- वीर विनोद छाबड़ा
हमारी गली में एक कुतिया ने एक साथ छह पिल्ले जने। देखने वाले बच्चों की तो मौज
हो गई। पिल्ले थोड़ा चलना सीखे तो इधर-उधर कूदने लगे।
दो पिल्ले एक स्कूल बस के नीचे आ गए। बेचारी
कुतिया उनके पास कुछ देर तक बैठ कर कातर दृष्टि से उन्हें देखती रही। फिर वहां से वो
चली गई। आस-पास खेल रहे बच्चे सहम गए। उनका मन खट्टा हो गया। वे घर चले गए।
हम उस समय बाज़ार जा रहे थे। आधे घंटे बाद लौटे तो देखा वे कुचले हुए दोनों पिल्ले
गायब हैं। सड़क पर सिर्फ़ थोड़ा खून फैला हुआ था। कहां गए वे पिल्ले? ज़मीन खा गयी, या आसमान निगल गया।
हमारे पड़ोसी का कहना है कि दो मोटे-मोटे बिल्ले उनके आसपास घूम रहे थे और आवारा कुत्तों
का झुंड भी मंडरा रहा था। हो सकता है कि उनमें शायद कोई उन पिल्लों का बाप भी हो।
अब बाकी चार पिल्लों का कुतिया बहुत ध्यान रखने लगी। हमेशा आस-पास ही टहलती रहती।
भोजन की तलाश में जब उसे कहीं दूर जाना होता था तो पिल्लों नाली के ऊपर रखी सिल्ली के नीचे छिपा देती थी।
एक दिन हमने गौर किया कि अब चार नहीं दो पिल्ले दिखते हैं। हम गहरी सोच में डूब
गए। दो पिल्ले आखिर कहां गए? टहलते हुए कहीं दूर निकल गए और वापसी का रास्ता भूल गए? या फिर कोई उन्हें उठा ले गया? या फिर फिर कुत्ते ही उन्हें मार कर खा गए? मोटे मोटे बिल्ले अभी
भी इधर-उधर टहला करते हैं। कुछ भी कयास लगाया
जा सकता है।
अब दो पिल्ले बचे हैं। कुछ बड़े हो गए हैं। हर आने-जाने वाले की टांगों में लोट-पोट
होते हैं। कुछ समझदार भी हो गए हैं। वाहन आते देख कर किनारे हो जाते हैं। उसमें से
एक काला-सफ़ेद थोड़ा तंदरुस्त है। दूसरा भूरे रंग का है, कमजोर सा दिखता है।
कुछ दिन पहले वो लंगड़ा कर चल रहा था। उसकी पिछली टांग में कुछ प्रॉब्लम थी। पड़ोसी यादव
जी की मदद बच्चों ने उसकी टांग पर एक लकड़ी की पटरी बांध दी। हफ्ते भर में वो ठीक हो
गया।
पिल्लों की मां अब बेपरवाह हो गयी है। जाने कहां दिन भर गायब रहती है। बस सुबह-शाम
दिखती है। पिल्लों को दूध पिला कर फिर गायब हो जाती है।
न जाने क्यों हमें फ़िक्र लगी रहती कि इन पिल्लों का क्या होगा? हमें मालूम नहीं है
कि ये पिल्ले वयस्क हो पाएंगे? या इससे पहले ही गायब हो जाएंगे?
अगर वयस्क हो भी पाए तो क्या अपनी पूरी ज़िंदगी जी पायेंगे? या किसी वाहन तले कुचल
कर मर जाएंगे? हमने ज़िंदगी में ऐसे अनेक वाकये देखे हैं। किसी को पूरी ज़िंदगी जीते नहीं देखा।
कुछ महीने बाद फिर कोई कुतिया आधा दर्जन पिल्लों को जन्म देगी। उनका भी यही हश्र होगा।
लेकिन कालू उनमें थोड़ा अपवाद था। हमारे एक पडोसी व्यास जी के घर बाहर ही पड़ा रहता
था। छह-सात साल ज़िंदा रहा। बहुत बीमार हो गया था। दिन-रात रोता रहता था। उसके रुदन
से सब लोग दुखी थे। व्यास जी ने डॉक्टर को बुला कर भी दिखाया। उन्होंने बताया कि इसके
सारे अंग ख़राब हो चुके हैं। आखिरी समय है। कुछ हो नहीं सकता। फिर भी कुछ दवा दी।
एक दिन हम शाम को ऑफिस से लौटे तो कालू की आवाज़ नहीं आ रही थी। पता चला कि मर गया।
व्यास जी उसे एक बोरे में डाल कर दूर कहीं छोड़ आये थे।
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17-04-2017 mob 7505663626
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Lucknow - 226016
अब आपकी सभी पोस्ट एक जगह बहुत सुंदर
ReplyDeleteअब आपकी सभी पोस्ट एक जगह बहुत सुंदर
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