Wednesday, July 8, 2015

दूसरे के फटे में टांग फंसाने का नतीजा!

-वीर विनोद छाबड़ा 
बदलते मौसम के अनुरूप स्वयं को ढालने के लिए पशु-पक्षी ससमय तैयारी करते हैं।
एक चिड़िया बहुत सयानी थी। उसे अंदाज़ा हो गया कि बेवक़्त बारिश हो सकती है। उसने संभावित ख़राब दिनों में बचने के लिए एक पेड़ पर सुरक्षित स्थान पर घोंसला बनाया। और मज़े से उसमें रहने लगी।

उसी पेड़ पर एक बंदर भी रहता था। वो दिन भर इधर से उधर मटरगश्ती और उछल-फांद किया करता था।
एक दिन सचमुच जोरदार बेमौसम बारिश हुई। चिड़िया घोंसले में सुरक्षित बैठ गयी।
भीगता हुआ बंदर भी उसी डाल पर बैठ गया जिस पर चिड़िया का घोंसला टिका था। 
चिड़िया ने बंदर को उपदेश दिया - कहने को तुम बहुत चालाक हो, लेकिन ससमय एक घर बना लिया होता तो कितना अच्छा होता? आज के दिन भीगना तो न पड़ता।
बंदर ने सोचा, छोटा मुंह बड़ी बात। कोई जवाब ही न दिया। 
चिड़िया से बर्दाश्त नहीं हुआ कि उसने इतनी बात कही और बंदर ने कतई ध्यान नहीं दिया। बोली - गर्मी भर मस्ती करते रहे। एक घर बना लेते तो आज सुखी महसूस करते।
बंदर ने चिड़िया को डपट दिया - अपने काम से काम रखो। अपने बराबर वाले को उपदेश दो।
 
लेकिन चिड़िया फिर भी खामोश नहीं हुई। उसने उपदेश जारी रखा - ठण्ड से कांप रहे हो लेकिन अकल धेले भर की नहीं है।
इस बार बंदर ने चिड़िया को जोर से घुड़क दिया - अपने कद में रहो। वरना अच्छा नहीं होगा।
थोड़ी देर और गुज़री। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बंदर अब ठण्ड से कांप रहा था। इधर अपने घोंसले में पूर्णतया सुरक्षित और मज़े से आराम फरमा रही चिड़िया को अचानक फिर उपदेश देने की खुजली शुरू हुई। उसने बंदर से कहा - कम से कम आगे के लिए नसीहत ले लो कि घर ज़रूर बनवाओगे।

इस बार बंदर से बिलकुल बरदाश्त नहीं हुआ और अपने वंशागुनत स्वभाव पर उतर आया - ऐ चिड़िया। तू ऐसे नहीं मानेगी। तेरा ईलाज अब करना ज़रूरी हो गया है।
यह कहते हुए बंदर ने उस डाल को जोर से हिलाया जिस पर वो बैठा था। चिड़िया का घोंसला भी इसी डाल से अटका हुआ था।
परिणाम यह हुआ कि चिड़िया का घोंसला ज़मीन पर जा गिरा।
चिड़िया बेघर हो गई और बंदर की तरह एक डाल पर सिकुड़ कर बैठ गयी। और सोचने लगी कि इस हालत के लिए वो खुद ही ज़िम्मेदार है।
दूसरे के फटे में टांग न घुसेड़ी होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता।
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08-07-2015 mob 7505663626
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