-वीर विनोद छाबड़ा
ईसा मसीह सब बंदो से प्यार करते थे। चाहे वो अमीर हो या ग़रीब।
एक दिन वो दीन-दुखियों से भेंट कर उन्हें सब ठीक हो जाने का आश्वासन दे रहे थे।
साथ ही कुछ वस्त्र, भोजन, फल आदि भी भेंट कर रहे थे।
सहसा वहां पर उनके विरोध करने वाले भी आ गए। वो ईसा मसीह विरोधी नारे लगाने लगे।
ईसा मसीह ने उन्हें शांत रहने को कहा। और फिर एक-एक करके उनकी शिकायत सुनी।
विरोधियों को बुरा लग रहा था कि ईसा मसीह हर ऐरे-गैरे और घृणित लोगों के गले मिल
रहे हैं। आप उनमें और हममें कोई अंतर नहीं रखते हैं। इससे वो अपवित्र हो रहे हैं। धर्म
संकट में है। धरती का नाश सन्निकट है।
ईसा मसीह शांत चित्त से बोले - ठीक है। चलो वैद्य जी के पास। वहीँ इंसाफ हो जायेगा।
विरोधी बोले - मगर क्यों? वैद्य जी क्या करेंगे? और फिर हम तो चंगे-भले हैं।
ईसा मसीह बोले - मैं दरअसल यह दिखाना चाहता हूं कि वैद्यजी बिना अमीर-गरीब और गोरे-काले
की नस्ल का भेद किये सबका समान रूप से ईलाज करते हैं। उसी प्रकार मैं भी अमीर-गरीब, दीन-दुखी और गोरे-काले
सबको एक समान समझ कर उन्हें प्रभु के दिखाये मार्ग को दिखाता हूं।
यह सुन कर विरोधी खेमा लज्जित हुआ और खिसक गया।
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२७-०४-२०१५
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