Tuesday, September 13, 2016

माथे सिंदूर तोरे मूसे की सवारी।

-वीर विनोद छाबड़ा
आम तौर पर जहां बड़े लोग होते हैं वहां उनका वाहन भी होता है। लेकिन वाहन दिखता नहीं। बाहर रहता है चालक के साथ।
परंतु देवी-देवताओं के मामले में यह नियम लागू नहीं होता। उनके वाहन साथ में दिखाई देते हैं। जैसे, जहां गणेश जी हों वहां उनका वाहन मूषक न दिखे यह हो नहीं सकता।

जब हम छोटे थे तो समझते थे कि ऐसा इसलिए है कि वाहन चोरी न हो जाये। कोई चूहेदानी में न बंद कर दे। या बिल्ली न पीछे पड़ जाए।
बड़े हुए तो हमने प्रथम पूज्य गणेश जी के वाहन मूषक जी महाराज के बारे में कहीं एक दंत पढ़ी थी।
एक सुमेरू पर्वत था। उस ज़माने में ऋषि-मुनि बाक़ायदा शादी करते थे। पर्वतों पर आश्रम  बना कर एकांत में निवास करते थे। फल-फूल और प्राकृतिक रूप से उगने वाली सब्ज़ी और कंदमूल खाकर मस्त रहते थे।
वहीं एक ऋषि थे सौभरि। उनका आश्रम बहुत सुंदर था और पत्नी भी रूपवान होने के साथ गुणवती भी थी।
पत्नियां पतिव्रता होती थीं। किसी पर परूष की और देखना भी गुनाह। भूल से सपने में भी नहीं।
नाम था उसका मनोमयी। उस दिन लकड़ी ख़त्म हो गयी। चूल्हा कैसे जले? यज्ञ कैसे हो?
अब मनोमयी का जाना तो रूल ऑउट। जंगल का मामला। फिर ड्यूटी भी सौभरि की। वो चले लकड़ी लेने।
इधर कौंच नाम का एक शैतान गंधर्व वहां विचरण करते आ निकला। उसने आश्रम की बगिया में मनोमयी रूपसी को टहलते हुए देखा। दिल दे बैठा। और स्वयं पर नियंत्रण खो दिया। मनोमयी का हाथ पकड़ लिया।
ऋषि पत्नी मनोमयी ने दया की भीख मांगी। पतिव्रता होने का वास्ता दिया। लेकिन ढीठ और दुष्ट कौंच को तनिक भी दया नहीं आई।
तभी लकड़ी लेकर सौभरि ऋषि लौट आये। उन्हें यह दृश्य देखकर अत्यंत क्रोधित हुए। तुरंत श्राप दिया। दुष्ट तूने चोरी और छल से मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है। तू मूषक बन जा और पृथ्वी लोक में जाकर विचर। चोरी से भोजन कर और धरती के नीचे छुप कर रह।

कौंच को अपनी गलती का अहसास हुआ। पछतावा किया। क्षमा याचना की।
लेकिन सौभरि कतई नहीं पसीजे। परंतु अंततः थे तो ऋषि ही और ऊपर से दयालु। कुछ देर बाद में उनका क्रोध शांत हुआ।
परंतु दिक्कत यह थी कि नियमानुसार दिया श्राप वापस नहीं हो सकता था। हां, आशीर्वाद दिया जा सकता था।
सौभरि ऋषि ने यही किया। द्वापर युग में गणपति देव प्रकट होंगे, गजमुख के रूप में। तू मूषक के रूप में उनका वाहन बनेगा। समस्त देवगण की नज़रों में हमेशा बना रहेगा। लेकिन मानव जाति तेरी दुश्मन रहेगी। तुझे बर्दाश्त नहीं करेगी। अब से यही तेरी नियति है। 
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