-वीर
विनोद छाबड़ा
ग्यारह
साल का
रिंकू पढ़ाई
और खेलकूद
में बेहद
होशियार होने
के साथ-साथ
बेहद सुशील
भी था।
इसी वजह
से स्कूल
में उसकी
बहुत तारीफ़
होती थी।
कालोनी में
तो सभी
मम्मी-पापा
अपने बच्चों
को रिंकू
की तरह
नेक बनने
की सलाह
देते थे।
बाल होशियार
सुशील शान
शैतान शर्त
मगर
पिछले दो
महीनों में
सब कुछ
बदल गया
था। रिंकू
को ज़बरदस्त
खांसी-जुकाम
व बुखार
ने घेर
रखा था।
इससे रिंकू
की पढ़ाई
चौपट तो
हुई ही,
वो बहुत
चिड़़चिड़ा़ भी
हो गया
। स्कूल
वालों ने
भी कह
दिया कि
जब तक
रिंकू पूरी
तरह से
ठीक न
हो जाए
उसे स्कूल
भेजने की
ज़रूरत नहीं।
क्योंकि उन्हें
डर था
कि उसके
संपर्क में
आकर दूसरे
बच्चे बीमार
हो सकते
हैं। अब
रिंकू पार्क
में दूसरे
बच्चों के
साथ खेलने
भी नहीं
जाता था।
अब उसका
एक ही
साथी था
उसका प्यारा
सा छोटा
सा पेमेरियन
कुत्ता- चिंपू।
उसके मम्मी-पापा
ने रिंकू
के ईलाज
में कोई
कसर नहीं
उठा रखी
थी। कई
बड़े डाक्टरों
को दिखा
चुके थे।
एलोपैथी के
अलावा अच्छे
होम्योपैथ डाक्टरों
को भी
दिखाया। बड़े-बड़े
हकीम-वैद्यों
से भी
ईलाज कराया।
उसे शायद
किसी की
नज़र लग
थी। इसलिए
बड़े-बुजु़गों
के कहने
पर बाबा-ओझा
तक से
नज़र उतरवायी।
मगर कोई
लाभ नहीं
हुआ। बल्कि
खांसी-जुकाम
और भी
तेज हो
गया। बुखार
से बदन
भी कभी-कभी
बुरी कांपने
लगता था।
फिर एक
मित्र की
सलाह पर
एक नामी
चेस्ट रोग
विशेषज्ञ को
दिखाया। उन्होंने
रिंकू की
भली-भांति
जांच की।
कई तरह
के टेस्ट
किए। फिर
बोले- ‘‘घबराने
की कोई
बात नहीं।
फेफड़ों में
मामूली इंफेक्षन
है। दवा
लिख रहा
हूं। आपका
रिंकू जल्दी
चंगा हो
जाएगा।’’
और
सचमुच चमत्कार
हो गया।
कुछ ही
दिनों में
रिंकू का
खांसी-जुकाम
बंद हो
गया। बुखार
भी चला
गया। रिंकू
अब स्कूल
भी जाने
लगा। पार्क
में दूसरे
बच्चे उससे
खेलने भी
लगे। सब
कुछ पहले
जैसा हो
गया। मम्मी-पापा
को रिंकू
को ठीक
करने वाले
डाक्टर के
रूप में
मानों भगवान
मिल गया
हो। वो
सब दुखद
वक़्त को
भूल ही
गए थे
कि एक
दिन अचानक
रिंकू को
फिर से
खांसी-जुकाम
ने आ
घेरा। थोड़ा-थोड़ा
बुखार भी
रहने लगा।
मम्मी-पापा
रिंकू को
लेकर फिर
उसी डाक्टर
के पास
गए। डाक्टर
साहब ने
ध्यान से
रिंकू की
जांच-परख
की। कुछ
नए टेस्ट
कराये। छाती
का एक्सरे
भी लिया।
रिपार्ट देखी
और फिर
थोड़ा गंभीर
होकर बोले-
‘‘देखिए, बच्चे
को अस्थमा
एलर्जी है।
पर घबराने
की बात
नहीं। इसका
असरदार ईलाज
है, दवाएं भी
बाज़ार में
है। कुछ
दिन में
फिर चंगा
हो जाएगा।
मगर आपको
ध्यान रखना
पड़ेगा कि
रिंकू को
खाने की
ठंडी चीजों,
जैसे आईस
क्रीम, कोल्ड
ड्रिंक्स वगैरह,
से दूर
रखें। इसके
अलावा कालीन,
धूल, धूंआ,
सीलन, बदबू,
खुश्बू, साफ्ट
ट्वायज़ वगैरह
से भी
एलर्जी होती
है। पौधों
और फूलों
से भी
एलर्जी होती
देखी जाती
है। रिंकू
को इन
सबसे पूरी
तरह से
बचा कर
रखें।
रिंकू
के मम्मी-पापा
