- वीर विनोद छाबड़ा
आज पति बहुत खुश है। ऑफिस से लौटते हुए पत्नी के लिये गजरा ले
कर आया। पत्नी खुश। बोली - अपने हाथों से लगा दो।
मां ने मुंह बिचका कर कहा - जोरू का गुलाम कहीं का।
मां को नाराज़ देख बेटा अगली सुबह मां की मनपसंद जलेबी ले आया।
पत्नी ने मुंह बिचकाया - चम्मच।
पत्नी का एक पुराना दोस्त मिलने आया। पति ने पूछा - कबसे जानते
हो एक दूसरे को?
पत्नी ने सफाई दी - बचपन से।
पति शंकित हुआ - शादी हुए दस बरस हो गए। आज कैसे याद आई?
पत्नी भड़की - शक़ कर
रहे हो?
पत्नी का रौद्र रूप देख पति ठंडा पड़ गया - नहीं, नहीं ऐसे ही पूछ रहा हूं।
संडे का दिन। पति के विश्राम का दिन। पत्नी ने कहा - क्यों निठल्लों
की तरह बैठे हो? बाज़ार से राशन ले आओ।
मां बुदबुदाई - बेचारे को आराम से बैठने भी नहीं देती एक पल
को।
पत्नी को पति सिनेमा दिखाने ले गया।
मां मन ही मन बड़बड़ाई
- आवारागर्दी हो रही है।
लौटते हुए गोलगप्पे और टिक्की खाई दोनों ने।
मां के लिये रसगुल्ले पैक कराये।
पत्नी बोली - बहुत फ़िज़ूलखर्ची हो रहे हो आजकल।
सास-बहु की धींगा- मुश्ती के बीच पिसता बेचारा पुरुष ही है, कभी पति बन कर तो कभी
बेटा बन कर.
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10 July 2017
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब। रोचक प्रस्तुति।
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति बात तो बिल्कुल सत्य है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत रोचक प्रस्तुति।
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