-वीर विनोद छाबड़ा
मुंशीजी बिल्ली से बहुत परेशान थे। जितना वो उसे दुत्कारते उससे कहीं ज्यादा बिल्ली
उनसे प्यार करती थी। सारे खिड़की दरवाज़े बंद
करने के बावजूद उसे कहीं न कहीं से घुसने का मौका मिल जाता।
जिस दिन बिल्ली घर में न घुस पाती उस दिन वो दरवाज़े पर बैठ कर घंटो रोती। उसके
मनहूस करुण रुदन से आजिज़ होकर मुंशियाइन धीरे से दरवाज़ा खोल देती और बिल्ली अंदर आकर
चुपचाप मुंशीजी के पलंग के नीचे सो जाती। इस बीच वो चूहों पर भी नज़र रखती।
सुबह होते ही बिल्ली एक बड़ी अंगड़ाई लेने के बाद म्याऊं-म्याऊं का जाप करती। मुंशीजी
की नींद इसी से खुलती। वो उसे चप्पल या डंडा, जो भी हाथ में आता, लेकर दौड़ाते और बिल्ली मुंशीजी को। इस खटर-पटर को सुनकर मुंशीजी
के आधा दर्जन बच्चे भी उठ जाते और ताली बजा-बजा कर कभी मुंशी जी का तो कभी बिल्ली का
उत्साह बढ़ाते।
खासी धमा-चौकड़ी के बाद आख़िर में मुंशियाइन की ही अकल काम आती। वो दरवाज़ा खोल देतीं।
बिल्ली को यही चाहिये होता था। वो फट से बाहर हो जाती। और मुंशीजी विजई मुद्रा में
भागती बिल्ली पर चप्पल पर फेंकते - भागी साली।
मुंशीजी घर से उठते शोर से अड़ोसी-पडोसी भी जाग जाते -चलो सवेरा हो गया।
यह नज़ारा किसी लंबे हास्य दृश्य समान होता था। मुंशीजी को बिल्ली इसलिए फूटी आंख
नहीं सुहाती थी कि उसने उनके नए-नए स्कूटर की गद्दी जगह-जगह से पैने नाखूनों से छेददार
बना डाली थी। एक-दूसरे से कोई पुरानी अदावत थी जैसे।
दूसरी वज़ह ज्यादा महत्वपूर्ण थी। मुंशियाइन अक्सर बिल्ली से बातें करती और बिल्ली
भी उन्हें म्याऊं-म्याऊं से जवाब देती। मुंशीजी को इस पर इतना ऐतराज नहीं था। समस्या
यह थी कि मुंशियाइन उससे बड़े प्यार से बातें करती। काश कभी मुंशीजी पर इतना प्यार लुटाया
होता! अगर वो दूध में मुंह भी मार जाती तो मुंशियाइन को कोई प्रॉब्लम नहीं होती। मुंशियाइन
इस नरमी से बिल्ली से पेश आती मानों वो मायके से आई उसकी बहनें हों। मुंशीजी को कभी-कभी
यह भी शक़ होता वो कि बिल्ली मुंशियाइन के मायके से जासूसी के लिए भेजी गई है।
बिल्ली से परेशान मुंशीजी को एक दिन उनके मित्र ने कारगर सलाह दी।
मुंशीजी अविलंब घर आये। प्याले में दूध उड़ेला और फिर जेब से एक पुड़िया में रखा
पाउडर उसमें मिला दिया।
बिल्ली आई और उस दूध को पीकर बेहोश हो गयी। मुंशी जी ने उसे एक बैग में डाला और
दूर दूसरे मोहल्ले में छोड़ आये।
मुंशीजी विजई मुद्रा में घर लौटे तो वहां का नज़ारा देख उन्हें सांप सूंघ गया।
मुंशियाइन प्यार से तोतली ज़बान में बिल्ली से बातें कर रही थी। लेकिन मुंशीजी ने
हिम्मत नहीं हारी। उन्हें मालूम था कि बिल्लियां अक्सर रास्ता भूलती हैं। कभी न कभी
ये बिल्ली भी रास्ता भूलेगी। उन्होंने दोबारा कोशिश की। दस मोहल्ले पार पांच किलोमीटर
दूर छोड़ आये। लेकिन बिल्ली उनकी भी मौसी निकली। घर में घुसने से पहले ही म्याऊं-म्याऊं
की टर्र-टर्र सुनाई दी।
जब ऐसी हो चौथी कोशिश भी नाकाम हुई तो मुंशीजी ने मास्टर स्ट्रोक खेला। इस बार
करीब पच्चीस किलोमीटर दूर एक घने जंगल में बिल्ली को छोड़ा।
कोई घंटे बाद मुंशीजी ने मुंशियाइन को फ़ोन करके पूछा - बिल्ली वापस तो नहीं आई?
मुंशियाइन ने गर्व से बताया - वो तो बड़े मज़े से दूध पी रही है।
मुंशीजी ने बहदवास होकर कहा - उसे जल्दी वापस भेजो, मैं रास्ता भूल गया
हूं।
नोट - एक छोटे से लतीफ़े पर आधारित।
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-वीर विनोद छाबड़ा
29-04-2015 Mob 7505663626
D-2290, Indira Nagar, Lucknow-226016 (India)
बहुत ही सुन्दर रचना हैं... धन्यवाद् इसे शेयर करने के लिए...
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