
लिया।
फूल हाथ में आ गया।
हमारा सीना गर्व से फूल उठा। जैसे कोई किला फ़तेह कर लिया है। वो भी बड़ी खुश हुई। बच्चों
की तरह ताली बजाने लगी।
हमें उनकी इस अदा पर
हंसी आ गयी। हमने कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। वो बिना हिचक बैठ गयीं। शिष्टाचारवश
हमने चाय के लिए पूछा। वो हंस दी।
हमने इसे हां समझ कर
पत्नी को आवाज़ दी। उस वक्त वो ऊपर छत पर सफाई करने गयी हुई थी। वो नीचे आईं। उन्होंने
सर से पांव उस भद्र महिला का एक परीक्षक की भांति परीक्षण किया। हमें उनका यह अंदाज़
कुछ ठीक नहीं लगा। मौसम में गर्मी अपेक्षाकृत ज्यादा महसूस हुई। हमने परिचय देना चाहा।
परंतु पत्नी ने मौका ही नहीं दिया - मैं जानती हूं। फूलमती हैं। पीछे गली में चतुर्वेदन
के मकान में किरायेदार हैं।
हमने महसूस किया कि
पत्नी की आवाज़ में थोड़ी तल्खी है। तभी उसकी निगाह स्टूल पर पड़ी। इससे पहले कि वो पूछती
मैंने बताया - फूल ऊंचा लगा था। इसलिए……
पत्नी स्टूल उठा कर
अंदर ले जाती हुई बोली - अभी बनाती हूं चाय।
उस भद्र महिला ने खुद
से दोबारा बोलना शुरू किया - मेरे पति बिजली के सामान की ठेकेदारी करते हैं। बड़ी बड़ी
सरकारी बिल्डिंगों का इलेक्ट्रिफिकेशन.…
इतने में पत्नी चाय
ले आयी। चाय रिकॉर्ड टाइम में बनी है। मतलब यह कि जल्दी से चाय पिए और दफा हो।
अच्छा हुआ कि पत्नी
भी साथ में चाय पीने बैठ गयी और इस बीच हमें उठ कर भागने का मौका मिल गया। जल्दी से
तौलिया उठाया और बाथरूम में नहाने घुस गए। दस मिनट बाद बाहर निकले तो पाया कि फूलमती
जा चुकी हैं। पत्नी के चेहरे पर तनाव की लकीरें हैं। हमने खामोश रहना बेहतर समझा। चुपचाप
नाश्ता निगला। इससे पहले इतने ख़ामोशी और डरावने माहौल में हम कभी दफ्तर कभी नहीं गए।
सारा दिन बड़ी टेंशन
में कटा। आखिर हमारी गलती क्या है? उसकी ग़लती भी नहीं है। बेचारी फूल ही तो तोड़ने
आई थी।
शाम हम भारी दिल से
दबे पांव घर पहुंचे। पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी। गुड़हल का पेड़ वहां नहीं था।
इससे पहले कि हम कुछ
पूछते पत्नी ने बताया कि कटवा दिया। दीमक बहुत आ गयी थी।
हमें हंसी आ गई। शक़
का ईलाज न धन्वंतरि वैद्य के पास है और न हकीम लुक़मान के पास। लेकिन दुःख हुआ कि बेचारा
गुड़हल बलि चढ़ गया।
अगले दिन हमें सुबह
सुबह फूलमती दिखीं। हमें देख कर व्यंग्य से मुस्कुराई।
उसके बाद हमें फूलमती
कभी नहीं दिखी। चली गई होगी किसी और मोहल्ले में। एक और गुड़हल की बलि चढ़वाने।
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Published in Prabhat Khabar dated 12 April 2017
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