ने घर
वापस आते
ही कालीन
बाहर कर
दिया। सारे
साफ्ट ट्वायज़
दूसरे बच्चों
में बांट
दिए। गमले
पड़ोसियों के
घर भिजवा
दिए। जब
तक रिंकू
घर में
रहता था
पूजा-पाठ
में धूप-अगरबत्ती
का इस्तेमाल
नहीं किया
जाता। पापा
ने सिगरेट
कभी नहीं
पीने की
क़सम खायी।
फ्रिज से
आईस क्रीम
और कोल्ड
ड्रिंक्स की
छुट्टी कर
दी गयी।
रिंकू कुछ
ही दिन
में फिर
पहले जैसा
भला-चंगा
हो गया।
पांच-छह
महीने गुज़र
गए। अब
सब पूरी
तरह से
भूल चुके
थे कि
रिंकू कभी
बीमार था।
दवा तो
कबकी बंद
हो चुकी
थी।
तभी
अचानक एक
दिन सुबह-सुबह
फिर रिंकू
में खांसी-जुकाम
और बुखार
के लक्ष्ण
दिखे। सांस
लेने में
भी दिक्कत
होने लगी।
मम्मी-पापा
ने बिना
देरी किए
रिंकू को
उसी डाक्टर
को दिखाने
भागे। डाक्टर
ने फिर
से रिंकू
को जांचा-परखा
और बोले-
‘‘घबराने की
बिलकुल ज़रूरत
नहीं। अस्थमा
एलर्जी ही
है। दवा
तो पुरानी
वाली ही
चलेगी। पर
अब कई
महीनों तक
लगातार लेनी
होगी। मम्मी-पापा
को इत्मीनान
हुआ। परंतु
चिंता भी
हुई। पापा
बोले- ’’डाक्टर
साहब, आपने
जैसा कहा
था वैसा
ही किया।
कालीन, साफ्ट
ट्वायज़, पौधे
आदि सभी
घर से
बाहर कर
दिए है।
धूप-बत्ती
भी इस्तेमाल
नहीं करते।
हर तरह
से ध्यान
रखते हैं।
मगर फिर
भी एलर्जी
हो गयी।
ये बार-बार
क्यों हो
रही है?’’
डाक्टर
साहब मुस्कुराते
हैं- ‘‘मौसम
बदलने से
और ज्यादा
ठंड और
गर्मी से
भी एलर्जी
होती है।
इधर सर्दी
बढ़ रही
है। हो
सकता है
इसी से
हुई हो
एलर्जी।’’ फिर
सहसा कुछ
सोचते हुए
गंभीर हो
कर बोले-
‘‘पालतु कुत्ते-बिल्ली
भी एलर्जी
की वजह
होते हैं।
अगर कोई
है आपके
घर में
तो जितनी
जल्दी हो
सके उसे
रिंकू से
दूर कर
दीजिए। बच्चे
के स्वस्थ
रहने और
उज्जवल भविष्य
के लिए
यह ज़रूरी
है।’’
रिंकू
पर तो
मानो कोई
पहाड़ टूट
पड़ा हो।
घर आते
ही वो
फूट-फूट
कर रोने
लगा। उसे
अपना पैमेरियन
चिंपू तो
जान से
भी बढ़
कर प्यारा
था। रात
उसी के
साथ बिस्तर
पर सोता।
सुबह स्कूल
जाता तो
चिंपू बस
स्टाप तक
उसे छोड़ने
जाता। और
जब वो
स्कूल से
लौटता तो
चिंपू उसे
हमेशा गेट
पर ही
इंतज़ार करते
मिलता। पार्टी-समारोह
आदि में
पूरा परिवार
कभी एक
साथ नहीं
जाता ताकि
चिंपू को
घर में
अकेला नहीं
रहना पड़े।
कोई न
कोई घर
पर ज़रूर
रहता। अक्सर
रिंकू ही
चिंपू के
साथ रहता।
हां, जब
कभी षहर
से बाहर
जाना होता
तो फिर
चिंपू को
साथ ही
ले जाते।
मम्मी-पापा
को भी
चिंपू से
बेहद लगाव
था। चिंपू
का रिंकू
की तरह
ही ख्याल
रखते। घर
का सदस्य
था चिंपू।
उसे अपने
से दूर
करने या
घर से
निकालने या
किसी रिष्तेदार
या मित्र
को सौंप
देने की
कल्पना करते
ही रिंकू
के साथ-साथ
उनको भी
रोना आ
गया। मगर
रिंकू को
स्वस्थ रखना
भी तो
ज़रूरी था।
ये सोचते-सोचते
घर में
सन्नाटा खिंच
गया, माहौल
में उदासी
छा गयी।
सब मौन
रहते हुए
एक-दूसरे का
मुंह ताकते
रहते। मानों
पूछते हों
कि क्या
किया जाए?
