Friday, November 13, 2015

बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

-वीर विनोद छाबड़ा
१९८८ की बात है। ऑफिस के सहकर्मी मित्र रामेश्वर ने भाई की शादी के उपलक्ष्य में प्रीतिभोज का आयोजन रखा।
हमें भी सपरिवार सम्मिलित होने का न्यौता मिला। हम और बच्चे खुश। बढ़िया-बढ़िया पकवान मिलेंगे खाने को। पत्नी खुश कि आज खाना बनाने से फ़ुरसत।

हम पहली बार जा रहे थे उनके घर। मित्र ने पता दिया - डालीगंज में एक बहुत मशहूर जगह है, चरही हसनगंज। चलती-फिरती गली है। आईटी चौराहे से करीब आधा किलोमीटर पर पड़ेगी। सीधा मेरे घर पर आकर रुकती है। यह शार्ट-कट है। 
सर्दी के दिन थे। पत्नी-बच्चों को स्कूटर पर लादा और कड़कड़ाती ठंड में चल दिए।
डालीगंज में घुप्प अंधेरा। उन दिनों आठ बजे तक दुकानें बंद हो जाती थीं। स्ट्रीट लाईट का कोई इंतज़ाम नहीं। सन्नाटा था। चरही हसनगंज दिख ही नहीं रही थी। इक्का-दुक्का राहगीर ही मिले। एक से पूछा, दो से पूछा। तीन-चार और से भी पूछा। किसी को नहीं मालूम कि चरही हसनगंज क्या बलां है। मोबाईल नाम की चिड़िया तो सपनों में नहीं दिखी थी कभी। टेलीफ़ोन था नहीं रामेश्वर के घर में।
पत्नी गुस्सा और बच्चे उदास। कैसा दोस्त है? कोई एड्रेस ही नहीं उसका।
हमने इरादा किया कि आ अब लौट चलें। हम वापस मुड़ने को थे ही कि थोड़ी दूर पर तंबू-कनात दिख गया। लाऊड स्पीकर पर फ़िल्मी गाने भी चल रहे थे। शायद यही है। हर्ष से तब-बदन प्रफुल्लित हो उठा। आंखें चमक उठीं - यूरेका यूरेकावो मारा पापड़ वाले को।
हम लपक कर पहुंचे। एक दर्शनाभिलाषी प्रौढ़ सज्जन खड़े थे, आगंतुकों का स्वागत करने।
हमने पूछा - राम.
बात पूरी होने से पहले ही उन्होंने हमें गले लगा लिया - आईये, आईये अरे ओ वेटरकॉफ़ी लाओ इधर।
सर्दी में कॉफ़ी नाम सुनते ही राहत मिल गई। दो-चार घूंट हमने कॉफ़ी सुड़क ली। ख्याल आया कि ऑफिस का कोई बंदा नहीं दिख रहा है और न रामेश्वर। हमने दर्शनाभिलाषी से पूछा - रामेश्वर नहीं दिख रहा है।
उन्होंने हमें सर से पांव तक देखा - कौन रामेश्वर?
हमने कहा - वही रामेश्वर, जिनके भाई की शादी का रिसेप्शन है।
उन्होंने हमें भस्म करने वाली नज़रों से घूरा - मिस्टर यह रामप्रकाश का घर है और उनकी शादी का रिसेप्शन है।
यह कहते-कहते उन्होंने मेरे हाथ से कॉफ़ी का प्याला छीन लिया।
हमें दर्शनाभिलाषी के व्यवहार पर बहुत क्रोध आया। किसी तरह खुद को नियंत्रित किया। पत्नी और बच्चों ने कॉफ़ी लगभग ख़त्म कर ली थी। हमने उन्हें स्कूटर बैठाया और घर की और चल दिए। बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले।
थोड़ी दूर चले ही थे कि स्कूटर की हेडलाइट में हमें एक सूट-बूट वाला दिखा। ज़रूर ये किसी शादी में जा रहा है या लौट रहा है। हमने सोचा कि एक चांस और लिया जाए। उसके आगे स्कूटर रोक दिया - भैया, यह चरही हसनगंज किधर है?

सूटबूट वाले ने अंधेरे में हमें और हमारे सूटबूट को घूरा - सामने ही खड़े हैं आप।
हमने कहा - लेकिन चरही तो दिख नहीं रही।
वो हंस दिया - चरही तो कबकी गुम हो गयी। अब तो नाम बाकी है। रामेश्वर जी के घर जाना है न? चलिए मैं भी वहीं जा रहा हूं।
वो एक अंधेरी सुरंग टाईप की कुलिया में घुसा और पीछे-पीछे हम भी। पांच मिनट चले नहीं थे कि कुलिया एकदम से खुल गयी। सामने बड़ा सा मकान और उसकी छत पर तंबू-कनात और झिलमिलाती झालरें। दस बजने के बावजूद महफ़िल जवां थी।
नीचे ही खड़ा था रामेश्वर। जान में जान आई। उसके बाद हम जब किसी रिसेप्शन या शादी में गए तो पहले खूब फूंक-फांक लिया। 
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13-11-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016

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