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वीर विनोद छाबरा
कभी वो भी ज़माना था जब शादी माता-पिता की रज़ामंदी से हुआ करती थी। औपचारिकता ज़रूर
होती थी कि लड़का-लड़की ने एक दूसरे को देख लिया है।
हमारे साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ था।
विवाह के कुछ दिन बाद हम मेमसाब सहित अपने ऑफिस के सामने से गुज़र रहे थे। मेमसाब
को गर्व से बताया कि यह सामने शानदार सात मंज़िला बिल्डिंग देख रही हो न, इसे शक्ति भवन कहते
हैं। यह हमारा ऑफिस है। हम पांचवीं मंज़िल पर बैठते हैं।
पत्नी हमारा मुंह देखने लगी - हमारे बाऊजी ने तो कहा था कि आप तो लेसू नाम की किसी
बिजली कंपनी में हो, जहां आप बिजली के बिल जमा करते हैं।
हमने बड़ी मुश्किल समझाया। हमारा दफ़्तर बिजली वालों का हेडक्वार्टर है, सबसे बड़ा ऑफिस।
फिर उसने पूछा - तो आप वहां क्या करते हो?
हमने बताया कि हम लोग फाईलों में लिखा-पढ़ी का काम करते हैं - अपर डिवीज़न असिस्टेंट।
उसने कहा - तो यों कहो न कि आप बाबू हो?
हमारे ऊपर मानों घड़ों पानी डाल दिया हो किसी ने। बड़ी मुश्किल से हमने उसे समझाया
कि हमारा काम ज़रूर बाबू वाला है लेकिन हम बाबू मनोवृति और संस्कृति से कोसों दूर हैं, साहित्य और कला प्रेमी।
सालों गुज़र गए। उसके बाद जब-जब हमारा प्रमोशन हुआ मेमसाब की पहली प्रतिक्रिया यही
रही - काम तो अब भी वही पहला वाला ही करोगे।
और दूसरी बात यह पूछी - पैसा कितना बढ़ा?
जब हम उप-महाप्रबंधक के पद पर प्रोमोट हुए तो मेमसाब ने एक अतिरिक्त काम हमें पकड़ा
दिया - चूहेदानी में चूहा फंसा है, जाकर बड़े नाले में फ़ेंक आओ।
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29-01-2016 mob 7505663626
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