Thursday, January 21, 2016

आईटॉनिक वाले डेली पैसेंजर।

- वीर विनोद छाबड़ा
डेली पैसेंजर भी एक से बढ़ कर एक होते हैं।
हमारे एक सहकर्मी कानपुर से डेली पैसेंजरी करते थे। उनकी प्रिय ट्रेन होती थी गंगा-जमुना एक्सप्रेस - दिल्ली से वाराणसी। वो कई बार दोपहर बाद आये।

कारण यह होता था कि उन्हें मोहतरमायें बहुत दिखती थीं। अगर कोई दिल को भा गयी तो सुल्तानपुर तक तो पक्का ही चले जाते थे। वहां से उतरे और किसी पलट गाड़ी से लखनऊ आ गए। कभी बहुत ज्यादा दिल आया तो बनारस तक भी हो आये।
हम लोग पूछते थे कि क्या मज़ा मिलता है। उनका एक ही जवाब होता था - चक्षु दर्शन।
वो अपने तजुर्बे के आधार पर बताया करते थे कि ट्रेनों में महिलाओं से छेड़छाड़ में नौजवानों के मुकाबले बुड्ढे ज्यादा तेज होते हैं।
मज़े की बात तो यह थी कि वो टिकट ज़रूर कटवा लेते थे। फ़रमाते थे कि हम इल्लीगल काम नहीं करते हैं।

उनका यह शौक रिटायरमेंट तक चला।
एक मुद्दत से दिखे नहीं। लेकिन एक चश्मदीद ने हमें बताया है कि उनकी डेली पैसेंजरी जारी है। मेमू/डेमू से आते हैं और कानपुर के लिए तैयार पहली ट्रेन से वापस निकल लेते हैं। कहते हैं, यार खाना हज़म नहीं होता। रात नींद नहीं आती।
कभी-कभी हमारा भी स्टेशन जाना होता है। यों हम डेली पैसेंजर कभी नहीं रहे। लेकिन अपने उक्त सहकर्मी के अनुभव के आधार पर, वहां टहलते एकाध आईटॉनिक वाले डेली पैसेंजर को हम भी ताड़ लेते हैं।
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21-01-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016

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