मगर जवाब
देने की
स्थिति में
कोई नहीं
होता।
परंतु
उस दिन
बस स्टाप
तक रिंकू
को छोड़ने
गया चिंपू
घर नहीं
लौटा। मम्मी-पापा
को चिंता
हुई। उन्होंने
खूब ढूंढ़ा
उसे। दूसरे
मोहल्लों की
गली-गली
में चिंपू
का नाम
लेकर पुकारा।
मगर चिंपू
नही मिला।
दोपहर बाद
जब रिंकू
स्कूल से
लौटा तो
चिंपू के
गुम जाने
की ख़बर
सुन कर
वो खूब
रोया। बड़ी
मुश्किल से
चुप कराया
गया उसे।
उस दिन
सब उदास
थे। किसी
ने खाना
नहीं खाया।
पापा ने
अख़बार में
विज्ञापन भी
दिया कि
चिंपू को
ढूंढ़ कर
लाने वाले
को ईनाम
भी दिया
जाएगा। मगर
कोई फायदा
नहीं हुआ।
चिंपू नहीं
मिला। हर
सफेद पेमेरियन
को देख
कर लगता
था कि
कहीं ये
चिंपू तो
नहीं। उसे
आवाज़ दी
जाती- ‘‘चिंपू...
चिंपू...आजा...
आजा।’’ मगर
वो चिंपू
नहीं होता
था। होता
तो उनसे
लिपट-चिपट
ना जाता!
इसी तरह
कई हफ़्ते
गुज़र गए।
और फिर
महीने गुज़रते
गए....
....आज
चिंपू को
गुम हुये
पूरे चार
साल हो
गये हैं।
रिंकू अब
बड़ा हो
गया है।
वो अब
दसवीं कक्षा
में पढ़ता
है। इस
दौरान उसे
फिर एलर्जी
नहीं हुई।
मगर चिंपू
को कोई
नहीं भूला
है। आज
भी उसका
इंतज़ार हो
रहा है।
शायद वो
लौट आये
या उसे
कोई लेकर
आ जाये।
रिंकू को
आज भूख
नहीं लग
रही है।
उसकी आंखों
में आंसू
है। चिंपू
के जाने
के बाद
से उसने
डायरी लिखना
षुरू कर
दी थी।
उसमें उसने
चिंपू की
बहुत सी
प्यारी-प्यारी
यादों के
बारे में
लिखा। ये
भी लिखा
कि उसके
जाने के
बाद उसकी
कमी को
हर पल
कितना महसूस
किया गया।
आज वो
फिर अपनी
डायरी में
लिख रहा
है... चिंपू को
हम सब
बेतरह प्यार
करते थे...
आज भी
करते हैं...
और करते
रहेंगे... उसे
हम हम
अपने दिल
से कभी
नहीं निकाल
सकते... मुझ
से दूर
रखने के
लिए मम्मी-पापा
उसे खूब
डांटते थे,
दुत्कारते थे...
मगर वे
ऐसा दिल
से कभी
नहीं करते
थे.... मुझे स्वस्थ
रखने के
लिए वे
मजबूर होकर
ऐसा करते
थे... फिर भी
मुझे बहुत
दुख होता
था... शायद चिंपू
को इसका
अहसास हो
गया था
कि मेरी
अस्थमा एलर्जी
वजह वही
है... चिंपू जानवर
था तो
क्या हुआ...
रहता तो
हम इंसानों
के बीच
ही था...
इसलिए उसके
अहसास भी
इंसानों जैसे
हो गए
थे... मुझे एलर्जी
से बचाने
के लिये
वो खुद
ही हमसे
दूर चला
गया... बहुत
दूर... ऐसी
जगह जहां
से हम
उसे कभी
वापस न
ला सकें...
उसने मेरे
लिये खुद
को त्याग
दिया... मैं
उसे आखिरी
सांस तक
नही भूल
पाऊंगा।
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19 July 2017
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D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
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mob 7505663626
Very emotional post. The loss of a loved pet is irreparable.
ReplyDeleteये सही है कि जानवरो से भी एलर्जी होती है
ReplyDeleteवीर जी हमारी पुरानी id बंद हो गयी है अब ishwar chand के नाम से नई बनाई है फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी है plz अप्रूव कर लीजिये
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