-वीर विनोद छाबड़ा
अभी-अभी
मेमसाब एक प्लेट में रख कुछ लायी।
बोलीं - खाओ। अभी-अभी बनाया है। बिलकुल गरमा-गरम है।
हमने
थोड़ा सा टुकड़ा खाया। दो राय नहीं बहुत स्वादिष्ट था। हम याद करने लगा कि ये क्या चीज़
है। पहले कभी खायी नहीं।
मेमसाब
मेरे चेहरे पर उभर रही प्रतिक्रिया पढ़ रही थीं। कुछ पल बाद उनके चेहरे पर उभरती लकीरें
पूछने लगीं - अच्छा नहीं लगा?
मेमसाब
से यह कहना कि अच्छा नहीं, बर्र के छत्ते में हाथ डालना है। समझ लीजिये लंच गया। ये सोच कर हमने कहा - नहीं, बहुत अच्छा है। लेकिन ये है क्या?
हमारी
सकारात्मक प्रतिक्रिया पर मेमसाब खुश होकर बोली - ये केक है। कल टीवी पर सीखा इसे बनाना।
सहसा
हमें ख्याल आया - अरे, आज मैं फिर फंस गया। टारगेट बन गया।
दरअसल
मेमसाब जब भी कोई नया आईटम बनाती हैं तो सबसे पहले हमें परोसती है। उसके आधे घंटे बाद
जब उन्हें यकीन हो जाता है कि इस आईटम का कोई
एडवर्स इफ़ेक्ट नहीं है तब वो खुद और फिर बच्चों को खिलाती हैं। यानी हम उनके लिए हमेशा
एक्सपेरिमेंट का ऑब्जेक्ट रहे हैं।
हमें
याद आता है बरसों पहले मेमसाब ने यह बात अपनी पड़ोसन श्रीमती त्रिवेदी को बताई थी -
भाभी जी, मैं तो
जब भी कोई नया आईटम बनाती हूं तो सबसे मेरे पहले दीपा के पापा को स्वाद चखा कर इत्मीनान
कर लेती हूं कि आईटम ठीक बना है।
इसके
बाद वो पडोसी त्रिवेदी दंपति हर दूसरे-तीसरे दिन हमें सुबह-सुबह घर पर बुला लेते और
कुछ न कुछ बढ़िया आईटम खिलाते रहे। एक दिन हमें ख्याल आया कि पड़ोसी दंपति हम पर फ़िदा
क्यों? क्यों
आये दिन हमें कभी समोसा तो कभी जलेबी और कभी आइसक्रीम ऑफर करता है? पडोसी पर इतनी मेहरबानी की कोई न कोई वज़ह तो
होगी ही? कोई राज़
ज़रूर है इसमें? दाल में कुछ काला।
और हमने
जासूसी कर डाली। तब पता चला कि ये आग हमारी ही मेमसाब की लगाई हुई है। इसी से प्रभावित
होकर ये त्रिवेदी दंपति अपने घर में पहली बार बने हर नए आईटम का प्रथम प्रयोग हम पर
करती है। जब आधे घंटे तक कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता तब खुद खाते हैं।
तब हमने
गुस्से से कहा - भैया, बड़े सयाने हो। एक्सपेरिमेंट के लिए तुम्हें हमीं मिले।
हम त्रिवेदी
दंपति से कई दिन तक नाराज़ रहे।
लेकिन
एक दिन वो हमें मना ले गए। समोसा-जलेबी खिलाया। बहुत बढ़िया लगा। हमने पूछा - किस हलवाई
का है?
वो बोले
- है तो बाजार का, लेकिन हम भी उस हलवाई से पहली बार खरीद कर लाये हैं।
हमारे
तन-बदन में आग लग गयी। फिर हमीं पर एक्सपेरिमेंट?
त्रिवेदी
जी ज़ोर से हंसे - नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है। हमारा साला थोड़ी देर पहले चख कर गया है। सब ठीक-ठाक है।
बाद में
त्रिवेदीजी मेरे अभिन्न मित्र बने। करीब ढाई साल हो चुके हैं उनको इस संसार से विदा
हुए। जब भी एक्सपेरिमेंट का ज़िक्र होता है हमें उनकी बड़ी शिद्दत से याद ज़रूर आती है।
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