Saturday, July 15, 2017

अब नंबर ही तेरी पहचान है

- वीर विनोद छाबड़ा
अभी कुछ माह पहले की बात है। एक रिटायर चीफ़ इंजीनयर साहब पेंशन की मद में प्राप्त भुगतान का विवरण लेने ऑफिस गए।
बाबू ने कोड नंबर पूछा। चीफ़ साहब ने अपना नाम बताया। बाबू ने फिर कोड पूछा। चीफ़ साहब ने फिर नाम बताया।
बाबू झल्ला गया - नाम नहीं कोड बताएं।
बात बढ़ गयी। हम वहीं खड़े वार्तालाप सुन रहे थे। हमने हस्तक्षेप करते हुए चीफ साहब को समझाया - सर, वो दिन चले गए जब... मेरा नाम ही मेरी पहचान है...अब यहां आदमी की पहचान न तो उसका नाम है, न जाति, न धर्म और न पदनाम।
अंततः चीफ़ साहब बैरंग चले गए यह कहते हुए कि उनकी सारी डिटेल्स उनके पुराने बाबू से के पास है, वही बताएगा। 
आज हम टीडीएस सर्टिफिकेट लेने ऑफिस गए। बाबू हमारा नाम जानता है। लेकिन हमें मालूम है कि नाम में क्या रखा है। हमने अपना पैन नंबर बताया। बाबू संतुष्ट नहीं हुआ। वो कोड नंबर बताएं हो हमने आपको अलॉट किया है। हमने याद करते हुए बताया। बाबू ने उसे मशीन में फ़ीड किया। 'की' प्रेस की और दो सेकंड में सर्टिफिकेट हाज़िर।
बैंक में भी यही हाल है। अगर आपको अकाउंट नंबर नहीं मालूम है तो आप मुश्किल में हैं। हमारे तो तीन बैंक में अकाउंट है। तीनों के नंबर फर-फर याद हैं। काश ऐसी याददाश्त स्टूडेंट लाईफ़ में रही होती तो जाने कहां होते! अब बैंकों में मशीनें लग गईं हैं। आपकी पास बुक पर स्टीकर चिपका दिया जाता है। नंबर याद नहीं तो भी कोई बात नहीं। मशीन में पास-बुक डालिए और एंट्री हो गई। खुश!
मोबाईल का बिल जमा करने गए तो उसने शक्ल देखते ही कहा, नंबर बताएं। डीटीएच का पैसा जमा करना है तो उसका अलग नंबर है। हर काम के लिए अलग नंबर है। कितने नंबर बंदा याद रखेगा। 
अब सरकार ने आधार कार्ड ज़रूरी कर दिया है। इसका भी एक लंबा चौड़ा नंबर है। इसके बिना तो अब गति नहीं है। उम्मीद है कि निकट भविष्य में बिना आधार कार्ड नंबर क सुलभ शौचालय में घुसने को नहीं मिलेगा। नवजात के भी आधार कार्ड बनवाया जा रहा है। हो सकता है कि विवाह कराने वाले पंडित जी भी आधार कार्ड देखे बिना विवाह संपन्न नहीं कराएं। ट्रेन में यात्रा करते समय आधार कार्ड ज़रूरी हो गया है।  अभी कुछ दिन पहले एक काम से ट्रेज़री जाना हुआ। हम अफ़सर रहे हैं तो सीधा अफ़सर के पास गए। अपना परिचय दिया। उन्होंने हमारी समस्या सुने बिना सीधा बाबू की तरफ ठेल दिया। हम बाबू के पास पहुंचे। बताया कि हम फलां फलां हैं। उसने कहा यहां हम आदमी की पहचान नाम से नहीं बैंक के अकाउंट नंबर से है। बाद में वो समझाने लगा कि एक नाम के कई लोग हो सकते हैं, लेकिन अकाउंट नंबर एक ही होगा।
एक साहब बता रहे थे कि सोचता हूं कि शरीर पर टैटू की जगह नंबर खुदवा लूं। जो नंबर मांगे कपड़े उतार कर खड़े हो जाओ। नोट कर भाया, जो भी तुम्हारे मतलब का हो।
हम सोचने लगे कि हमारे माता-पिता को शायद भविष्य का ज्ञान था। तभी तो उन्होंने हमारा नाम बहुत छांट कर रखा था। लाखों में एक। और शायद दुनिया में हमारे नाम जैसा दूसरा नहीं। लेकिन अब सब बेकार हो गया है। नाम नहीं, हर जगह नंबर ही पूछा जाता है - व्हाट इज़ यूअर मोबाईल नंबर, व्हाट इज़ यूअर पेन नंबर... व्हाट इस यूअर आधार नंबर...व्हाट इज़ यूअर स्टाईल नंबर... भाया नाम तो गियो तेल लेने, अब तो नंबर ही तेरी पहचान है। व्हाट ऐन आईडिया सर जी!

लेकिन बावजूद इसके हम उदास नहीं हैं। फेसबुक तो है न, जहां दुनिया हमें नंबर से नहीं, नाम से जानती और पहचानती है। 
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15 July 2017
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