-वीर विनोद छाबड़ा
फिल्मवालों के जीवन में बड़े उतार-चढ़ाव आते हैं। अब आशा पारेख को ही देख लें। विजय
भट्ट ने 'गूंज उठी शहनाई' के लिए उन्हें रिजेक्ट कर दिया - प्रेम विषयों के लिए यह तो अभी बच्ची है।
कुछ दिन बाद आशा नासिर हुसैन की 'दिल देके देखो' के सेट पर थी। अभी शॉट रेडी होने में टाइम था। वो लड़की हेरोल्ड रॉबिंस का नावेल
'दि कारपेट बैगर्स' पढ़ रही थी। उधर से गुज़रते एक नौजवान ने कमेंट किया - तुम्हारी उम्र इसे पढ़ने की
नहीं है। बहुत छोटी हो।
आशा उस नौजवान को पहली बार देख रही थी। चिड़ कर बोली - जी चाचाजी।
यह नौजवान शम्मी कपूर थे। उन्होंने भी आशा को पहली बार देखा था। फिर ज़िंदगी भर
उनका रिश्ता चाचा-भतीजी का बना रहा।
इस मुलाकात से पहले शम्मी कपूर की पसंद आशा की जगह वहीदा रहमान थी। लेकिन निर्माता
की पहली पसंद आशा नहीं साधना थी। लेकिन संयोग से साधना को तब तक 'लव इन शिमला' मिल चुकी थी।
अब यह संयोग है कि आशा के पहले निर्देशक नासिर हुसैन थे और साधना के आरके नैय्यर।
दोनों ने ही ज़िंदगी भर उनका साथ निभाया। हर
किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता।
आशा की उस दौर के तीन प्रसिद्ध स्टार के साथ काम करने की हसरत थी। मगर सिर्फ देवानंद
का साथ ही नसीब हो पाया। 'जब प्यार किसी से होता है' और फिर बरसों बाद 'महल' में।
राजकपूर के साथ 'चोर मंडली' की शूटिंग शुरू हुई। लेकिन कुछ दिन बाद डिब्बे में बंद हो गयी। दिलीप कुमार के
साथ 'ज़बरदस्त' शुरू हुई। लेकिन कादर खान को सामने देख कर दिलीप कुमार असहज हो गए - यह तो मेरी
नकल कर रहा है। हटाओ, मेरे सामने से।
मगर निर्माता-निर्देशक नासिर हुसैन तैयार नहीं हुए। दिलीप ने फिल्म छोड़ दी। संजीव
कुमार आ गए उनकी जगह।
शक्ति सामंत की 'कटी पतंग' आशा की सबसे पसंदीदा
फिल्मों में से है। श्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरुस्कार भी मिला।
शक्तिदा के साथ 'आराधना' और 'अमर प्रेम' कर चुकी शर्मीला टैगोर का उन दिनों दावा था कि 'कटी पतंग' उनकी छोड़ी हुई फिल्म
है। इसके उलट आशा का दावा था कि उन्होंने कतिपय कारणों से शक्तिदा की कश्मीर की कली, ऐन इवनिंग इन पेरिस
और आराधना उन्होंने ठुकरा दी थीं जिन्हें बाद में शर्मीला ने लपक लिया।
आशा का यह भी दावा है कि 'शराफत' और 'सीता और गीता' सर्वप्रथम उन्हें ऑफर हुई थी लेकिन पेमेंट के कारण बात बनी नहीं। उन दिनों आशा
सबसे महंगी नायिका थी। इसे हेमा मालिनी ने हड़प लिया और वो रातों-रात स्टार बन गई।
'बहारों के सपने' जब आशा को ऑफर हुई तो नवागंतुक हीरो राजेश
खन्ना का सामने देख कर वो असहज हुई। वो स्थापित नामी कलाकार थी। लेकिन निर्माता-निर्देशक
नासिर हुसैन के कहने पर वो मान गयीं। बाद में आशा ने राजेश के साथ 'कटी पतंग' और 'आन मिलो सजना' की। किस्मत की मार
देखिये कि कुछ साल बाद 'धर्म और कानून' में राजेश खन्ना हीरो थे और सामने आशा पारेख की चरित्र अभिनेत्री समकक्ष छोटी भूमिका।
आशा पारेख की फिर वही दिल लाया हूं,
ज़िद्दी, बहारों के सपने, प्यार का मौसम, आये दिन बहार के, आया सावन झूम के, तीसरी मंज़िल, कारवां, शिकार, पत्थर और पायल, समाधि, उपकार, साजन आदि अन्य यादगार फ़िल्में हैं।
आशा पारेख को राजखोसला ने यकीन दिलाया कि उसकी ग्लैमर की दुनिया से अलग पहचान है, एक बहुत ही उम्दा और
संजीदा बड़ी आर्टिस्ट की। और आशा ने भी उनके इस यकीन को दो बदन, चिराग़, मेरा गांव मेरा देश और मैं तुलसी तेरे आंगन में कायम रखा।
फिल्म उद्योग की जुबली गर्ल आशा पारेख का निक नेम टॉमबॉय था। आशा पारेख की पसंदीदा
फ़िल्में हैं- दो बदन, चिराग़, कटी पतंग और पगला कहीं का है।
आशा ने टीवी के पर्दे पर भी कमाल दिखाया था। कोरा काग़ज़ की ५२ कड़ियां निर्देशित
की थीं।
लेकिन परदे के बाहर आशा को बड़ी भूमिकाएं मिलीं। १९९४ से १९९८ तक सिने आर्टिस्ट
एसोसिएशन की प्रेजिडेंट और फिर १९९८ से २००१ तक सेंसर बोर्ड की चीफ़ रहीं।
आशा का पसंदीदा फिल्मांकित गाना 'मेरे सनम' से है - जाइये आप कहां जाएंगे, यह नज़र लौटके फिर आएगी… जबकि मेरी नज़र में
सर्वश्रेष्ठ है 'दो बदन' का - मत जइयो नौकरिया छोड़ कर.…
आशा पारेख को भारत सरकार ने १९९२ में पदमश्री से नवाज़ा तो फिल्मफेयर ने २००२ में
लाइफ टाइम दिया।
लगभग ९४ फिल्मों वाली ७३ बरस की हो चुकी आशा पारेख इन दिनों अपनी डांस एकेडेमी
में व्यस्त हैं।
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२०-०४-२०१५
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