- वीर विनोद छाबड़ा
कई साल पहले की बात
है। मैं नया-नया अफ़सर के पद पर प्रमोट हुआ था। हमारे ख़ानदान हम पहले थे.जो क्लास वन
अफसर के लेवल पर पहुंचे थे। इससे पहले क्लास टू आधा दर्जन धक्के खाते रहे हैं।
वो कहते हैं कि ख़ुदा
जब हुस्न देता है, नज़ाकत आ ही जाती है। कुछ ऐसा ही हाल अपना भी हुआ। क्लास वन अफ़सर
बहुत बड़ी तोप होती है।
पद की गरिमा को मेन्टेन
करने के लिए कई तरह के प्रोटोकॉल अपनाने पड़े। जैसे नमस्ते का जवाब बोल कर या हंस कर
नहीं देना चाहिए। बल्कि हौले से सर हिला कर अनदेखी कर आगे बढ़ लेना चाहिए। कोशिश करिये
कि बहुत जल्दी में हैं। ज़रूरी ओप्रशन करने जा रहे हैं। और अगर नमस्ते करने वाली भद्र
महिला हो तो बा-अदब हलकी मुस्कान ही छोड़नी है।
अगर अंदर से आप बहुत
मजबूत हैं तो खड़े होकर बात करना चाहिए। चाय का ऑफर दीजिये। जेब से चॉकलेट या टॉफ़ी ज़रूर
रखें। मुट्ठी खोल दें। जितनी आपकी श्रद्धा हो उस हिसाब से न्यौछावर कर दें। भले ही
वो मन ही मन आपको 'गीले साहेब' टाईप दर्जन भर की पदवियों से विभूषित कर दे।
सड़क किनारे ढाबे पर
खड़े होकर चाय नहीं पीनी है। खुद इमेज ख़राब होती है। कोई कह भी सकता है। बाबू की आदत
से दूर हो। वरना यह कहने वालों की कमी नहीं है - साले, अब तो बाबू की योनि
से बाहर आ जाओ। आदमी बनो।
बॉस के कमरे में जाएं
तो शर्ट के बटन ऊपर तक बंद कर ले और आस्तीन पूरी नीचे हाथ तक ले जाओ। वगैरह,
वगैरह। पान या मसाला खाते हैं तो अच्छी तरह
कुल्ला कर लो। वो पत्नी ने बात दीगर है कि यह सब ज्यादा देर तक नहीं चला। ज्यादातर
प्रोटोकॉल रिलैक्स कर दिए। दरअसल दोस्तों और हमदर्दों की संख्या कम होने लगी थी।
घर में तो पहले ही
दिन से प्रोटोकॉल की ऐसी कम तैसी दी। काहे के अफसर। पगार तो बढ़ी कहीं नहीं। बतावें
हैं कि एक ठो इंक्रीमेंट लग गया है। पत्नी
के लिए में इंक्रीमेंट मिली रक़म की कोई अहमियत नहीं। हमारे खानदान में पत्नी
से बड़ा अफसर कोई नहीं हुआ है और अगले जन्मों तक यही व्यवस्था रहनी है। तो मैं भला इस
परंपरा को कैसे बनाये रखने की ज़ुर्रत करता।
सारी दिनचर्याऐं पूर्वरत रहीं। उसी क्रम में एक दिन मैं सुबह-सुबह
चूहेदानी में फंसा चूहा दूर एक नाले में छोड़ने जा रहा था।
बहरहाल, हम ऑफिस पहुंचे। शाम
तक हमारी नाक में दम हो गया। न जाने किस दिलजले बाबू ने हमें चूहेदानी सहित देख लिया
था। हर पांच मिनट पर किसी न किसी का फ़ोन आता
या कोई मिलने चला आता। सबकी ज़बान पर एक ही प्रशन था - सर, सुना है आप चूहा छोड़ने
जा रहे थे।
किस किस को जवाब देता
- भई, चूहा छोड़ना कोई गुनाह तो नहीं!
यह चूहा छोड़ने का प्रकरण
कई दिनों तक चर्चाए आम रहा और मेरे दिलो-दिमाग पर छाया रहा, भूत बन कर मेरा पीछा
करता रहा। लगता कि कई खामोश निगाहें भी मेरी
ओर ताकते हुए चूहे के बारे में ही पूछ रही हैं।
बस उस दिन से तय कर
लिया कि चूहेदानी में फंसा चूहा छोड़ने नहीं जाऊंगा चाहे कुछ भी हो। हम को भी एक मसाला
मिल गया। कई ऐंगल आधा दर्जन लेख लिख डाले।
लेकिन प्रेतात्माएं
आसानी से पीछा नहीं छोड़ती हैं।
पत्नी ने साफ कहा
- चूहा छोड़ने आप नहीं तो और कौन जायेगा ? मैं जाती हुई अच्छी
लगूंगी?
बात तो ठीक थी। बेटा
बाहर है और बेटी …न बाबा न।
मगर जहां चाह,
वहां राह। दूसरा तरीका मिल गया।
सुबह मुंह अंधरे उठ
कर मुंह पर गमछा लपेट कर जाने लगे।ज़िंदगी फिर आराम से गुज़रने लगी। रिटायर हुए। अब किस
भूतनी वाले का डर?
लेकिन…मिल ही गए दुश्मन और
दिलजले। एक साहब बोले - रिटायर होने के बाद बड़े बड़े अपनी औकात पर आ जाते हैं। दूसरे
बोले - लगता है, रिटायर होने के बाद चूहा छोड़ने का का काम मिल गया है। लगे रहो।
समझ में नहीं आता ये
चूहेदानी और उसमे फसे चूहे से कब निजात मिलेगी। गणेश जी की सवारी है ज़हर देकर मारना
भी तो सख्त मना है। बिल्ली के सामने भी इनको डालना भी पत्नी जी ने वर्जित कर रखा है।
आप कोई उपाय सुझाएं
तो अहसान होगा।
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Posted
on fb 24 July 2017
Posted
in 2290dee.blogspot.in dated 24 July 2017
वीर जी नमस्ते बहुत बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteवीर जी कभी ओशो को पढ़े है कि नही जरूर पढ़ें ओशो सच मे महान था पर केवल ओर केवल मानवता वादी समानता वादी स्वस्थ विचार के लोगो के लिये
ओर ओशो ने जो बुध्द जी के बारे में लिखा वाकई कमाल है हम एक लिंक दे रहे है पढ़ने का मन हो तो पढ़ लीजियेगा वर्ना कोई बात
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=473365863020263&id=100010405590924
ओशो on बुद्धा#ओशो ,#वीडियो
वीर जी नमस्ते बहुत बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteवीर जी कभी ओशो को पढ़े है कि नही जरूर पढ़ें ओशो सच मे महान था पर केवल ओर केवल मानवता वादी समानता वादी स्वस्थ विचार के लोगो के लिये
ओर ओशो ने जो बुध्द जी के बारे में लिखा वाकई कमाल है हम एक लिंक दे रहे है पढ़ने का मन हो तो पढ़ लीजियेगा वर्ना कोई बात
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=473365863020263&id=100010405590924
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