-वीर विनोद छाबड़ा
बाजार ठंडा है। ऑनलाईन शॉपिंग का युग शुरू हो चुका है। घर बैठे
माल मिलता है, सस्ता और ब्रांडेड। बाज़ार जाने
की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती। आने-जाने का खर्च, समय और ऊर्जा की बचत भी। लेकिन कुछ रिटेलर ग्राहक की नस पहचानते हैं।
एक भद्र महिला कपड़े के एक स्टोर में घुसती है। सारे ब्रांड मौजूद
हैं वहां। मालिक गुरबचन सिंह जी ने स्वागत किया - आओ भैंणजी। बैठो, इधर नहीं, उधर बैठो जी। एसी की ठंडी-ठंडी
सोणी हवा मिलेगी। हांजी, हुक्म
करो जी। क्या दिखाऊं। सूट, साडी, लहंगा…ओये छिंदे कुछ ठंडा-शंडा ले आ भई।
महिला थोड़ा सकुचाई - मुझे एक ब्लाउज पीस चाहिए।
गुरबचन सिंह जी ने हाथ जोड़ दिए। तुस्सी उधर साड़ी-ब्लाउज कार्नर
चले जाओ…ओ छोटे भैंणजी दी सेवा कर छेती-छेती।
छोटे ने भैंणजी अभिनंदन किया। आदरपूर्वक बैठाया। फिर एक नहीं
दर्जनों पीस दिखाए। सारे रैक पलट दिए। पूरे-पूरे पैंतालीस मिनट खा गयीं भैंणजी। मगर कुछ भी पसंद नहीं आया। किसी का रंग उसके दिमाग में
बैठे रंग से मेल नही खाया तो किसी की क्वालिटी ख़राब लगी। किसी की शेड में फ़र्क। और
किसी के दाम ज्यादा। एक पीस पसंद तो था, लेकिन
इसे उन्होंने कल ही पड़ोसन को पहने देखा है। कतई नहीं खरीदना है। भैंणजी निराश हो गयीं
- जो मैं चाहती हैं, वो नहीं है आपके स्टोर में।
छोटे का दिमाग ख़राब हो गया। अब घंटा भर लगेगा। सारे पीस तह कर
सही जगह पर लगाने में। लेकिन गुरबचन सिंह जी का दिमाग कतई गर्म नहीं हुआ। उन्होंने
सर पर बर्फ की सिल्ली रखी हुई है। वो कूल-कूल विदा करते हैं। भैंणजी, आप आती रहा करें जी। त्वाडी ही दुकान है। पैसों की फ़िकर तो कभी करना ना जी। बीस-तीस
हज़ार तक का समान तो जब चाहो, ले लो
जी। पैसा आ जायेगा देर-सवेर।
गुरबचन सिंह जी की विनम्रता ने महिला का दिल जीत लिया। जी शुक्रिया।
वाहे गुरुजी की कृपा से पैसे की कमी नहीं है। आज पहली बार है कि आपके स्टोर में दिल की चीज़ मिली नहीं।
छोटे को हैरानी हुई। बाऊ जी, आप कैसे इतने ठंडे रहते हो? मुझसे
तो बरदाश्त नहीं होता। मेरा बस चले तो ऐसों को घुसने न दूं।
गुरबचन सिंह जी छोटे के सर पर हाथ रखा। छोटे, तू कद से नहीं दिमाग से छोटा है। तभी तो तू पिछले बीस साल से सेल्समेन है। मुझे
देख, सेल्समेन से मैनेजर और अब पार्टनर।
वाहे गुरूजी की कृपा से ये मीठी वाणी का दम है। मेरा दावा है, वो भैंणजी पलट कर ज़रूर आएगी। वाहेगुरू जी दी कसम, पूरी मार्किट में मुझ जैसा मिट्ठा बोलने वाला दूजा नहीं मिलणा।
और वाकई! वो महिला घंटे बाद भर पलट कर आई, कुछ झेंपी हुई सी। स्पष्टीकरण देती है। वही महरून ही दे दें। अभी एक ही पीस चाहिए।
हालांकि, दिल वाली चीज़ तो नहीं है। थोड़ा
फर्क शेड है। चला लूंगी किसी तरह।
गुरबचन जी मुस्कुराये। वेलकम जी वेलकम। और छोटे ने फौरन उनकी
पसंद का पीस पैक करके दे दिया। गुरबचन जी ने चिरपरिचित अंदाज़ में झुक कर दोबारा आने
का अनुरोध किया। जवाब ने उस महिला ने भी आश्वासन दिया। ज़रूर आऊंगी। अपनी दुकान छोड़
कर पराई दुकान क्यों जाऊंगी भला?
गुरबचन सिंह जी की मीठी वाणी ने अनगिनित परमानेंट ग्राहक बनाये
हैं। ग्राहक भी ये सोच कर आते हैं - काके क्लॉथ स्टोर थोड़ा महंगा ज़रूर है, लेकिन क्वालिटी बहुत अच्छी है। सामान भले न लो। मगर फिर भी मिट्ठा-मिट्ठा विदा
करते हैं। ठंडा पानी और चाय-शॉय अलग से। दिल जीत लेते हैं। आजकल के ज़माने में ये बहुत
बड़ी बात है। बड़े-बुज़ुर्ग सही कह गए हैं - सच बोल के जग जीतो और कड़वा बोल कर सौ दुश्मन
बनाओ।
अब ऑनलाईन शॉपिंग में न तो मिश्री जैसा कोई मिठास है और न ही
कोई ठंडा-शंडा या चा-पाणी है।
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Published in Prabhat Khabar dated 26 Sept 2016
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Lucknow - 226016
mob 7505663626
बहुत सुंदर, बहुत मनभावन, बहुत प्रेरक ब्लॉग है यह । रिश्तों की यह मिठास न तो ऑनलाइन शॉपिंग में है और न ही मॉलों में ।
ReplyDeleteहां, मीठेपन की वजह से लोग दूकान विशेष में जाना पसंद करते हैं, इतना ही नहीं, इसी तर्ज पर मीठे बोलने वाले के दोस्त भी अधिक होते हैं ।
ReplyDeleteहां, मीठेपन की वजह से लोग दूकान विशेष में जाना पसंद करते हैं, इतना ही नहीं, इसी तर्ज पर मीठे बोलने वाले के दोस्त भी अधिक होते हैं ।
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