Friday, July 31, 2015

मुझे मोहब्बत खैरात में नहीं चाहिये - निम्मी।

-वीर विनोद छाबड़ा
दो मशहूर नायिकाएं - निम्मी और मधुबाला। महबूब खान की अमर (१९५४) में एक साथ दिखीं पहली बार। और आख़िरी बार भी। जल्दी ही बहुत ही अच्छी सहेलियां भी बन गयी। अपने दुःख-सुख भी शेयर करने लगीं।

हीरो और कोई नहीं बहुत बड़ा आर्टिस्ट  - दिलीप कुमार।
परदे की बात छोड़िये। जग ज़ाहिर है कि दिलीप कुमार से मधुबाला बेसाख्ता मोहब्बत करती है। दिलीप के भी दिल में आग लगी हुई है।
लेकिन यह निम्मी क्या कर रही। युसूफ ने लंच लिया कि नहीं? कुछ थके थके से दिखते हैं। आराम कर लें। एक कप चाय ले आऊं। तरो-ताज़ा हो जायेंगे। नहीं, चाहिए। तो कहिये सर दबा दूं? स्टूडियो के डॉक्टर से मशविरा कर लें।
मधु को यह सब अच्छा नहीं लग रहा। युसूफ का कुछ ज्यादा ही ख्याल रख रही है ये निगोड़ी निम्मी। एक-आध बार हो तो बर्दाश्त कर लूं। मगर ये मुई तो हाथ धो कर पीछे ही पड़ गयी है। जल्दी ही बात करनी पड़ेगी। ऐसा न पानी सर से ऊपर निकल जाए।
आख़िर उस रोज़ उसने पकड़ ही लिया- निम्मी, एक बात कहूं, बुरा न मानना। सच-सच बताना। क्या तुम भी उनको चाहती हो जिसे मैं चाहती हूं? तुममे और युसूफ मई कुछ चल रहा है क्या? तुम हां कहो। मैं कुछ भी कर सकती हूं। तुम्हारे रास्ते से हट जाऊंगी। कट जायेगी जुबां मेरी अगर भूले से भी नाम आ गया उनका।
निम्मी के सर पर पहाड़ गिर पड़ा हो जैसे। वो सकते में आ गयी। अल्लाह, ये कैसी बात कर रही है? उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई। भर आई आंखों से आंसू पोंछे। पागल हो गयी लगती है। ऐसा कुछ भी नहीं है। वो तेरा है और तेरा ही रहेगा। और फिर मुझे मोहब्बत खैरात में नहीं चाहिए। और हां, ध्यान में रखना एक बात और। किसी और को न देना ऐसा ऑफर। अगर वो मेरी तरह दरियादिल न हुई तो? तू खाली हाथ रह जायेगी।
नोट - इतिहास गवाह है कि मधु - दिलीप की प्रेम - कहानी भी रोमियो-जूलियट और लैला-मजनू सरीखी बन कर रह गयी, अपने अहम और प्रतिबद्धताओं के कठघरे में क़ैद।
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31-07-2015
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