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वीर विनोद छाबड़ा
उस दिन मुद्दत के बाद उषा को उसकी सहेली स्नेहा मिलने आई। दस साल पहले वो उसकी
शादी में आई थी। दोनों ने ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनेक पल शेयर किये।
उषा बेहद उत्साहित है - दस मिनट रुक। ऑफिस का टाइम ओवर होने ही वाला है। घर चलते
हैं। अपने हस्बैंड से भी तुझे मिलाउंगी। रात का खाना साथ खाएंगे। फिर मैं तुझे तेरी
मौसी के घर ड्राप कर दूंगी। और हां कल संडे है। वो भी हम साथ गुजारेंगे।
स्नेहा भी बहुत जोश में है - ठीक है। लेकिन, मैं तेरे हसबैंड से
मिल चुकी हूं।
उषा हैरान होती है - कहां?
स्नेहा - आज ही। यहीं हज़रतगंज में। एक कॉफी शॉप पर। अपने दोस्तों के संग था। उसी
ने मुझे पहचाना था कि क्या आप स्नेहा सक्सेना हैं?
उषा हैरानी से - तो तूने क्या कहा?
स्नेहा - मैंने कहा, हां। फिर वो बोला, मेरी याददाश्त कभी
गलत हो ही नहीं सकती। मेरी वाइफ ने जो डिस्क्रिप्शन आपके बारे में किया है ठीक उसी
के अनुरूप हैं।
उषा को यकीन नहीं हो रहा था। उसका पति तो एक नंबर का चुगद है। सीट से उठता ही नहीं।
साला, दिन भर कमाने के चक्कर में पड़ा रहता है। ये दो नंबर की कमाई वालों के साथ यही दिक्कत
है। आठ से पहले तो घर ही नहीं आता। न अपनी पर्सनल लाइफ से और न पर्सनालिटी से मतलब।
उषा पूरी तरह यकीन कर लेना चाहती है - खैर ये बता, क्या मेरा पति मेरी
बुराई कर रहा था?
स्नेहा बोली - नहीं तो। उलटे तारीफों के पुल बांध रहा था। कह रहा था मेरी पत्नी
तो मुमताज़ महल है।
उषा की हैरानी बढ़ती जाती है - अच्छा तो ज़रूर कह रहा होगा कि मेरी पत्नी खाना बनाना
नहीं जानती।
स्नेहा - नहीं तो। ऐसा तो नहीं बोला वो। उलटे कह रहा था कि मेरी पत्नी जैसा खाना
और कोई नहीं बनाता।
स्नेहा बोली - नहीं। बिलकुल नहीं। बल्कि कह रहा था कि मां हो या सास दोनों में
एक सी मां दिखती है।
उषा हंस पड़ी - फिर वो मेरा पति हो ही नहीं सकता। तू किसी और से मिली होगी। चल चलें
घर।
स्नेहा ने मन ही मन खुद को थैंक्स कहा - शुक्र है तेरा हस्बैंड भी मेरे हसबैंड
जैसा खड़ूस है। मैं तो ख़ामख़्वाह डर रही थी कि ऐसा न कि तेरा वाला स्मार्ट हो। चलो अच्छा
है। इत्मीनान हो गया। सब साले एक जैसे हैं।
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नोट - एक चुटकुले पर आधारित साल भर पहले की पोस्ट। आज भी ताज़ी है।
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18 July 2017
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