-वीर विनोद छाबड़ा
पास में ही है मैरिज लॉन। आये दिन बैंड बाजा और बारात…यह देश है वीर जवानों
का....मेरा यार बना है दुल्हा.... आज मेरे यार की शादी है...नागिन
की बीन.…ज़मीन पर लेट सांप की
तरह रेंगना और फुंफकारना.…ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे...और दुल्हन के द्वार पर पहुंचते ही.…बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है.…
सीना गर्व से फूल जाता है। हमारे साठ-सत्तर के ज़माने से चला आ रहा है।
खासी बहस हुआ करती थी अमां वीर जवानों का क्या मतलब। बारात जा रहे हो कि फ्रंट
पर। दुल्हनिया से पूछा नहीं और चल दिए दिल वाले दुल्हनिया लाने। सारे फैसले दुल्हा
के चंडू-मंडू ही किये जा रहे है। और फिर नागिन की तरह फुफकारने का काम तो दुल्हन पक्ष
का है।
ज़माना कहां से कहां सरक गया। पहले पार्टीशन से आये रिफ्यूजी और उनके घर की महिलायें
सड़क पर भांगड़ा डालती और नाचतीं थीं। उन्हें कोसा और संकीर्ण नज़र से देखा गया। मगर जल्द ही नयी पीढ़ी
के दबाव में वो भी सड़क पर उतर आये। बेटे की शादी है। नाते और यार सब मिल कर खूब धमाल
करो। छोटे से लेकर बूढ़े तक। ख़ुशी तो सांझी
है। झूम बराबर झूम...।
पहले सिर्फ़ ढोल था। फिर बैंड-बाजा आया और अब डिस्को। ट्विस्ट गायब हो गया है। मगर
भागड़ा है। भले डिस्को स्टाईल में उछलता,
कूदता और थिरकता है।
हम भी आड़ा-तिरछा खूब नाचे-कूदे हैं बारातों में। खासतौर पर बुलाये जाते थे।
हमें याद है हमारे नाचने-कूदने का 'दि सैड एंड' अपनी ही बारात में हुआ था। जैसे ही बैंड से धुन निकली…आज मेरे यार की शादी
है.…उधर हम भूल गए कि हम दूल्हा हैं। घोड़ी से नीचे कूदे। खूब नाचे। बड़े-बुज़ुर्ग बहुत
बिगड़े। नाक कटा दी। दूल्हा अपनी शादी में नाचा! फूफा और मौसा तो बामुश्किल खाने के
लिये राजी हुए।
असली ट्रेजडी तो सुहागरात पर हुई थी।
पत्नी गुस्से में फनफनाई और तमतमाई मिली। क्या सोचा था? पत्नी बहुत खुश होगी।
कितना फूहड़ डांस था तुम्हारा? हमारी सहेलियां हंस रहीं थी। जीजा जी तो पूरे भालू-बंदर हैं, सड़क छाप नचनिया।
तैंतीस साल गुज़र चुके हैं नाचे हुए। न जाने कितने तूफ़ान आये और गुज़र गए। लेकिन
संगीत और नृत्य तो डीएनए में है। सड़क न सही बाथरूम में गुनगुना लेते हैं। पत्नी बाज़ार
गयी तो संगीत चैनल खुल गया। थिरकना शुरू। लेकिन पहले की तरह नहीं। आख़िर सिक्सटी प्लस
हैं न।
उस दिन एक बारात में लंगोटिया यार मिल गये। खो गए अतीत में। बेसुरी धुन पर कंकड़-पत्थर
वाली सड़क पर भी डांस। बड़ी चोटें लगती थीं। मस्त दिन थे वो भी!
हम इतना खो गए कि जाने कब तेज फड़कती धुनों में मशगूल लड़के-लड़कियों के झुंड में
जा पहुंचे.…शीला की जवानी...मुन्नी बदनाम हुई.…हम भी थिरक उठे। सब तालियों से उत्साह बढ़ाने लगे। चढ़ी जवानी बुड्ढे नूं।
तभी किसी ने कंधे पर हाथ रखा। करंट लगा। यह स्पर्श तो जाना-पहचाना है। भयाक्रांत
हो पलटे।
दुर्गा समान रौद्र-रूप। साक्षात पत्नी सामने थी। चोर चोरी से जाए, हेरा-फेरी से ना जाए।
नतीजा यह हुआ कि आइंदा से किसी भी फंक्शन में जाओ तो ऐन डिनर टाईम पर।
प्रभात ख़बर दिनांक २१ सितंबर २०१५ में प्रकाशित।
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