Thursday, July 6, 2017

दादामुनि बोले तो हीरे जैसा बड़ा भाई

-वीर विनोद छाबड़ा
आज १३ अक्टूबर है। आज ही के दिन १९११ में कुमुदलाल गांगुली का जन्म हुआ था। सन १९३६ में वो बांबे टाकीज़ में लैब असिस्टेंट थे। जीवन नैया की शूटिंग चल रही थी। पता चला हीरो भाग गया। बांबे टाकीज़ की मालकिन और नायिका देविका रानी बौखला गयीं। देविका के पति डायरेक्टर हिमांशु राय की नज़र कुमुदलाल पर पड़ी । देविका को भी वो जंच गये। इस तरह कुमुद हीरो बन गये। लेकिन देविका को कुमुद नाम पसंद आया। नया नामकरण हुआ। इस तरह कुमुद अशोक कुमार बन गए।  
अगली फिल्म थी अछूत कन्या। नायिका फिर देविका रानी। उस ज़माने में देविका रानी बॉक्स ऑफिस पर बहुत बड़ा नाम था। हीरो महज़ खानापूर्ति के लिये होता था। मगर अछूत कन्या में देविका रानी के साथ-साथ अशोक कुमार को भी बहुत पसंद किया। यहीं से उनकी हिट जोड़ी बनी। इज़्ज़त, निर्मला और सावित्री खूब चलीं। अशोक कुमार की लीला चिटनिस के साथ जोड़ी भी खूब बनी - कंगन, बंधन और झूला। बंधन में उनका गाया ये गाना बहुत मशहूर हुआ था - मैं बन की चिड़िया, बन बन डोलूं रे.....
मधुबाला के साथ उन्हें महल और हावड़ा ब्रिज में खासा पसंद किया गया। चलती का नाम गाड़ी में भी दोनों साथ थे मगर आमने-सामने नहीं। मधु के हीरो किशोर कुमार थे, अशोक कुमार के छोटे भाई। अशोक कुमार ने सबसे ज्यादा फिल्में मीना कुमारी के साथ कीं - परिणीता, बादबान, बंदिश, शतरंज, एक ही रास्ता, सवेरा, आरती, चित्रलेखा, बेनज़ीर, भीगी रात, बहु बेगम, जवाब, पाकीज़ा आदि।
अशोक कुमार पहले हीरो हैं, जिन्होंने 1943 में रिलीज़ किस्मत में एंटी हीरो का रोल किया था। इसी फिल्म का गाना है यह - दूर हटो ये दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है....यह फिल्म कलकत्ता में रेकार्ड लगातार साढ़े तीन साल चली। 'ज्वेल थीफ़' में उन्होंने विलेन को 'अंडरप्ले; करके ज्यादा खतरनाक बनाया।  वो पहले हीरो थे जिन्होंने फिल्मों को थियेटर के प्रभाव से मुक्त करके स्वभाविक अभिनय पर जोर दिया।
उनके दो अन्य भाई किशोर कुमार और अनूप कुमार ने भी फिल्मों में नाम कमाया था। उनकी चलती का नाम गाड़ी सुपर डुपर हिट थी। 'मेहरबान' में खराब आर्थिक परिस्थितियों के कारण उनका सिगरेट छोड़ने का दृश्य बहुत मार्मिक रहा। यह कई लोगों के लिए सिगरेट छोड़ने का सबब बना।
उनको प्यार से दादामुनी यानि हीरे जैसा बड़ा भाई कहा जाता था। फ़िल्मी दुनिया में वो इसी नाम से जाने जाते थे। उर्दू के मशहूर अफसानानिगार सआदत अली मंटो उनके गहरे दोस्तों में थे।
त्रासदी यह रही कि दादामुनि १३ अक्टूबर १९८७ को अपना जन्मदिन मना रहे थे। तभी उनको किशोर की मृत्यु का दुखद समाचार मिला। उन्होंने अपना जन्मदिन मनाना ही छोड़ दिया।
दादामुनि एक बहुत अच्छे रजिस्टर्ड होम्यापैथ भी थे। कई असाध्य रोगियों को ठीक भी किया था। मीना कुमारी ने अपने अंतिम दिनों में जीने की ख्वाईश ज़ाहिर की। वो लीवर सिरोसिस से पीड़ित दादामुनि ने वादा किया वो ठीक कर देंगे उन्हें। मगर शराब छोड़नी पड़ेगी। अफ़सोस मीना ऐसा नहीं कर पायी। दादामुनि अच्छे चित्रकार भी थे।
उन्होंने 255 से अधिक फिल्में की। प्रमुख फिल्में हैं- दीदार, धर्मपुत्र, गुमराह, कानून, धूल का फूल, ज्वेल थीफ, इंतकाम, विक्टोरिया नंबर २०३, छोटी सी बात, खूबसूरत, खट्टा-मीठा, शौकीन, पूरब और पश्चिम, अनुराग, नया ज़माना, ममता, दुनिया, मेरे महबूब, सत्यकाम, अनपढ़, चोरी मेरा काम आदि।

फिल्मफेयर ने उन्हें राखी तथा आर्शीवाद के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अफ़साना के लिये सह-अभिनेता चुना। १९९५ में लाईफटाईम एवार्ड दिया। भारत सरकार ने १९८९ में सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिये दादासाहब फाल्के एवार्ड से नवाज़ा और १९९८ में उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया। इस महान अभिनेता ने अंतिम सांस १० दिसंबर २००१ को ली।
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06 July 2017
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2 comments:

  1. ​सुंदर रचना......बधाई|​​

    आप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग "हिंदी कविता मंच" की नई रचना #वक्त पर, आपकी प्रतिक्रिया जरुर दे|

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/time.html




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  2. badiya jankari ..Ashok kumar bahut achchhe kalakar the ..

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