-वीर विनोद छाबड़ा
अब्राहम लिंकन १८६१ से १८६५ तक अमरीका के १६वें राष्ट्रपति रहे हैं।
एक वक़्त था उनका जीवन एक आम आदमी के समान था। वो चाय की पत्ती बेचते थे उन दिनों।
बहरहाल किस्सा यों है। अपनी ज़िंदगी के शुरुआती दिनों में अब्राहम लिंकन एक चाय
की दुकान पर नौकरी करते थे। यह उनके मुफ़लिसी के दिन थे। अपना पेट भरने के लिए सब करना
पड़ता है।
एक दिन एक बुज़ुर्ग महिला उनसे किलो भर चाय खरीद कर ले गई। शाम हिसाब-किताब किया
तो कुछ गड़बड़ निकला। स्टॉक सही स्थिति नहीं में नहीं था। गल्ले में पैसे भी ज्यादा थे।
अब्राहम लिंकन परेशान कि कहां हो गई गलती? दिमाग पर बहुत जोर
लगाया तो याद आया कि एक बुज़ुर्ग महिला आई थी। बहुत बोल रही थी। शायद वहीं गलती हुई
है। एक किलो के स्थान पर आधा किलो तोल दी।
अब क्या करूं? कल तक का इंतज़ार? लेकिन हो सकता है कि वो कल इधर आये ही नहीं! या उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाये।
तरह तरह के ख्यालात उनके ज़हन में तैरने लगे। इससे वो परेशान हो गए। उन्हें लगा
कि बड़ी भूल हो गयी। भगवान माफ़ नहीं करेंगे।
अचानक उन्हें ख्याल आया कि वो खुद उस बुज़ुर्ग महिला के घर जायें और उसे बकाया आधा
किलो चाय की पत्ती दे दें। अब्राहम लिंकन को उस महिला के घर की स्थिति का थोड़ा अंदाज़ा
था।
शाम ढल चुकी थी। अब्राहम लिंकन ने लालटेन उठाई। उस बुज़ुर्ग महिला का घर वहां बहुत
दूर था। उबड़-खाबड़ रास्ता। लेकिन
अब्राहम लिंकन हार मानने वालों में नहीं थे। किसी तरह उस बुज़ुर्ग महिला के घर जा पहुंचे।
दरवाज़ा खटखटाया। वो बुज़ुर्ग महिला बाहर आई। और अब्राहम लिंकन को देख कर हैरान-परेशान
हो गई।
अब्राहम लिंकन ने क्षमा याचना करते हुए बाकी आधा किलो चाय का पैकेट उन्हें थमाते
हुए सच्चाई बताई।
उस बुज़ुर्ग महिला ने उन्हें आशीष दी - इसी तरह ईमानदारी से काम करता रहेगा तो तू
बड़ा आदमी बनेगा।
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-वीर विनोद छाबड़ा
17-04-2015
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