- वीर विनोद छाबड़ा
१९७१ की बात है। हम बंबई गए थे।अपने मित्र नील रतन से मिलने, घूमने और देखने कि
कैसे स्ट्रगल करते हैं यहां लोग। नील रतन भी वहां एक्टर बनने के चक्कर में गया था।
यों हम भी उन दिनों ट्वेंटी प्लस के नौजवान थे और देखने में भी ठीक-ठाक।
बहरहाल, दोपहर बैंडस्टैंड पर टहल रहे थे।
नील रतन ने बताया कि सामने ये जो ऊंची बिल्डिंग देख रहे हो, इसमें कई एक्टर रहते
हैं। इसी में एक नाम शत्रुघ्न सिन्हा का भी है।
यह सुनते ही हमारा दिल मचल उठा - वो अपना बिहारी।
तब तक हम शत्रुघ्न सिन्हा को साजन,
चेतना, प्रेम पुजारी आदि कुछ फिल्मों में देख चुके थे। खिलौना में तो वो बाक़ायदा विलेन
था - बिहारी। रोल बड़ा नहीं था लेकिन इम्प्रेस किया था उसने।
नील रतन ने हमारे चेहरे पर चमक देखी - चलो मिलते हैं बिहारी से।
हमने कहा - मज़ाक करते हो यार। हमसे क्यों मिलेगा?
नीलरतन अड़ गया - अभी इतने बड़ा एक्टर नहीं है बिहारी बाबू कि मिलने से मना कर दे।
आख़िर इतनी दूर लखनऊ से मिलने आये हैं। पता नहीं घर पर है भी कि नहीं। चलो, चांस लेते हैं।
थोड़ी देर बाद ही हम शत्रुघ्न सिन्हा के अपार्टमेंट के सामने खड़े हो थे। दिल में
धुक-धुक हो रही थी। अपने बिहारी बाबू से मिलने जा रहे हैं, कल के स्टार विलेन
से।
नीलरतन ने बेल बजाई। कुछ पल इंतज़ार किया। दरवाज़ा खुला। कोई नौकर था। बड़ी बेरुखी
से पूछा - क्या है?
नीलरतन ने कहा - शत्रुजी से मिलने आये हैं।
उसने टका सा जवाब दिया - वो घर पर नहीं हैं। शूटिंग पर गए हैं।
यह कह कर वो दरवाज़ा बंद करने जा ही रहा था कि नीलरतन ने पैर अड़ा दिया - हम इतनी
दूर लखनऊ से खासतौर पर मिलने आये हैं। उनसे बोल दो प्लीज़।
नौकर को तरस आ गया - ठीक है। बोलता हूं।
एक मिनट न गुज़रा था कि शत्रुघ्न सिन्हा आ गए। दुबला-पतला बांका जवान। हम दोनों
ने उन्हें नमस्ते की और बताया कि लखनऊ से आये हैं, आपसे ख़ास मिलने।
इससे आगे हमें कुछ कहने का मौका ही नहीं मिला। बिहारी बाबू ने सटाक से दरवाज़ा बंद
कर दिया। अगर हम एक सूत भी आगे होते तो यकीनन हमारी नाक टूट जाती।
हमने और नीलरतन ने एक-दूसरे का मुंह देखा। कैसा सूखा आदमी है यह? ज़रा भी तमीज़ नहीं।
गंगा-जमुनी तहज़ीब और इल्मो-अदब के मरकज़ लखनऊ में पले-बड़े हम दोनों का दिल टूट गया।
क़सम खायी कि कितना भी बड़ा स्टार विलेन क्यों न जाए शत्रु, नहीं देखेंगे इसकी
फ़िल्म।
हम टूटा दिल लिए उसी शाम ट्रेन से लखनऊ के लिए वापस हो लिए।
थोड़े दिन बाद एक फ़िल्म आई - गैंबलर। देवानंद, ज़ाहिदा, सुधीर और विलेन जीवन।
लेकिन चर्चा ज्यादा हो रही थी छोटे विलेन शत्रुघ्न सिन्हा की। हम न चाहते हुए इसलिए
इसे इसलिए दिखने चले गए कि अपने देवानंद थे इसमें।
हमने फ़िल्म देखी। सच बताऊं हम कायल हो गए बांके बिहारी के किरदार में शत्रु को
देख कर। कमाल की एक्टिंग थी। जिस अंदाज़ में उसने हत्या के जुर्म में फंसे देवानंद को
बचाने के लिए जुर्म कबूला, वो देखने के काबिल था। ताली बजाने वालों में हम भी थे।
बस उस दिन से हम 'शत्रुघ्न सिन्हा एक्टर' के फैन हो गए। शायद ही कोई फ़िल्म छोड़ी हो हमने उसकी।
लेकिन उस बिहारी बाबू को हम आज भी माफ़ नहीं कर पाये हैं, जिसने हमारे मुंह पर सटाक से दरवाज़ा बंद किया था और हमारी नाक टूटते टूटते बची
थी।
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१०-११-२०१५ mob 7505663626D-2290 Indira Nagar
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