Wednesday, July 1, 2015

मैडम मेरी क्यूरी - मर के भी चैन न पाया!

-वीर विनोद छाबड़ा
मशहूर वैज्ञानिक मैडम मेरी क्यूरी (०७-११-१८६७ से ०५-०७-१९३४) का असली नाम मारिया स्कोलोडोवस्का था। वो पोलैंड के वारसा शहर में जन्मीं थीं। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें ग्रेजुएट होने के बाद नौकरी करनी पड़ी।
इस दौरान उनका एक प्रेम प्रसंग चला जो उनकी गरीबी के मद्देनज़र जल्द ही दुखांत में परिवर्तित हो गया।
लेकिन इस आघात के बावजूद मेरी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अग्रतर अध्ययन के लिए पेरिस चलीं गयीं। यहां उनकी मुलाकात वैज्ञानिक पिएरे क्यूरी से हुई।

पिएरे विवाह नाम की संस्था को फ़िज़ूल मानते थे। उन्होंने माना - ज़िंदगी जीने के लिए स्त्रियां पुरुषों से बेहद प्यार करती हैं, मगर एक प्रतिभाशाली पत्नी का मिलना बेहद दुर्लभ कार्य है। लेकिन मेरी में यह दुर्लभ प्रतिभा है।
दोनों ने विवाह कर लिया। मेरी ने यूरेनियम खनिज में ज्यादा सक्रियता पायी। इस खोज का नाम अपने देश पोलैंड के नाम पर पोलेनियम रखा। बाद में उन्होंने रेडियम की खोज की। चिकित्सा जगत के लिए यह महान उपलब्धि रही। इससे क्रांति आ गयी।
१९०३ में मेरी क्यूरी को संयुक्त रूप से फिजिक्स में नोबल पुरुस्कार मिला। इसके बाद मेरी की लोकप्रियता और व्यस्तता बहुत बढ़ गयी। मगर कामयाबी उनके सर नहीं चढ़ी। वो बद्दस्तूर अपनी गोदामनुमा प्रयोगशाला में अग्रतर अध्ययन और खोज करती रहीं।
रेडियो एक्टिविटी किरणों के दुष्प्रभाव से उनके पति पिएरे क्यूरी का देहांत हो गया। मेरी टूट गयीं। वो गहरे अवसाद में चली जातीं अगर इस बीच उनके जीवन में एक वैज्ञानिक पॉल लैंग्विन आये। उन्होंने उसे मानसिक रूप से उभरने का हौसला दिया। वो चार बच्चो के पिता थे। बहुत विरोध हुआ इस प्रेम संबंध का। मुक़दमा भी चला। लेकिन मेरी कतई विचलित नहीं हुई।
मेरी को १९११ में फिर नोबल पुरुस्कार के लिए चुना गया। इस बार केमिस्ट्री के लिए। दो बार नोबल पाने वाली वो पहली महिला थीं। उनका फिर पुरज़ोर विरोध हुआ - जब तक तलाक संबंधी मुक़दमे का फैसला नहीं होता, तब तक पुरुस्कार स्थगित रखा जाए।
लेकिन मेरी ने दृढ़ता से मुंह तोड़ जवाब दिया - यह पुरुस्कार मुझे शोध के लिए दिया गया है, इसका मेरी निजी ज़िंदगी से कोई संबंध नहीं है।
मेरी की ज़िंदगी का एक रोचक प्रसंग है। दो नोबल पुरुस्कार हासिल करने के बावजूद मेरी बेहद साधारण जीवन व्यतीत करती थीं। एक दिन एक पत्रकार इंटरव्यू के लिए आया।
मेरी साधारण ड्रेस में घर का काम कर रही थी। पत्रकार ने पूछा  - तुम इस घर की नौकरानी लगती हो? मुझे मालकिन से मिलना है।
मेरी ने कहा - हां। मालकिन बाहर गयी हैं। और वो जल्दी नहीं लौटेंगी। कुछ काम है क्या
पत्रकार ने फिर पूछा - आपसे मेरे लिए कुछ कह कर गयीं हैं।

मेरी कहा - हां, कह गयी हैं कि किसी को उसकी वेशभूषा से नहीं उसके रहन-सहन से नहीं, उसके विचारों और उनके कृत्यों से पहचानना चाहिये।
पत्रकार ये सुन कर पानी-पानी हो गया। उसने मेरी से क्षमा मांगी। मेरी ने उसे क्षमा कर दिया।
मेरी के जीवन का अंत बेहद दुःखद रहा। रेडियो एक्टिविटी किरणों के दुष्परिणामों के प्रभाव से बचने के लिए उन्होंने कोई पुख्ता इंतेज़ाम नहीं किये थे। परिणाम यह हुआ कि उन्हें कैंसर हो गया। और कष्टप्रद मौत को गले लगाना पड़ा। उन्हें उनके पति पिएरे क्यूरी के बगल में दफना दिया गया।
लेकिन उनके चाहने वालों ने यहां भी उन्हें चैन से नहीं सोने दिया। ६० साल बाद उनके शव को निकाल कर सम्मानपूर्वक अन्यत्र दफ़नाया गया।
लेकिन कुछ मानवाधिकार एक्टिविस्ट ने इस पर आपत्ति की - इससे मैडम क्यूरी की शांति भंग हुई है।
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01-07-2015 Mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar Lucknow-226016  

1 comment:

  1. बहुत प्रेरणा देते हैं ऐसे प्रसंग ! बेहतरीन प्रस्तुति

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