-वीर विनोद छाबरा
कुछ लोग बिलकुल नहीं
बदलते। ऑफिस की एक कलीग के भाई की शादी का रिसेप्शन था। ऑफिस से सिर्फ मैं और हरीश
निमंत्रित थे। मैं टाइम पर पहुंच गया। मगर हरीश का कोई अता-पता नहीं। पार्टी में जानने
वाला कोई नहीं था। घड़ी की सुइयां निरंतर आगे बढ़ रही थीं और उसी तरह बोरियत भी।
इधर पार्टी पूरे शबाब
पर थी। उधर हरीश नदारद। मोबाइल पर कई बार संपर्क कर चुका था। हर बार यही जवाब मिलता
- रास्ते में हूं। बस दस मिनट।
मगर ये 'बस दस मिनट'
खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सुरसा की आंत की मानिंद बढ़ते ही जा रहे थे।
इच्छा हुई कि भोजन करके निकल लूं। मगर अजनबियों के बीच भोजन करना बड़ा अजीब लगता है।
उधर हरीश कह भी चुका था - मेरा इंतज़ार ज़रूर करना।
मैं न इधर का न उधर
का। ग्यारह बज रहा था। पार्टी उखड़ रही थी। मेजबान कई बार कह चुकी थीं - सर, आप भोजन कर लें। हरीश
सर न मालूम आएंगे भी कि नही।
नहीं, ऐसा नहीं। नहीं आना
होता तो ये न कहता कि दस मिनट में पहुंच रहा हूं।
साढ़े ग्यारह बज गया।
बहुत हो गया इंतज़ार। चल कर खाता हूं। कल ऑफिस में खबर लूंगा पट्ठे की। प्लेट उठाई ही
थी कि हरीश आ गया। हांफता-कांपता हुआ।
बकौल हरीश सुनिए,
उसी का किस्सा - घर से निकला, हेलमेट के साथ। तुम्हें तो मालूम ही है कि
दो कदम भी बिना हेलमेट के नहीं चल सकता। हमेशा तकिये के पास रखता हूं। ताकि सपने में
भी हेलमेट के बिना न दिखूं। गर्मी बहुत है, ये सोच कर मैंने हेलमेट
बाइक के पीछे बांध दिया। मस्त ठंडी-ठंडी हवा! बस अभी थोड़ी दूर ही चला था कि ट्रैफिक
सिपाहियों ने धर दबोचा। बोले सौ दे दो, नहीं तो तीन सौ का
चालान कटवाओ। मैंने लाख चिरौरी की कि भैया मैं हेलमेट का घनघोर पुजारी हूं। बस आज ही
पहनना भूल गया। मगर सिपाही अडिग रहा। फिर दिए सौ रुपए।
दस कदम दूर जाकर हेलमेट
उतार दिया। सोचा, अब न मिलेगा आगे कोई। लेकिन थोड़ी दूर पर फिर सिपाही मिल गए।
मैंने कहा कि अभी पीछे देकर आ रहा हूं।
सिपाही भड़क गया कि
बड़े सयाने हो। एक बार गलती की। पेनाल्टी दी। फिर भी नहीं सुधरे। अब तो डबल लगेगा।
दो सौ देकर पिंड छुड़ाया।
थोड़ी दूर जाकर फिर उतार दी हेलमेट। सोचा दो बार हो गया। अब नहीं मिलेगा कोई सिपाही।
मगर मुगाम्बो फिर फंसा। सौ रुपए फिर चिरके। बस इसी चक्कर में देर हो गयी।
मैं ज़ोर से हंसा। सारे
गिले-शिकवे ख़त्म। जम कर भोजन किया। हरीश को ताक़ीद की - बच्चू, अब वापसी पर ऐसी मूर्खता
नहीं करना।
फिर हम दोनों ने अपने-अपने
घर का रास्ता पकड़ा।
मेरा घर नज़दीक था।
फौरन ही पहुंच गया। चेंज करके लेटा ही था कि तभी हरीश की कॉल आ गयी।
उसकी आवाज़ में घबराहट
और थरथराहट थी - बॉस हज़ार रूपए लेकर मेफेयर तिराहे आ जाओ। चालान कट गया है। पांच सौ
का चूना लगा है। जेब में समझो कुछ भी नहीं।
मैंने फ़ौरन जेब में
पर्स रखा। स्कूटर स्टार्ट की और चल दिया। स्कूटर दो कदम चला ही था कि पीछे से पत्नी
की आवाज़ आई - हेलमेट तो लेते जाओ।
पत्नी का टोकना पहली
बार अच्छा ही नहीं, बहुत ही अच्छा लगा। और पत्नी अकलमंद ही नहीं बहुत खूबसूरत भी
दिखी।
हरीश अब इस दुनिया
में नहीं है।
---
07 July 2017
---
D-2290
Indira Nagar
Lucknow -226016
---
Mob 7505663626
No comments:
Post a Comment