-वीर विनोद छाबड़ा
रात करीब साढ़े ग्यारह
का टाईम था। पहले एक फेज़ गया और फिर मिनट भर में दूसरा भी। दो पल गुज़रे न थे कि स्ट्रीट
लाइट भी गुल। कहीं तार टूटे हैं। लंबा फॉल्ट।
बाहर निकला। घुप्प
अंधकार। लोग ठाठ से सो रहे हैं। इन्वर्टर ज़िंदाबाद। मेरे हाथ में टॉर्च है। टहलता हुआ
यूं ही लगे ट्रांसफार्मर पर पहुंचा। देखा भीड़ लगी है।
यहां एक पोल है,
जहां कई जगह से आकर तार जुड़ते हैं। झमेला है तारों का। कुछ तार जल कर गिरे पड़े
हैं। आस-पास रहने वाले जमा है। सब-स्टेशन फ़ोन हो चुका है। फीडर बंद हो गया है। मेंटेनेंस
स्टाफ़ निकल लिया है। किसी भी पल आता होगा। तब तक तारों से दूर रहने की हिदायत दी गयी
है। कुछ लोगों ने घेरा बना लिया है। ताकि कोई इधर से न गुज़रे।
तभी खड़-खड़ की आवाज़
सुनाई देती है। एक ट्रॉली पर सीढ़ी बंधी है जिसका एक सिरा बाईक के पीछे बैठा बंदा पकड़े
है। सबने राहत की सांस ली। स्टाफ़ आ गया। सिर्फ़ दो ही बंदे हैं। यह नियमित कर्मचारी
नहीं हैं। ठेकेदार के आदमी हैं। उन्हें साढ़े चार हज़ार महीना मिलता है। बारह घंटे काम।
सर्दी हो या गर्मी या बरसात। काम नहीं तो दाम नहीं। दुर्घटना में घायल या अपंग हो गए
या तार से चिपक कर मर गए तो मुआवज़े के लिये सड़क जाम करनी पड़ती है।
उन्होंने मुआयना किया।
तुरत-फुरत सीढ़ी खंबे से टिकाई। रात का वक़्त है। कुछ दिखता नहीं है। स्टाफ़ के पास सिर्फ़
एक टॉर्च है। रौशनी अपर्याप्त है। एकाएक दस-पंद्रह टॉर्च जल उठीं। रौशनी से समां नहा
उठा। एक बंदा नीचे गिरी तारों का जला हिस्सा
काटने पर जुट गया। इसमें इंसुलेटेड एरीअल बंच भी है। इंसुलेशन जल कर तार से चिपक गया
है। इसे चाकू से छीला जाएगा। आरी से काटा भी जायेगा। मोहल्ले वाले भी उसकी मदद करने
लगे। कोई ठंडे पानी की बड़ी बोतल ले आया।
इसी बीच दूसरा बंदा
बाईक उठा कर सब-स्टेशन चला गया। अल्मुनियम का मोटा तार लेकर आया। और तार खींचने के
लिए मोटा रस्सा भी। एक बंदा खंबे पर चढ़ जाता है। आस-पास रहने वालों की मदद से रस्सी
से तार खींचा जाता है। यह सब लोग एक्सपर्ट हो चुके हैं। अक्सर बिजली जाती रहती है।
कभी तार टूटने से तो कभी फ्यूज़ उड़ जाने से। कभी लीड जल जाती है तो कभी टीपीओ उड़ जाता
है। दिन हो या रात, आस पास रहने वाले मदद के लिए हर वक़्त तैयार रहते हैं। कुछ लोग
मरम्मत में इस्तेमाल होने वाला सामान भी रखते हैं। काम बहुत लंबा होता है तो किसी के
घर से पंद्रह-बीस कप चाय के भी चले आते हैं। साथी हाथ बढ़ाना साथी रे। दो घंटे का काम
एक घंटे में निपटता है। गालीगलौज या मारपीट करने से बखेड़ा होता है। वक़्त की बर्बादी।
बहरहाल, काम हो गया। दो घंटे
लग गए। रात दो बजा है। सीढ़ी हटा ली गयी। सबस्टेशन पर फ़ोन किया गया - द्वारकापुरी फीडर
लगाओ। कुछ पल बीते न थे कि सब जग-मग हो गया। वातावरण आह्लादित हो उठा। कुछ ने करतल
ध्वनि की।
स्टाफ़ के एक बंदे ने
बाईक स्टार्ट की। दूसरा पीछे बैठा। ट्रॉली पर रखी सीढ़ी का एक सिरा हाथ में पकड़ा। बाईक
चल दी - खड़ खड़ खड़.…कहीं और भी तार टूटा है।
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