Sunday, April 12, 2015

चार्ली चैपलिन - कॉमेडी की ट्रेजडी!

-वीर विनोद छाबड़ा
दुनिया के महान विदूषक चार्ली चैपलिन को दुनिया से विदा हुए ४१ साल गुज़र चुके हैं
चार्ली की फिल्मों को समझने के लिए भाषा की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। सिर्फ़ व्यंग्य और हास्य की समझ रखने वाला सौंदर्यबोध चाहिए।

चार्ली ने लगभग ६८ फिल्मों में काम किया था। ७२ फ़िल्में डाइरेक्ट कीं। अपनी कई फिल्मों की कहानी भी उन्होंने खुद लिखी। ३७ फ़िल्में प्रोड्यूस भी करीं।
चार्ली कितने बड़े विदूषक थे इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी ज्यादातर फ़िल्में क्लासिक की श्रेणी में शुमार की गयीं। कुछ मशहूर फ़िल्में थीं - दि ग्रेट डिक्टेटर, सिटी लाइट्स, मॉडर्न टाइम्स, दि गोल्ड रश, दि डॉग्स लाइफ, दि बैंक आदि।
ट्रेजडी ने चार्ली का दामन उनकी पैदाइश से ज़िंदगी के आखिर तक नहीं छोड़ा। कभी मुफलिसी और कभी अपनी कर्मभूमि में उनका दाखिला बंद किया गया।  चार्ली १६ अप्रैल १८८९ को इंग्लैंड में जन्में थे मगर फ़िल्में उन्होंने हॉलीवुड में बनाई। कम्युनिस्ट रूस के प्रति सहानुभूति के कारण उन्हें अमेरिका ने पुनः प्रवेश नहीं दिया। वो सर्वहारा के नायक थे।
त्रासदी ने मौत के बाद भी चार्ली का दामन नहीं छोड़ा। उनकी मृत्य २५ दिसंबर को स्विट्ज़रलैंड में हुई थी। उन्हें वहीं दफ़न भी किया गया। मगर कुछ वक़्त बाद दो चोर उनका कॉफिन चुरा कर ले भागे। खासी मशक्कत के बाद चोरों को धर दबोचा गया। और उनका कॉफिन वापस उनकी कब्र में दफ़न कर दिया गया।  
चार्ली के संबंध में एक दिलचस्प वाक्या मैं बचपन से ही सुनता चला आ रहा हूं।
बात उन दिनों की है जब चार्ली चैपलिन की कई फ़िल्में रिलीज़ हो चुकी थीं। वो घर-घर का नाम बन चुके थे।
एक दिन चार्ली ने सुना कि एक संस्था ने प्रतियोगिता आयोजित की है कि जो चार्ली की परफेक्ट नकल करके दिखाएगा उसे नकद इनाम दिया जाएगा।
चार्ली के साथ उन दिनों पैसे की किल्लत चल रही थी।
मगर कुछ का कहना है कि चार्ली ये देखना चाहते थे कि वो अपनी नकल किस हद तक कर सकते हैं।
 
बहरहाल चार्ली प्रतियोगिता स्थल पर भेस बदल कर पहुंचे ताकि उन्हें कोई पहचान न सके। एक के बाद एक अनेक प्रतिभागियों ने चार्ली की मिमक्री की।
काफी देर बाद चार्ली का नंबर भी आया। उन्हें खुद की नकल करने में कतई दिक्कत नहीं हुई।
चार्ली को यकीन था कि ईनाम तो उन्हें ही मिलेगा।
मगर उन पर व्रजपात टूट पड़ा जब श्रेष्ठता के क्रम में उन्होंने खुद को बहुत पीछे खड़ा पाया।
लिहाज़ा उन्हें कोई ईनाम नहीं मिला।
कॉमेडी की इससे बड़ी ट्रेजडी और क्या हो सकती है।
-वीर विनोद छाबड़ा 

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