-वीर विनोद छाबड़ा
मुझे नहीं लगता कि किसी बंदे को कभी प्यार न हुआ हो। यह बात अलबत्ता दूसरी है कि
किसी को इज़हार करने का मौका मिला औए किसी को नहीं। किसी को कामयाबी मिली औए किसी को
नहीं।
मुझे पहला प्यार तब हुआ था जब मैं आठवें दर्जे में था। और वो मुझसे १७ साल बड़ी
थी और सिनेमा की नामी हस्ती। भारतीय सिनेमा की वीनस कहलाती थी। नाम था मधुबाला। ज़ाहिर
है यह एक पागलपन था। चार-पांच साल में टूट गया।
दूसरी बार मैं बीए में था। वो भी मुझसे चार-पांच साल बड़ी थी। बेहद ख़ूबसूरत। ज़बरदस्त
कशिश थी। मैं उसकी हर अदा को निहारता रहता। उसका भाई मेरा दोस्त था। उसकी तो शादी भी
तय थी। बस बारात आने की देर थी। मुझे यह भी मालूम था कि यह वो प्यार है जो कभी फलीभूत
नहीं होगा। और मुझे देवदास की तरह विछोह की आग में ताउम्र जलना है। अगले जन्म में मुलाक़ात
तक। एक सच्चे भारतीय प्रेमी की तरह कभी इज़हार नहीं कर पाया। यों सपने देखने पर तो कोई
रोक थी नहीं। कुछ भी देखो, जी भर कर।
जिस दिन उसका विवाह था उस रोज़ मैं सुबह से एक अच्छे पडोसी की तरह तैयारियों में
लगा था। झंडियां लगाने से लेकर बर्तन गिनने और उन्हें धोकर, कायदे पोंछ-सुखा कर
मेज़ पर सजाने तक। हर डिपार्टमेंट में दखल था। हर तरफ पुकार थी। मैं इस विदाई को यादगार
बनाना चाहता था।
फिर वो वक़्त आया जब मैंने उसे गिफ्ट दिया। एक खूबसूरत सा पेन - जब मेरी याद आये
तो एक चिट्ठी ज़रूर लिखना।
उसने मेरे गाल पर एक प्यारी सी चपत लगाई और अपने पति से परिचय कराया - यह भी मेरा
छोटा भाई है - बिल्लू। उसे मेरा पूरा नाम तक नहीं मालूम था। यों भी, अपवादों को छोड़कर, अड़ोस-पड़ोस में रहने
वालों को एक-दूसरे के असली नाम जानने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
बहरहाल, लगा ताजमहल भरभरा कर ढह गया है। गर्म-गर्म शीशा डाल दिया किसी ने कान में। मैंने
खुद को संभाला किसी तरह और एक भद्दी सी गाली देते हुए डांटा - टुच्चे-हरामज़ादे। वो तुझे भाई कहती है और तू.…छी छी छी.…मैच्योरिटी कब आयगी
तेरे को?
मैं दो रात से सोया नहीं था और न कुछ खाया था। मन ही नहीं हो रहा था। उधर उसकी
डोली उठी और मैं पछाड़ खाकर गिर पड़ा।
होश आया तो अपने घर में बिस्तर पर था। सारा परिवार जमा था। गर्मागर्म मसाले की
खोज में कुछ पडोसी भी। मां ने पूछा - क्या
हुआ था?
मैंने कहा पेट में बहुत तेज गैस बनी और चक्कर आ गया।
और यही सच भी था।
होश में आने की खबर पाकर उसकी मां आई। मेरा माथा चूमते हुए बोली - बहन की विदाई
का दुःख भाई को नहीं तो किसको होगा?
किसी भी किस्म की संभावित कंट्रोवर्सी पर पूर्ण विराम।
कई साल गुज़र चुके हैं। वो विदेश में है। उसका भाई आज भी मेरा अच्छा दोस्त है। दो
साल पहले वो भारत आई थी। टेलीफ़ोन पर बात हुई। मैंने कहा - कैसी हो?
उसने मुझे घुड़क दिया - साले, तुझसे बड़ी हूं। दीदी बोल।
वो तब भी ऐसे ही बोलती थी। मैंने कहा - ओ.के. बड़ी बहन जी। दो एक रोज़ में आता हूं।
किसी कारणवश जा नहीं पाया। इस साल फिर आएगी सर्दियों में। तक़दीर में लिखा होगा
तो देखूंगा कि ७० बरस की उम्र में वो कैसी दिखती है? बस तमन्ना है कि उसे
बताऊं एक बार कि मैं शुरू-शुरू में उसे किस नज़र से देखता था और फिर यक़ीनन ज़ोरदार ठहाके।
वो तो पहले ही मच्योर थी और अब मैं भी पर्याप्त मच्योर हूं।
-वीर विनोद छाबड़ा16-04-2015
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