-वीर विनोद छाबड़ा
एरिक हॉफर (२५-०७-१८९८
से २१-०५-१९८३) सामाजिक और नैतिक विषयों पर अपनी सकारात्मक सोच के कारण विख्यात दार्शनिक
कहलाते थे। उनका जन्म जर्मनी में हुआ लेकिन कर्मस्थली अमेरिका रही।
एरिक का जीवन विचित्र
घटनाओं से भरा रहा है। जब वो महज़ सात साल के थे तो वो और उनकी मां सीढ़ियों से फिसल
कर गिर पड़े। इस हादसे से उनकी दृष्टि चली गयी और मां की मृत्यु हो गई।
एरिक के जीवन में अगले
कई साल तक अँधेरा रहा। वो निराश हो चुके थे।
लेकिन जब वो पंद्रह साल के थे तो उनकी
दृष्टि लौट आई। उन्हें यकीन नहीं हुआ कि चमत्कार उनके साथ हो सकता है। यह सपना है।
टूटेगा। वो फिर अंधे हो जायेंगे। यह सोच कर वो अधिक से अधिक पढ़ने लगे। लेकिन थोड़े दिनों
में साफ़ हो गया कि वो सपना नहीं सच था। उनकी दृष्टि अब हमेशा साथ देगी।
जब वो जवान हुए तो
उनके पिता की मृत्यु हो गई। इंश्योरेंस में तीन सौ डॉलर मिले। उन्होंने लॉस एंजेल्स,
अमेरिका का टिकट कटाया। वहां पेट भरने लायक गोदी पर छोटा-मोटा काम करने लगे। मज़दूरों
और बाज़ारू महिलाओं के बीच रह कर वक़्त बिताने के साथ उनके जीवन का अध्ययन भी करने लगे।
उन्होंने यहीं रहते हुए उन्होंने एक पुस्तक लिखी - The True Believer . इसे बहुत सराहना मिली।
इसे क्लासिक की मान्यता मिली। लेकिन वो The Ordeal Change को अपनी सबसे श्रेष्ठ
रचना मानते हैं।
एरिक ने ढेर लेख और
पुस्तकें लिखी। उन्हें Longshoreman अर्थात गोदी में सामान
ढोने वाला कहा गया। उनका मानना था कि दिमाग कभी खाली नहीं होता, इसमें भूसा भरा होता
है, इसीलिए इसमें कुछ डालने में बहुत मुश्किल होती है। बच्चों का साथ स्वर्ग जैसा अहसास
कराता है। भविष्य जानना है तो भविष्य बनाने की शक्ति पैदा करो। प्रोपेगंडा धोखा नहीं
देता बल्कि खुद को धोखा देने में सहायता करता है।
एरिक स्वयं नास्तिक
थे। लेकिन हर धर्म के प्रति उनका रवैया सकारात्मक था। इसीलिए कठिन से कठिन काम करने
को तत्पर रहते। उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। इसमें वो इतने मग्न हो जाते कि उन्हें
भोजन करना भी याद नहीं रहता था। इसी चक्कर में उनका काम छूट गया।
आर्थिक स्थिति इतनी
ख़राब हो गई कि जेब में एक पैसा तक न रहा। तीन दिन तक कुछ खाने को न मिला। बहदवास हो
वो एक रेस्त्रां पहुंचे। रेस्त्रां मालिक उन्हें पहचानता था। उनके लेखों और पुस्तकों
का प्रशंसक भी था। उसने एरिक को भोजन ऑफर किया।
एरिक तैयार हो गए - भूखा तो बहुत हूं। लेकिन शर्त यह है कि मैं मुफ़्त
में भोजन नहीं करूंगा। बदले में कुछ काम भी लिया जाये।
रेस्त्रां मालिक हैरान
हो गया और साथ ही परेशान भी कि एरिक से क्या काम लिया जाए। उसने पूछा - वेटर का काम करेंगे?
एरिक ने कहा - कोई
भी काम छोटा बड़ा नहीं होता। मैं तैयार हूं।
एरिक ने भरपेट भोजन
किया और फिर कुछ घंटे वेटर का काम किया।
रेस्त्रां मालिक ने
एरिक के कठोर परिश्रम और स्वाभिमान को सलाम किया। वो अपने इस गुण के कारण भी सर्वत्र
विख्यात थे।
ख़राब आर्थिक के दृष्टिगत
एक बार एरिक ने आत्महत्या करने का इरादा किया। लेकिन अमल नहीं किया। इसलिये कि सहसा
उनके मन में विचार आया कि निराशा दिमागी दिवालियेपन के सबूत है।
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