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वीर विनोद छाबड़ा
शहर के भीतर बड़ी-बड़ी गाड़ियों सुबह से शाम तक दौड़ती हैं। अनेक में तो नाकाफी सवारियां
होती हैं।
हमारा पड़ोसी बड़ा आदमी है। आधा दर्जन बड़ी कारों का बेड़ा है। सफ़ारी में अकेले ही
निकलता है। बड़ी शान से। जैसे कोई तमगा हासिल करने जा रहा है। दो चार को बैठा कर निकल
लेता तो क्या हर्ज़ था? ये लोग कभी ऐसा सोच भी नहीं सकते। यार एक दिन लिफ्ट दोगे, दूसरे फिर आ खड़े होंगे।
इन्हीं के बड़े भाई हुआ करते थे। बड़ी कार से चलते थे। किसी को पैदल चलते देखते तो कार
रोक देते - आजा मेरे गाड़ी में बैठ जा।
आज अपने पुराने ऑफिस गया एक काम से। एक बड़े अधिकारी स्विफ्ट से निकल रहे थे। उन्हीं
से काम था। देखते ही बोले - लंच के लिए जा रहा हूं। उनके स्तर के बाकी सभी अधिकारी
भी पीछे-पीछे लंच के लिए निकल लिए।
हमें याद है कि कभी मेरे साथ कालीचरण के ढाबे पर चाय के साथ पकौड़ी का लंच किया
करता था। अब बड़ा अफ़सर हो गया है। घर जाना ज़रूरी है। नहीं जायेगा तो बड़ा कैसे कहलायेगा? हालांकि प्रोटोकॉल
में कहीं लिखा नहीं है। यहीं दफ्तर में टिफिन मंगा लिया करे तो कोई छोटा नहीं हो जायेगा।
पेट्रोल-डीज़ल बचेगा। प्रदूषण भी कम होगा। टाईम और ऊर्जा की भी बचत। लेकिन कौन मानेगा
मेरी? बड़े लोग, बड़ी बातें।
हमने देखा है कि घर में छोटी कार भी है, वही ६०० सीसी या ८०० सीसी वाली। किसी गली में भी आसानी से घुस
जाये। कम ईंधन लेगी। प्रदूषण भी कम। लेकिन फिर भी बड़ी कार से चलेंगे। हम पूछते नहीं।
क्योंकि जवाब हमने मालूम है - अबे हट पीछे। तेरे बाप की जेब से पैसा जाता है क्या?
हम अपने सीएम को यह गुरुमंत्र देंगे तो उन्हें आईडिया अच्छा लगेगा। वो साईकिल चला
कर दिखा देंगे। अख़बार में तस्वीरें छप जायेंगी। लीजिये साहब कम हो गया प्रदूषण। फिर
बड़ी सी गाड़ी में बैठे और पीछे २०-२५ कारों का फ्लीट। हर जगह ट्रैफ़िक जाम मारते हुए
जायेंगे। धुआं धुआं सा हो जायेगा शहर। उनसे कोई इबरत हासिल करने से रहा। बनाये तो हैं
साईकिल ट्रैक। लेकिन हुआ यह कि चाय-पान बीड़ी वाले कब्ज़ा किये हैं या स्कूटी-बाईक स्टैंड
हो गया। साईकिल वाला सड़क पर है।
सोचता हूं दिल्ली के सीएम केजरीवाल के पास चला जाऊं। वो आईडिया पसंद आदमी हैं।
उन्हें खुद भी बहुत आईडिया आते हैं और सड़क पर निकल लेते हैं प्रयोग करने। मीडिया वाले
तो उन्हें हाथों हाथ लेते हैं। मुफ़्त में ज़बरदस्त पब्लिसिटी।
हो सकता है हमारे आईडिया पर वो हर कार के आगे-पीछे स्टीकर भी चिपका दें - अकेली
मत जइयो।
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