Monday, September 7, 2015

वो भी एक दौर था, यह भी एक दौर है!

-वीर विनोद छाबड़ा
क्या ज़माना आ गया है
मुझे वो दिन याद आते हैं जब हम हज़रतगंज में गंजिंग के दौरान किसी बड़े शो रूम में घुस जाते थे। नए आये आईटम देखते, परखते। खासियतों का विवरण एकत्र करते और दाम पूछते। और फिर बाहर निकल जाते।

आमतौर पर दुकानदार हमें शक्ल से पहचानते थे। सेल्समैन बाख़ुशी त्वजो देते।
एक बार एक बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स शोरूम के मालिक सडाना जी ने हमें रोक लिया। अपने केबिन में ले गए। बैठाया और हमसे मुख़ातिब हए - एक बात बताइये श्रीमानजी। मैं अक़्सर देखता हूं आप लोग आते हैं, दुकान का कोना कोना खंगालते हैं। हर छोटे-बड़े आईटम का दाम पूछते हैं और खाली हाथ बाहर चले जाते हैं। कभी खरीदते नहीं देखा।
हमारे सीनियर शुक्ला जी ने कहा - महोदय, खरीदने की इच्छा तो बहुत होती है। लेकिन आईटम इतने महंगे होते हैं कि हिम्मत नहीं पड़ती। बजट भी तो होना चाहिए। जिस दिन आमदनी बढ़ेगी। खरीद भी लेंगे।
सडाना जी मुस्कुराये - देखने में आप लोग सज्जन और ठीक-ठाक दिखते हो। आप लोग काम कहां करते हो? सरकारी नौकरी है क्या?
हम थोड़ा सकपकाये - हां सरकारी ही समझिए। इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में हैं। यहीं शक्ति भवन

सडाना जी ने हम लोगों की बात पूरी नहीं होने दी- ओ इलेक्ट्रिसिटी में हो! यार फिर फ़िक्र काहे की। बस आप आईटम पर हाथ रखो और एड्रेस बताओ। अभी आपके घर पहुंचाते हैं। ओ श्यामू ज़रा चा-शा, ठंडा-शंडा ले आ भाई।
हम लोग परेशान - सुनिये तो। अभी हमारा बजट नहीं है। अगले महीने स्केल रिवाइज़ होना है। उसके बाद।
लेकिन सडाना जी अड़ गए। अरे भाई पैसों की कौन बात कर रहा है? वो तो आते रहेंगे। बल्कि हमें तो चाहिये ही नहीं। जब आपकी इच्छा हो देना।
बड़ी मुश्किल से हमने पिंड झुड़ाया। उसके बाद से हमने लंबी मुद्दत तक शो-रूमों में घुसना बंद कर दिया। सडाना जी के शो रूम के सामने से तो.जिस गली में तेरा घर हो साजना उस गली से हमें तो गुज़रना नहीं। अगर कभी मजबूरी में किसी शो रूम में गए भी तो भूल से भी डिपार्टमेंट का नाम नहीं बताया।

मक़सद बताने का यह है कि कितनी हनक थी अपने बिजली बोर्ड की। लोगों को कितना भरोसा होता था बिजली विभाग और उसके कर्मियों पर। इज़्ज़त की निगाह से देखे जाते थे। बतौर हुंडी कहीं भी इस्तेमाल हो जाते थे।
यानि एक वो सुखद दिन थे और एक आजकल के दिन हैं। दुखद ही नहीं, बेहद नाशुक्रे। सब गवां दिया। नाम और इज़्ज़त सभी कुछ।

नाम लिया नहीं बिजली विभाग का कि पड़ने लगी गालियां। पराये तो छोड़ो, अपने भी नहीं बख़्शते। ईएमआई पर सामान देने वाले भी खदेड़ देते हैं। कंटाप, लाठी-डंडों तक की नौबत आ जाती है।
लोग द्वार पर थूक कर चले जाते हैं। छुटटी गऊ-मातायें भी वहीं गोबर और मूत्र विसर्जित कर देती हैं। आजू-बाजू वाले कुत्ता टहलाऊ अपने पप्पी को पॉटी करा देते हैं।
हमने तो भैया इसीलिये इधर कुछ दिन हुए अपनी कुटिया के बाहर लगी नेमप्लेट हटा दी है। लेकिन जो जानते हैं और जिनकी आदत पड़ चुकी है, उन्हें कौन समझाये।
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07-09-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

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