Friday, July 3, 2015

स्वामी विवेकानंद - भारत के गौरव के प्रतीक।

-वीर विनोद छाबड़ा
आज महान दार्शनिक नरेन्द्रनाथ दत्त उर्फ़ स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है। ०४ जुलाई १९०२ को ३९ वर्ष की अल्पायु में उनका निधन हुआ था।
पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्र का बचपन आम बच्चो के समान था, नटखट और खिलंदड़ा स्वाभाव। उनकी माता भक्ति भाव में अटूट विश्वास रखती थीं।
नरेंद्र पर उनका प्रभाव पड़ा। परमात्मा को पाने की लालसा जागी। अध्यात्म के प्रति लगाव बढ़ा। 

उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें धर्म और जाति के आधार पर मानव में कोई भेद भाव न हो। मात्र २५ वर्ष की आयु में उन्होंने गेरूआ वस्त्र धारण कर लिये। वो विवेकानंद हो गए। मानव और मानवता को समझने के लिए पूरे भारत की पैदल यात्रा की।
१८९३ में विश्व धर्म परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने वो शिकागो पहुंचे। तब भारत एक गुलाम देश था। यूरोप और अमेरिका के अनेक गोरी चमड़ी वाले भारतियों से घृणा करते थे। कई लोगों ने कोशिश की कि स्वामीजी को सर्वधर्म परिषद में बोलने का अवसर न मिले। लेकिन एक अमेरिकी मित्र ने यह कुटिल चक्र विफल कर दिया।
स्वामीजी को उन्हें थोड़ा ही समय दिया गया। जब उन्होंने प्रभावशाली शब्दों में भाषण की शुरुआत की - अमेरिकी बहनों और भाइयों। आपके उत्साहपूर्ण हार्दिक अभिनंदन से मेरा ह्रदय अवर्णनीय असीम आनंद से भर आया है। मैं आपको संसार की सबसे प्राचीन ऋषि मुनि परंपरा की और से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की और से धन्यवाद देता हूं.तो हाल में पिनड्रॉप साइलेंस छा गया। पूरी एकाग्रता से उनके विचार सुने गए। लोग हैरत में पड़ गए। भारत, भारतीय संस्कृति और जीवन पद्धति के बारे में लोगों ने प्रथम बार जाना। भाषण की समाप्ति पर सारे दर्शकों ने खड़े होकर देर तक तालियां बजाईं।
स्वामीजी के अमेरिका प्रवास के दौरान कुछ रोचक घटनायें हुईं।
स्वामीजी एक अमेरिकी महिला के मेहमान थे। अपना भोजन वो स्वयं बनाते थे।
एक शाम वो थके हारे लौटे। बहुत भूख लगी थी। जब वो भोजन बना रहे थे तो देखा कि उनके आस-पास कुछ बच्चे जमा हो गए। वे भूखे थे। स्वामीजी ने अपने लिए बनाया भोजन उन्हें दे दिया।
मेजबान को हैरानी हुई - सारी रोटियां तो बच्चों को दे दीं। अब आप क्या खाएंगे?
स्वामीजी ने मुस्कुरा कर कहा - रोटी तो पेट की आग को ठंडा करती है। मेरे पेट की न सही, दूसरे के पेट की सही। देने से बड़ा दूसरा कोई सुख नहीं है।
वो महिला नतमस्तक हो गई।
ऐसा ही एक और रोचक प्रसंग बताया जाता है।
भ्रमण के दौरान स्वामीजी ने देखा कि कुछ लड़के नदी में तैर रहे अंडों के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगा रहे हैं। निशाना बार बार चूक रहा है।

स्वामीजी से रहा नहीं गया। उन्होंने एक लड़के से बंदूक लेकर निशाना लगाया। बिलकुल सटीक निशाना लगा। लड़कों ने ताली बजाई।
स्वामीजी रुके नहीं। एक के बाद एक दर्जन भर सटीक निशाने लगा दिए।
लड़के हैरान - यह कैसे किया?
स्वामी जी ने कहा - बिलकुल सिंपल। जो भी करो, स्वयं को उस पर पूरी तरह फ़ोकस कर लो। कभी चूकोगे नहीं। मेरे भारत में बच्चों को यही सिखाया जाता है।
उन अमेरिकी लड़कों ने स्वामीजी को सैल्यूट किया।
०४-०७-२०१५    

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