Saturday, April 8, 2017

मच्छरनियों का विधवा विलाप

- वीर विनोद छाबड़ा
जब मच्छर भनभनाते हैं तो हमें अपने बालपन और किशोरावस्था के कुछ संस्मरण याद आते हैं।

साठ और सत्तर के दशक में शहर की घनी जनसंख्या वाले कुछ ऐसे वाले इलाके होते थे जहाँ एक भी मच्छर नहीं था।
एक साहब ने बहुत रिसर्च करके इसकी वजह यह बताई - अमां मियां यहां इंसानों के रहने के लिए तो जगह नहीं है, तो तुम्हीं सोचो कि वहां भला मच्छर कैसे रहेगा?

उन दिनों हम लखनऊ के चारबाग़ रेलवे स्टेशन के सामने मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में रहा करते थे। आज वहां इस बिल्डिंग का वज़ूद ही नहीं है बल्कि मेट्रो रेल का स्टेशन खड़ा है। बहरहाल, स्टेशन के सामने होने के कारण मेहमान बहुत आते थे। मई-जून की गर्मियों में हमें कोई दिक्कत नहीं होती थी। खुली छत पर सोने की व्यवस्था हो कर दी जाती था। कूलर का चलन नहीं था। टेबुल फैन की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। प्रकृति की ओर से ठंडी ठंडी हवा का इंतज़ाम रहता था। एक और कारण यह था कि उन दिनों वहां मच्छर नहीं होते थे। लिहाज़ा शहर के दूसरे मोहल्लों, जहां मच्छर बहुत पाए जाते थे, में रहने वाले कई रिश्तेदार और दोस्त, और कभी कभी उनके घर आये मेहमान भी, उन दिनों शाम होते ही अपना भोजन बड़े-बड़े टिफ़िन कैरियर में भरकर चले आते थे - चलिए आपके घर रात में पिकनिक हो जाए।
हंसी-मज़ाक करते और अंताक्षरी के बहाने एक-दूसरे को गाने सुनाते-सुनते अक्सर रतजगा हो जाता था। और फिर यहां मच्छर नहीं है। रात सकून से गुज़र जाती थी।
एक साहब तो फ़रमाते थे कि क्या बताऊं अपने मोहल्ले में इतने ज्यादा मच्छर हैं कि मच्छरदानी सहित खटिया लिफ्ट कर लें।
हां, एक प्रॉब्लम थी हमारे उस चारबाग़ वाले मकान में। सुबह जब सो कर उठते थे तो सबके मुंह काले होते थे। सामने स्टेशन से आता स्टीम-कोयला इंजिनों के धुंए में मिली महीन पाउडर सामान काली राख चेहरों पर पुती हुयी मिलती थी।
लेकिन सत्तर  के दशक के अंतिम दो वर्षों में मेहमानों की संख्या एकाएक कम हो गई थी। वजह यह थी कि किसी दिलजले ने घर-घर में खटमल छोड़ दिए, खून चूसने के लिए।
मच्छरों कीं इंतहा के सिलसले में हमें अपने ज़माने का एक लतीफ़ा भी याद आता है।
एक लाट साहब ने मच्छर मारने के लिए बाकायदा फुल्ल टाईम नौकर रखा। मगर इसके बावजूद मच्छर एक भी कम नहीं हुआ।
दिन रात भन्न भन्न किया करते थे। लाट साहब बहुत नाराज़ हुए नौकर पर।
इधर नौकर भी ठहरा ज़बरदस्त जुमले बाज़।

सफाई मांगने पर उसने बताया कि सर, मच्छर तो मैंने सारे मार दिए हैं। और यह जो भनभनाहट आप सुनते हैं न, यह मच्छर नहीं हैं बल्कि मरे हुए मच्छरों की विधवाओं का विलाप है।
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08-04-2017 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

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