Friday, September 18, 2015

अच्छा फल चाहिए तो तारीफ़ ज़रूर करें।

-वीर विनोद छाबड़ा
कल एक मित्र के घर गया। चूंकि जाना बहुत दिनों बाद हुआ था, लिहाज़ा ख़ातिर अच्छी हुई। चाय से पहले भाभी जी ने गर्मागर्म समोसे परोसे।
हमें लगा कल्लू हलवाई की कढ़ाई से निकले हैं अभी-अभी। पूछ ही बैठे। 
भाभी जी पहले थोड़ा लजाईं। फिर गर्व से बोलीं - नहीं, हमने खुद बनाये हैं। खाइये और फिर बताइये कैसे बने हैं? अभी कुछ ही दिन तो पहले बनाने सीखे हैं।
हमने अपनी खानदानी परंपरा का निर्वाह करते हुए सर्वप्रथम अच्छी तरह तस्दीक की - हम पर कोई एक्सपेरिमेंट नहीं हो रहा है?
उन्होंने बताया - कतई नहीं। आज से पहले भी कई बार बन चुके हैं। और आज तो हमसे पहले चार लोग खा भी चुके हैं और सब सही सलामत हैं। उनमें से एक आपके मित्र भी हैं जो साक्षात आपके सम्मुख बैठे हैं।
हमें तसल्ली हुई। हमने एक समोसा खाया। वाकई बहुत अच्छा था। आमतौर पर एक ही समोसा खाता हूं। लेकिन उस दिन भूख ज्यादा लगी थी। दूसरा भी खा लिया - बहुत उम्दा। भाभी लंबी उम्र हो आपकी। साथ में मेरी भी। ताकि आप यूं बनाती रहें और हम खाते रहें। खर्च भी बचता रहे।  
मित्र ने कहा - यार अजीब क्रैक आदमी हो। चटनी नहीं ली और यह टमैटो सॉस तो वैसी की वैसी ही रखी है। कहते हो उम्दा। एक समोसा और लो।
हमने कहा - नहीं बस। हमारा पेट छोटा है। हमें समोसा सादा ही पसंद है। काफी देर गप-शप की और फिर चलने को हुए।  
भाभी जी को बुलवाया।
हमने कहा - भाभी जी, हम धन्यवाद देना तो भूल ही गये। लाजवाब थे समोसे। वाकई।
भाभी जी ने कहा - अगर टमैटो सॉस और चटनी के साथ लेते तो और भी अच्छे लगते।
हमने कहा - लेकिन फिर हम टमैटो सॉस और चटनी के टेस्ट का ही मज़ा लेते। आपके हाथ के हुनर का तो पता ही नहीं चलता।

भाभी जी फूल कर कुप्पा हो गयीं - अगली बार मैं पिज़्ज़ा बनाने जा रही हूं। आपको फ़ोन कर दूंगी।
इस तरह हमें दो फायदे हुए।
१) भाभी जी की सच्ची तारीफ़ भी हो गयी और,
२) भविष्य की उम्मीद भी बरक़रार रही।
हमारा मानना है किसी भी मित्र की पत्नी की गुड-बुक में रहना है तो जो भी परोसा जाए उसकी जम कर तारीफ़ करो। अच्छा फल मिलेगा।
अपनी पत्नी के बनाये की तारीफ़ करें तो दुगना अच्छा फल मिलेगा।
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Lucknow - 226016        

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