-वीर विनोद छाबड़ा
बंदे के मोहल्ले में एक से एक बढ़ कर हैं। इन्हीं में से एक हैं
छिद्दू बाबू। किसी शब्द या मुद्दे को एक बार पकड़ लें तो छिद्रानिवेषण करके ही मानते
हैं।
बंदे को तो देखते ही छिद्दू बाबू बेताल की तरह चिपक जाते हैं।
बल्कि बेताल को तो समझा-बुझा कर विदा किया जा सकता है मगर छिद्दू बाबू को नहीं।
अभी कल ही की बात है। बंदा स्कूटी पर किक पर किक मार रहा था।
लेकिन बिना गीयरवाली स्कूटी स्टार्ट नहीं हो पायी, न सेल्फ से और न किक
से। चोक भी काम न आई। पसीना-पसीना हो गया बंदा। कड़ी सर्दी में भी गर्मी का अहसास। पत्नी
बोली - २५ साल से चिपकाये
घूम रहे हो। पुर्ज़े भी नहीं मिलते। कित्ती बार बोला बदल दो।
बंदा झल्ला गया- शादी हुए भी तो इत्ते साल हो गए।
यह सुनते ही पत्नी चुप्पे से सरक गयी।
इधर बंदा स्कूटी से कुश्ती लड़ रहा था और उधर दूर खड़े छिद्दू
बाबू यह नज़ारा देखते हुए हंस रहे थे। बंदे ने पीठ कर ली। न होगा बांस, न बजेगी बांसुरी। मगर
छिद्दू बाबू ठहरे चीर-फाड़ वाले डॉक्टर। ही-ही करते हुए बंदे से चिपक ही गए - मैंने
इसीलिए स्कूटी नही खरीदी।
बंदे ने सर पकड़ लिया। अब ये घंटो चटेंगे। फेबिकोल तो फिर छूट
जाए मगर इनसे पिंड छुड़ाना नामुमकिन। अब इनकी बे-पैर की जिज्ञासाएं प्रारंभ होंगी। इन्हें
भगाने का तरीका कई भुक्तभोगी बंदे को बता चुके हैं - एक कंटाप रसीद दो। लेकिन बंदा
ऐसा नहीं करेगा। संस्कारों से मजबूर है। लेकिन असली बात ये है कि साहस ही नहीं।
दूसरा और सबसे कारगर उपाय है, छिद्दू बाबू की बुलडोज़र
पत्नी। बंदे ने आशा भरी निगाह से छिद्दू बाबू के घर की ओर देखा। छिद्दू बाबू मक़सद समझ
गए - मायके गयी हैं।
यानि छिद्दू बाबू आज़ाद हैं। उन्होंने स्कूटी की बखिया उधेड़नी
शुरू कर दी। ऐसे मौके पर वो बंदे की पत्नी को भी पीछे छोड़ देते हैं। दोनों भाई-बहन।
अशुभ-अशुभ बातें। ऐसी चीज़ लेने से फ़ायदा ही क्या जो ख़राब हो जाए...हमारे चचिया ससुर
भी खरीदे रहे, पांच साल बाद कबाड़ के भाव बिकी...ममिया ससुर तो इसे खूंटी पर टांगते-टांगते खुद
ही खूंटी पर टंग गए...मौसिया भी ऐसी ही स्कूटी चला रहे कि ट्रक ने दबोच दिया...अमां
अब रिटायर हो गए हो...पैदल चला-फिरा करो...हाथ-पैर शिथिल हो जाएंगे...
छिद्दू बाबू में बंदे की पत्नी की आत्मा पूर्ण रूप से विराज
चुकी थी। बंदा बहरा महसूस करने लगा। इधर छिद्दू बाबू का टेप खत्म होने के बाद तीसरी
बार ऑटोमैटिक रिवाइंड हुआ। ऐसी चीज़ लेने से...
लेकिन हर मुर्गी का भाग्य निश्चित है। अचानक छिद्दू बाबू की
बुलडोज़र आ गयीं - अभी तक यहीं खड़े हो। घर के बर्तन और कपड़े वैसे ही पड़े हैं। जैसे तुम, वैसे ही फालतू तुम्हारे
दोस्त।
छिद्दू बाबू दुम दबा कर खिसक लिए। इधर बंदे की स्कूटी भी स्टार्ट
हो गयी।
तीस साल हो गए हैं छिद्दू बाबू के ब्याह को। छत्तीस का आंकड़ा
है दोनों के बीच। मगर सड़ी, दकियानूसी, स्टोनऐज और बाल की खाल निकालने वाली सोच के साथ वे हमेशा एक तरफ खड़े दिखते हैं
और उनके साथ बंदे की पत्नी भी।
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नोट - प्रभात ख़बर में प्रकाशित।
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