-वीर विनोद छाबड़ा
एक प्राचीन कथा जिसे बचपन में मां हमें नसीहत देने के लिए सुनाया करती थी।
एक बूढी महिला के पास खूब लंबे-चौड़े खेत थे। वो बड़ी मेहनत करती थी। और ठाठ से रहती
भी थी। उसकी आमदनी इतनी अधिक थी कि और अन्य असहाय महिलाओं की मदद भी करती।
मगर गांव के जमींदार की उसके खेत पर बुरी नज़र थी। एक दिन उसने इसे दुगना करने का
लालच देकर एक कोरे कागज़ पर दस्तखत करा लिए। और फिर उसका सारा खेत हड़प लिया।
बूढ़ी महिला के पास अब कुछ नहीं रहा। उसके पास खाने के लिए भी नहीं बचा। वो इधर-उधर
बहुत भटकी। लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। तब बुढ़िया उसी जमींदार के पास गई।
उसे देख जमींदार हैरान हुआ - यह बुढ़िया मेरे पास क्यों आई है? क्या इसके पास कुछ
सम्पति बाकी है जिसे गिरवी रखने या बेचने आई है या फिर कोई काम धंधा मांगने?
बुढ़िया बोली - मुझे तुझसे कुछ नहीं चाहिए। बस अपने खेत की पेटी भर मिट्टी चाहिए।
जमींदार ने पूछा - तू मिट्टी लेकर क्या करेगी?
बुढ़िया ने कहा - यह खेत मेरे स्वर्गीय पति और उसके पुरखों की निशानी थे। इससे मुझे
खाने-पीने के लिए खूब मिलता था। दूसरों की मदद भी मैं करती थी। लेकिन तेरे झांसे में
सब कुछ गंवा बैठी। मुझे अपने खेत से भावनात्मक लगाव है। इसकी थोड़ी सी मिट्टी मिल जाए
तो मैं चैन से मर सकूंगी।
जमींदार ने कहा - ठीक है ले ले। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन जमींदार मूल रूप से लालची था। कहीं खेत में कोई गड़ा खज़ाना तो नहीं? यह सोच वो बुढ़िया के
साथ-साथ चल दिया।
बुढ़िया ने एक पेटी में मट्टी भरी और सर पर रखने के लिए जमींदार से मदद मांगी।
जमींदार को हैरानी हुई - यह इस पेटी इतनी भारी है कि तू इसके बोझ तले तब कर मर
जाएगी।
बुढ़िया बोली - मैं एक पेटी के बोझ तले
मर जाउंगी। तू तो पूरा खेत रखे है। इसका बोझ उठा कर चल सकेगा? मर न जायेगा?
जमींदार बुढ़िया की बात का मर्म समझ गया। उसने फौरन बुढ़िया से क्षमा मांगी - मैं
समझ गया। मेरी आंखें खुल गई हैं। मैं तुझे तेरा खेत वापस करता हूं।
कुछ दिनों बाद वो ज़मींदार पूरी तरह से परोपकारी हो गया। वो सबसे यही कहता था -
क्या तेरा? क्या मेरा?अंत में सब यहीं तो रह जाना है।
मां ने कई बार यह कहानी सुनाई। सुनते-सुनते कई बार आंख लगी।
-वीर विनोद छाबड़ा
14 April 2015
कहानी का मर्म वर्तमान समय मे कोई समझ नही पायेगा यह तो उस वक्त की बात है जब हम सभी को नैतिकता और समाजिकता की ज्ञान की बातों को न तो कोई सुनता है और न कोई सुनता है हमारे आपके समय स्कूलो में समाजिक शिक्षा की पुअतक बचो को पढ़ाई जाती थी अब सब कुछ समाज मे बदल चूका है वर्तमान समय मे आदर्शो एवं नैतिकता का पतन हो चुका है।
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